Japeo Jin Arjan Dev Guru Lyrics
गुरबाणी शबद 'जपयो जिन अर्जुन देव गुरु' ( Japyo Jin Arjun Dev Guru ) जो कि गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंग 1409 पर 'भट्टां दे सवैये' नामे वाणी में भट्ट मथुरा जी द्वारा रचित 'सवैये महले पंजवे दे' में से लिया गया है। प्रस्तुत शबद में भट्ट जी ने पांचवें सिख गुरु साहिब श्री गुरु अर्जुन देव जी की स्तुति वंदना वा प्रशंसा लिखी है।
गुरबानी शबद | जपयो जिन अर्जुन देव गुरु |
रचनाकार | भट्ट मथुरा जी |
स्रोत | श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी |
अंग | 1409 |
वाणी शीर्षक | भट्टां दे सवैये |
अनुक्रमणिका-शीर्षक | सवैये महले पंजवे दे |
Original Text in Hindi
जब लउ नही भाग लिलार उदै तब लउ भ्रमते फिरते बहु धायउ ॥ कलि घोर समुद्र मै बूडत थे कबहू मिटि है नही रे पछुतायउ ॥ ततु बिचारु यहै मथुरा जग तारन कउ अवतारु बनायउ ॥ जप्यउ जिन्ह अरजुन देव गुरू फिरि संकट जोनि गरभ न आयउ ॥६॥
हिन्दी में शुद्ध उचारण सहायता व अनुवाद
जब लौ नही भाग लिलार उदय तब लौ भ्रमते फिरते बहु धायौ ॥ कल घोर समुद्र मै बूडत थे कबहू मिट है नही रे पछुतायौ ॥
Hindi Translation:
जब तक भाग्य (कर्म) का उदय नहीं होता, तब तक व्यक्ति भटकता रहता है और अनेक जगह दौड़ता फिरता है। वह घोर कलियुग के समुद्र में डूबता रहता है, और यह पछतावा कभी समाप्त नहीं होता।
तत्त बिचार यहै मथुरा जग तारन कौ अवतार बनायौ ॥ जपयौ जिन् अरजुन देव गुरू फिर संकट जोन गरभ न आयौ ॥६॥
Hindi Translation:
मथुरा ने इस तत्व को (गूढ़ सत्य को) समझा कि जगत को तारने के लिए अवतार लिया। जिन्होंने गुरु अर्जुन देव का जाप किया ( Japyo Jin Arjun Dev Guru ), वे फिर संकट की योनि (पुनर्जन्म के चक्र) में नहीं आते।
भावार्थ
इस शबद का भाव यह है कि जब तक भाग्य का उदय नहीं होता, तब तक व्यक्ति माया रूपेण भ्रम और विषय आदि के अज्ञान में भटकता रहता है। कलियुग जिसमें पापाचरण की प्रधानता है; में यह भटकाव और भी अधिक होता है। मथुरा भट्ट जी ने इस सत्य को पहचाना कि विषय-आसक्ति से मुक्त करने के लिएश्री गुरु नानक जी की पाँचवीं ज्योति गुरु अर्जुन देव जी ने अवतार लिया। गुरु अर्जुन देव जी के नाम का जाप करने से व्यक्ति आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाता है और जीवन के सभी संकटों से छुटकारा पा लेता है।
संक्षेप में कहें तो सद्गुरु के शरणागत हो करके एवं नाम जप करने से ही जीवन में सच्चा मार्गदर्शन और मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
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