Khojat Sant Phireh
Bani Sri Guru Arjan Dev Ji: Khojat Sant Phireh Prabh Pran Adhare Ram; Raag Bihagra Mahalla 5th, Page 545–546 of Sri Guru Granth Sahib Ji.
Hukamnama | Khojat Sant Phireh |
Place | Darbar Sri Harmandir Sahib Ji, Amritsar |
Ang | 545 |
Creator | Guru Arjan Dev Ji |
Raag | Bihagada |
English Translation
Bihagra Mahala 5th ( Khojat Sant Phireh Prabh Pran Adhare Ram )
O Lord, protector of our lives! The saints are always, trying to trace and attain the Lord, but without the union with the Lord, they feel completely discouraged and downtrodden, having no strength in the body. O Lord-benefactor 1 May You bestow me with Your Grace and unite me with Yourself, engaged in Your meditation alone. O, Lord! Kindly bless me with Your True Name, so that I can spend this life in the remembrance of Your vision (True Name) by having Your glimpse
O Lord! Bless me with Your True Name, so that I may recite Your True Name all the time and thus spend this life in having Your glimpse as a reward!
O Lord! You are the most powerful, perfect, and stabilized power in position, the greatest power too deep to be probed and beyond our comprehension. O Nanak! My prayer to the Lord, who is dearer to me than my life even, is that I may be united by Him with Himself through His Grace, so that I may attain salvation. (1)
O Lord! I have tried through many recitations of texts, austerities, or fastings to have a glimpse of the Lord, but my burning desire in my heart without meeting You could not be extinguished without Your support. True Master! I have taken refuge at Your lotus feet, so that I may be enabled to swim across this ocean of life by cutting the constraints of the cycle of births and deaths. O Lord! Without Your support, I am like an orphan, without any virtues, and not realizing the Truth, so pray do not consider my shortcomings! O dear Lord-benevolent! You are the cause and effect of everything, thus controlling everything that happens and possessing complete power on earth.
O Nanak! I would seek a drop of the nectar of True Name like the chatrik craving for the rain Lord's ever-green True Name all the time by taking refuge at His lotus feet. (2)
O Lord! May I always remember Your True Name by taking a dip in the holy tank in the company of Your holy saints and enjoying the bliss of True Name? I only craved the company of Your holy saints to meditate on True Name in their company, leading to my success in all my worldly chores. O Lord! You are the Master leading to perfection of all my jobs; destroyer of all my sufferings. My earnest prayer to You is that I may not forsake You even for a moment and may inculcate You in my heart all the time. O, Lord! You are the benefactor of all peace, joy, and bliss in the whole world, day and night, and you are always an embodiment of Truth, possessing all the virtues, O True Master! May I be blessed with Your favours to attain the bliss of life! O Lord! You are limitless, beyond all count, the greatest power on Earth but beyond our comprehension. O Nanak! I only pray to the Lord for the fulfilment of all my desires. O Lord creator and sustainer of the whole world! May You fulfil my desires and show me a glimpse of Your vision! (3)
O, Lord! Listening and singing your praises is worth performing millions of Yagnas! O Lord! By meditating on Your True Name, which shows greenery all around, we have enabled all the family members to attain salvation. O Lord! How could I praise the person who appears beautiful and charming while reciting your true Name? They are really Great and truthful. O, dear Lord! dearer than life itself! I have developed only an urge for a glimpse of such Guru-minded persons, who are never forgotten by You. O limitless Lord! The persons, who are rather fortunate with pleasant days ahead, have been clasped by You in Your embrace. O Nanak! Such Guru-minded persons have been successful in this life. O dearest Lord! My only prayer is that I may also gain Your embrace and unison (with You) through the Guru's guidance (4-3-6)
Punjabi Translation
(ਹੇ ਭਾਈ!) ( Khojat Sant Phireh Prabh Pran Adhare Ram ) ਸੰਤ ਜਨ ਜਿੰਦ ਦੇ ਆਸਰੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ (ਸਦਾ) ਭਾਲਦੇ ਫਿਰਦੇ ਹਨ, ਪਿਆਰੇ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਰੀਰ ਲਿੱਸਾ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਰੀਰਕ ਬਲ ਘਟ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਹੇ ਪਿਆਰੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਹਰ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਮਿਲ, ਦਇਆ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਲੜ ਲਾ ਲੈ। ਹੇ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ! ਮੈਨੂੰ ਆਪਣਾ ਨਾਮ ਦੇਹ, ਮੈਂ (ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਨੂੰ ਸਦਾ) ਜਪਦਾ ਰਹਾਂ, ਤੇਰਾ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰ ਕੇ ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਨਾਨਕ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹੈ-ਹੇ ਸਭ ਤਾਕਤਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ! ਹੇ ਸਰਬ-ਵਿਆਪਕ! ਹੇ ਸਦਾ ਅਟੱਲ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ! ਹੇ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੇ! ਹੇ ਅਪਹੁੰਚ! ਹੇ ਬੇਅੰਤ! ਹੇ ਜਿੰਦ ਤੋਂ ਪਿਆਰੇ! ਮੇਹਰ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਆ ਮਿਲ।੧।
ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਦਰਸਨ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਅਨੇਕਾਂ ਜਪ ਕੀਤੇ, ਧੂਣੀਆਂ ਤਪਾਈਆਂ, ਵਰਤ ਰੱਖੇ; ਪਰ ਮਾਲਕ-ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਰਨ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਕਿਤੇ ਭੀ ਮਨ ਦੀ ਤਪਸ਼ ਨਹੀਂ ਬੁੱਝਦੀ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਜਪਾਂ ਤਪਾਂ ਦੇ ਆਸਰੇ ਛੱਡ ਕੇ) ਮੈਂ ਤੇਰੀ ਸਰਨ ਆਇਆ ਹਾਂ, ਮੇਰੀ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਦੀ ਬੇੜੀ ਕੱਟ ਦੇ, ਮੈਨੂੰ ਸੰਸਾਰ-ਸਮੁੰਦਰ ਤੋਂ ਪਾਰ ਲੰਘਾ ਲੈ। ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਰਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਆਸਰਾ ਨਹੀਂ, ਮੈਂ ਗੁਣ-ਹੀਨ ਹਾਂ, (ਸੰਸਾਰ-ਸਮੁੰਦਰ ਤੋਂ ਪਾਰ ਲੰਘਣ ਲਈ) ਮੈਂ ਕੋਈ ਢੰਗ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦਾ, ਮੇਰਾ ਨਾਹ ਕੋਈ ਗੁਣ ਨਾਹ ਕੋਈ ਔਗੁਣ ਕੋਈ ਭੀ ਆਪਣੇ ਖ਼ਿਆਲ ਵਿਚ ਨਾਹ ਲਿਆਵੀਂ।
ਹੇ ਨਾਨਕ! ਆਖ-) ਹੇ ਦੀਨਾਂ ਉੱਤੇ ਦਇਆ ਕਰਨ ਵਾਲੇ! ਹੇ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੇ ਰਾਖੇ! ਹੇ ਪ੍ਰੀਤਮ! ਹੇ ਸਾਰੀਆਂ ਤਾਕਤਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ! ਹੇ ਜਗਤ ਦੇ ਮੂਲ! ਜਿਵੇਂ) ਪਪੀਹਾ (ਵਰਖਾ ਦੀ) ਬੂੰਦ ਮੰਗਦਾ ਹੈ (ਤਿਵੇਂ ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਨਾਮ-ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਦੀ ਬੂੰਦ ਮੰਗਦਾ ਹਾਂ) ਤੇਰੇ ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਧਰ ਧਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।੨।
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Hukamnama in Hindi
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥ ( Khojat Sant Phireh Prabh Pran Adhare Ram ) हे मानव जीव ! क्यों निरर्थक पदार्थो के मोह में फंसे हुए हो ? क्योकि यह जीवन मार्ग बड़ा मुश्किल है। हे पाप कमाने वाले ! दुनिया में तेरा कोई भी साथी नहीं। यदि कोई भी तेरा साथी नहीं होगा तो अपने किये कर्मो पर सदा पष्चाताप ही करता रहेगा। तू अपनी रसना से दुनिया के मालिक गोपाल के गुणों का जाप नहीं करता यह जीवन का शुभावसर दोबारा फिर तुझे कब मिलेगा? जिस प्रकार वृक्ष से टूटे हुए पत्ते पुनः वृक्ष से नहीं जुड़ सकते, वैसे ही जीवात्मा मृत्यु के मार्ग पर अकेले ही चल देती है। नानक प्रार्थना करता है कि हरि के नाम के बिना जीवात्मा सदैव ही दुःख संताप में भटकती रहती है।॥१॥
हे जीव ! तू छिप-छिपकर बड़े छल कपट करता रहता है किन्तु प्रभु सब कुछ जानता है। जब परलोक में धर्मराज तेरे कर्मों का लेखा-जोखा करेगा तो दुष्कर्मों के कारण तुम तिलों की भाँति घानी में पिसे जाओगे। हे नश्वर प्राणी ! अपने किए हुए कर्मों का दु:ख रूपी दण्ड तुझे भोगना ही पड़ेगा तथा तुम अनेक योनियों के चक्र में पड़कर भटकते रहोगे। महा मोहनी के आकर्षण में फंसकर प्राणी अपना हीरे जैसा अनमोल मनुष्य जीवन गंवा देता है। एक परमेश्वर के नाम के अतिरिक्त जीवात्मा सभी कार्यों में कुशल एवं चतुर है। नानक प्रार्थना करता है कि जिनके कर्म-लेख में ऐसा लिखा हुआ है, यह दुविधा तथा सांसारिक मोह में लीन रहते हैं।॥२॥
कृतघ्न मनुष्य परमेश्वर से जुदा ही रहता है और कोई भी उसका मध्यस्थ नहीं होता। कठिन यमदूत आकर उसे पकड़ लेते है और उसके दुष्कर्मो के परिणामस्वरुप यमदूत उसे आगे लगा लेते है, क्योकि वह महामोहनी में लीन रहा था। जो मनुष्य गुरमुख बनकर परमात्मा का गुणगान नहीं करता, वह तपते हुए स्तम्भ से लगा दिया जाता है। जीव काम, क्रोध एवं अहंकार में लीन होकर सबकुछ गंवा देता है और ज्ञान से विहीन होकर पश्चाताप करता रहता है। नानक प्रार्थना करता है कि कर्मो के फलस्वरूप ही मनुष्य संयोग कारन प्रभु को विस्मृत करके कुमार्गगामी बना है, इसलिए यह अपनी रसना से श्रीहरि के नाम का जाप नहीं जपता ॥३॥
है प्रभु ! तेरे सिवाय हमारा कोई भी रखवाला नहीं हैं। है श्रीहरि ! पतित लोगो का उद्धार करना तेरा विरद है। हे पतितों का उद्धार करने वाले स्वामी ! हे कृपानिधि ! हे दया के घर ! मैं तेरी शरण में (आया) हूँ। हे जगत के रचयिता ! मेरा नश्वर जगत रूपी अन्धकूप से उद्धार करो तू सब जीवों का भरण-पोषण करने वाला है। मैं तेरी शरण में आया हूँ कृपा करके मेरी सांसारिक महा बेड़ियाँ काट दीजिये और नाम का आधार प्रदान कीजिये। नानक प्रार्थना है की है दीनदयाल गोविन्द! अपनी कृपा का हाथ रखकर मेरी रक्षा कीजिए।४ ॥
वह दिन बड़ा शुम गिना जाता है जब परमात्मा से मिलन होता है। सभी सुख ऐश्वर्य प्रत्यक्ष हो गए है तथा दुःख मुझ से दूर हो गए हैं। नित्य ही जगतपालक गोपाल का गुणगान करने से सदैव सहज सुख एवं आनंद-विनोद की उपलब्धि होती है। संतों की सभा में शामिल होकर मैं प्रभु के नाम का भजन करता हैं, जिसके फलस्वरूप मुझे दोबारा योनियों में नहीं भटकना पड़ेगा। परमात्मा ने सहज-स्वभाव ही मुझे अपने गले से लगा लिया है और मेरे पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का अंकुर अंकुरित हो गया है। नानक प्रार्थना करता है कि भगवान स्वयं ही मुझे मिल गया है और वह कदाचित मुझसे दोबारा दूर नहीं जाता ॥ ५ ॥ ४ ॥ ७॥