For those who are unable to read Gurmukhi but wish to recite Anand Sahib as part of their Nitnem, we are pleased to offer the transliteration of Anand Sahib in Hindi. Recognizing that the sound and pronunciation of Gurbani in Gurmukhi differ from Hindi, our transliteration has been carefully crafted to ensure accurate recitation, taking into account the subtle nuances of Gurbani pronunciation. By providing this resource, we aim to minimize mistakes and assist Hindi readers in connecting with the sacred hymn of Anand Sahib.
Bani Name: | Anand Sahib |
Transliteration: | Hindi |
Creator: | Guru Amardas Ji |
Raga: | Ramkali |
Ang: | 917 |
Source: | Sri Guru Granth Sahib Ji |
Stanzas: | 40 |
Anand Sahib in Hindi
We understand the challenges faced by Hindi readers when attempting to recite Gurbani in Hindi transliterations. Many existing resources provide word-for-word transliterations, which do not accurately capture the specific pronunciation and sound of Gurbani as traditionally taught to Gurmukhi learners. To address this, our team has meticulously revised the transliteration of Anand Sahib in Hindi, truncating extra matra to align with the correct pronunciation of Gurbani.
By utilizing our Hindi transliteration, Hindi readers can now confidently recite Anand Sahib while staying true to its original pronunciation. We have taken great care to ensure the accuracy and authenticity of the transliteration, preserving the spiritual essence and rhythm of the hymn.
Importance of Accurate Recitation
Gurbani holds immense spiritual significance for Sikhs, and its accurate recitation is highly valued. Understanding the importance of maintaining the sanctity and integrity of Gurbani, we have developed this Hindi transliteration of Anand Sahib to facilitate an authentic and meaningful recitation experience for Hindi-speaking individuals. By following the provided transliteration, readers can embrace the profound message of Anand Sahib while maintaining the correct pronunciation and rhythm of the hymn.
Complete Path of Anand Sahib in Hindi
रामकली महला ३ अनंद ੴ सतगुर प्रसाद ॥
अनंद भया मेरी माए सतगुरु मै पाया ॥ सतगुर त पाया सहज सेती मन वजीआ वाधाईआं ॥ राग रतन परवार पारियाँ सबद गावण आईआं ॥ सबदो त गावहु हरी केरा मन जिनी वसाया ॥ कहै नानक अनंद होआ सतगुरु मै पाया ॥१॥
ए मन मेरेआ तू सदा रहो हर नाले ॥ हर नाल रहो तू मंन मेरे दूख सभ विसारणा ॥ अंगीकार ओहो करे तेरा कारज सभ सवारणा ॥ सभना गल्लां समरथ्थ सुआमी सो क्यो मनहु विसारे ॥ कहै नानक मंन मेरे सदा रहो हर नाले ॥२॥
साचे साहिबा क्या नाही घर तेरै ॥ घर त तेरै सभ किछ है जिस देहि सो पावए ॥ सदा सिफत सलाह तेरी नाम मन वसावए ॥ नाम जिन कै मन वस्सेआ वाजे सबद घनेरे ॥ कहै नानक सच्चे साहिब क्या नाही घर तेरै ॥३॥
साचा नाम मेरा आधारो ॥ साच नाम अधार मेरा जिन भुख्खा सभ गवाईआं ॥ कर सांत सुख मन आए वस्सेआ जिन इच्छा सभ पुजाईआं ॥ सदा कुरबाण कीता गुरू विटहु जिस दीआं एहि वडिआईआं ॥ कहै नानक सुणहु संतहु सबद धरहु प्यारो ॥ साचा नाम मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तित घर सभागै ॥ घर सभागै सबद वाजे कला जित घर धारीआ ॥ पंच दूत तुध वस कीते काल कंटक मारेया ॥ धुर करम पाया तुध जिन कौ से नाम हर कै लागे ॥ कहै नानक तह सुख होआ तित घर अनहद वाजे ॥५॥
साची लिवै बिन देह निमाणी ॥ देह निमाणी लिवै बाझहु क्या करे वेचारीआ ॥ तुध बाझ समरथ कोए नाही कृपा कर बनवारीआ ॥ एस नौ होर थाओ नाही सबद लाग सवारीआ ॥ कहै नानक लिवै बाझहु क्या करे वेचारीआ ॥६॥
आनंद आनंद सभ को कहै आनंद गुरू ते जाणिआ ॥ जाणिआ आनंद सदा गुर ते कृपा करे प्यारेया ॥ कर किरपा किलविख कट्टे ज्ञान अंजन सारेया ॥ अंदरहु जिन का मोहु तुटा तिन का सबद सच्चै सवारेया ॥ कहै नानक एहो अनंद है आनंद गुर ते जाणिआ ॥७॥
बाबा जिस तू देहि सोई जन पावै ॥ पावै त सो जन देहि जिस नो होर क्या करहि वेचारेया ॥ इक भरम भूले फिरहि दह दिस इक नाम लाग सवारेया ॥ गुर परसादी मन भया निरमल जिना भाणा भावए ॥ कहै नानक जिस देहि प्यारे सोई जन पावए ॥८॥
आवहु संत प्यारेहो अकत्थ की करह कहाणी ॥ करह कहाणी अकत्थ केरी कित दुआरै पाईऐ ॥ तन मन धन सभ सौंप गुर कौ हुकम मंनिअै पाईअै ॥ हुकम मंनिहु गुरू केरा गावहु सच्ची बाणी ॥ कहै नानक सुणहु संतहु कथिहु अकत्थ कहाणी ॥९॥
ए मन चंचला चतुराई किनै न पाया ॥ चतुराई न पाया किनै तू सुण मंन मेरेया ॥ एह माया मोहणी जिन एत भरम भुलाया ॥ माया त मोहणी तिनै कीती जिन ठगौली पाईआ ॥ कुरबाण कीता तिसै विटहु जिन मोहु मीठा लाया ॥ कहै नानक मन चंचल चतुराई किनै न पाया ॥१०॥
ए मन प्यारेया तू सदा सच समाले ॥ एहो कुटंब तू जे देखदा चलै नाही तेरै नाले ॥ साथ तेरै चलै नाही तिस नाल क्यों चित लाईऐ ॥ ऐसा कम मूले न कीचै जित अंत पछोताईऐ ॥ सतगुर का उपदेस सुण तू होवै तेरै नाले ॥ कहै नानक मन प्यारे तू सदा सच समाले ॥११॥
अगम अगोचरा तेरा अंत न पाया ॥ अंतो न पाया किनै तेरा आपणा आप तू जाणहे ॥ जीअ जंत सभ खेल तेरा क्या को आख वखाणए ॥ आखहि त वेखहि सभ तूहै जिन जगत उपाया ॥ कहै नानक तू सदा अगम्म है तेरा अंत न पाया ॥१२॥
सुर नर मुन जन अमृत खोजदे सु अमृत गुर ते पाया ॥ पाया अमृत गुर कृपा कीनी सच्चा मन वसाया ॥ जीअ जंत सभ तुध उपाए इक वेख परसण आया ॥ लब लोभ अहंकार चूका सतगुरु भला भाया ॥ कहै नानक जिस नो आप तुठ्ठा तिन अमृत गुर ते पाया ॥१३॥
भगतां की चाल निराली ॥ चाला निराली भगतांह केरी बिखम मारग चलणा ॥ लब लोभ अहंकार तज त्रिसना बहुत नाही बोलणा ॥ खंनिअहु तिक्खी वालहु निक्की एत मारग जाणा ॥ गुर परसादी जिनी आप तजिआ हर वासना समाणी ॥ कहै नानक चाल भगता जुगहु जुग निराली ॥१४॥
ज्यों तू चलाइहि तिव चलह सुआमी होर क्या जाणा गुण तेरे ॥ जिव तू चलाएहि तिवै चलह जिना मारग पावहे ॥ कर किरपा जिन नाम लाएहि सि हर हर सदा धिआवहे ॥ जिस नो कथा सुणाइहि आपणी से गुरदुआरै सुख पावहे ॥ कहै नानक सच्चे साहिब ज्यों भावै तिवै चलावहे ॥१५॥
एहो सोहिला सबद सुहावा ॥ सबदो सुहावा सदा सोहिला सतगुरु सुणाया ॥ एहो तिन कै मंन वस्सेआ जिन धुरहु लिखिआ आया ॥ इक फिरहि घनेरे करहि गला गली किनै न पाया ॥ कहै नानक सबद सोहिला सतगुरु सुणाया ॥१६॥
पवित्त होए से जना जिनी हर ध्याया ॥ हर ध्याया पवित्त होए गुरमुख जिनी ध्याया ॥ पवित्त माता पिता कुटंब सहित स्यो पवित्त्त संगत सबाईआ ॥ कहंदे पवित्त सुणदे पवित्त से पवित्त जिनी मंन वसाया ॥ कहै नानक से पवित्त जिनी गुरमुख हर हर ध्याया ॥१७॥
करमी सहज न ऊपजै विण सहजै सहसा न जाए ॥ नह जाए सहसा कितै संजम रहे करम कमाए ॥ सहसै जीओ मलीण है कित संजम धोता जाए ॥ मंन धोवहु सबद लागहु हर स्यो रहहु चित्त लाए ॥ कहै नानक गुर परसादी सहज उपजै इहु सहसा इव जाए ॥१८॥
जीअहु मैले बाहरहु निरमल ॥ बाहरहु निरमल जीअहु त मैले तिनी जनम जूऐ हारेया ॥ एह तिसना वड्डा रोग लग्गा मरण मनहु विसारेया ॥ वेदा मह नाम उत्तम सो सुणहि नाही फिरहि ज्यों बेतालिआ ॥ कहै नानक जिन सच तजिआ कूड़े लागे तिनी जनम जूऐ हारेया ॥१९॥
जीअहु निरमल बाहरहु निरमल ॥ बाहरहु त निरमल जीअहु निरमल सतगुर ते करणी कमाणी ॥ कूड़ की सोए पहुचै नाही मनसा सच समाणी ॥ जनम रतन जिनी खट्टेआ भले से वणजारे ॥ कहै नानक जिन मंन निरमल सदा रहहि गुर नाले ॥२०॥
जे को सिख गुरू सेती सनमुख होवै ॥ होवै त सनमुख सिख कोई जीअहु रहै गुर नाले ॥ गुर के चरन हिरदै ध्याए अंतर आतमै समाले ॥ आप छड्ड सदा रहै परणै गुर बिन अवर न जाणै कोए ॥ कहै नानक सुणहु संतहु सो सिख सनमुख होए ॥२१॥
जे को गुर ते वेमुख होवै बिन सतगुर मुकत न पावै ॥ पावै मुकत न होर थै कोई पुछहु बिबेकीआ जाए ॥ अनेक जूनी भरम आवै विण सतगुर मुकत न पाए ॥ फिर मुकत पाए लाग चरणी सतगुरु सबद सुणाए ॥ कहै नानक वीचार देखहु विण सतगुर मुकत न पाए ॥२२॥
आवहु सिख सतगुरु के प्यारिहो गावहु सच्ची बाणी ॥ बाणी त गावहु गुरू केरी बाणीआ सिर बाणी ॥ जिन कौ नदर करम होवै हिरदै तिना समाणी ॥ पीवहु अमृत सदा रहहु हर रंग जपिहु सारिन्गपाणी ॥ कहै नानक सदा गावहु एह सच्ची बाणी ॥२३॥
सतगुरु बिना होर कच्ची है बाणी ॥ बाणी त कच्ची सतगुरु बाझहु होर कची बाणी ॥ कहंदे कच्चे सुणदे कच्चे कच्चीं आख वखाणी ॥ हर हर नित करहि रसना कहिआ कछू न जाणी ॥ चित्त जिन का हिर लया माया बोलन पए रवाणी ॥ कहै नानक सतगुरु बाझहु होर कच्ची बाणी ॥२४॥
गुर का सबद रतन्न है हीरे जित जड़ाओ ॥ सबद रतन जित मंन लागा एहो होआ समाओ ॥ सबद सेती मन मिलिआ सचै लाया भाओ ॥ आपे हीरा रतन आपे जिस नो देए बुझाए ॥ कहै नानक सबद रतन है हीरा जित जड़ाओ ॥२५॥
सिव सकत आप उपाए कै करता आपे हुकम वरताए ॥ हुकम वरताए आप वेखै गुरमुख किसै बुझाए ॥ तोड़े बंधन होवै मुकत सबद मंन वसाए ॥ गुरमुख जिस नो आप करे सु होवै एकस स्यो लिव लाए ॥ कहै नानक आप करता आपे हुकम बुझाए ॥२६॥
सिमृति सास्त्र पुन्न पाप बीचारदे तत्तै सार न जाणी ॥ तत्तै सार न जाणी गुरू बाझहु तत्तै सार न जाणी ॥ तिही गुणी संसार भ्रम सुत्ता सुतिआ रैण विहाणी ॥ गुर किरपा ते से जन जागे जिना हर मन वस्सेआ बोलहि अमृत बाणी ॥ कहै नानक सो तत्त पाए जिस नो अनदिन हर लिव लागै जागत रैण विहाणी ॥२७॥
माता के उदर मह प्रतिपाल करे सो क्यों मनहु विसारीऐ ॥ मनहु क्यों विसारीऐ एवड दाता जि अगन मह आहार पहुचावए ॥ ओस नो किहु पोहे न सकी जिस नौ आपणी लिव लावए ॥ आपणी लिव आपे लाए गुरमुख सदा समालीऐ ॥ कहै नानक एवड दाता सो क्यों मनहु विसारीऐ ॥२८॥
जैसी अगन उदर मह तैसी बाहर माया ॥ माया अगन सभ इक्को जेही करतै खेल रचाया ॥ जा तिस भाणा ता जम्मिआ परिवार भला भाया ॥ लिव छुड़की लगी त्रिसना माया अमर वरताया ॥ एह माया जित हर विसरै मोहु उपजै भाओ दूजा लाया ॥ कहै नानक गुर परसादी जिना लिव लागी तिनी विचे माया पाया ॥२९॥
हर आप अमुल्लक है मुल्ल न पाया जाए ॥ मुल्ल न पाया जाए किसै विटहु रहे लोक विललाए ॥ ऐसा सतगुर जे मिलै तिस नो सिर सौंपीऐ विचहु आप जाए ॥ जिस दा जीओ तिस मिल रहै हर वसै मन आए ॥ हर आप अमुल्लक है भाग तिना के नानका जिन हर पल्लै पाए ॥३०॥
हर रास मेरी मन वणजारा ॥ हर रास मेरी मन वणजारा सतगुर ते रास जाणी ॥ हर हर नित्त जपिहु जीअहु लाहा खटिट्हो दिहाड़ी ॥ एहो धन तिना मिलिआ जिन हर आपे भाणा ॥ कहै नानक हर रास मेरी मन होआ वणजारा ॥३१॥
ए रसना तू अन रस राच रही तेरी प्यास न जाए ॥ प्यास न जाए होरत कितै जिचर हर रस पलै न पाए ॥ हर रस पाए पलै पीऐ हर रस बहुड़ न त्रिसना लागै आए ॥ एहो हर रस करमी पाईऐ सतगुर मिलै जिस आए ॥ कहै नानक होर अन रस सभ वीसरे जा हर वसै मन आए ॥३२॥
ए सरीरा मेरेया हर तुम मह जोत रखी ता तू जग मह आया ॥ हर जोत रखी तुध विच ता तू जग मह आया ॥ हर आपे माता आपे पिता जिन जीओ उपाए जगत दिखाया ॥ गुर परसादी बुझिआ ता चलत होआ चलत नदरी आया ॥ कहै नानक स्रिसट का मूल रचिआ जोत राखी ता तू जग मह आया ॥३३॥
मन चाओ भया प्रभ आगम सुणिआ ॥ हर मंगल गाओ सखी ग्रिहु मंदर बणिआ ॥ हर गाओ मंगल नित्त सखीए सोग दूख न व्यापए ॥ गुर चरन लागे दिन सभागे आपणा पिर जापए ॥ अनहत बाणी गुर सबद जाणी हर नाम हर रस भोगो ॥ कहै नानक प्रभ आप मिलिआ करण कारण जोगो ॥३४॥
ए सरीरा मेरेया इस जग मह आए कै क्या तुध करम कमाया ॥ कि करम कमाया तुध सरीरा जा तू जग मह आया ॥ जिन हर तेरा रचन रचिआ सो हर मन न वसाया ॥ गुर परसादी हर मंन वस्सेआ पूरब लिखिआ पाया ॥ कहै नानक एहो सरीर परवाण होआ जिन सतगुर स्यो चित लाया ॥३५॥
ए नेत्रहु मेरिहो हर तुम मह जोत धरी हर बिन अवर न देखहु कोई ॥ हर बिन अवर न देखहु कोई नदरी हर निहालिआ ॥ एहो विस संसार तुम देखदे एहो हर का रूप है हर रूप नदरी आया ॥ गुर परसादी बुझिआ जा वेखा हर इक है हर बिन अवर न कोई ॥ कहै नानक एहि नेत्र अंध से सतगुर मिलिऐ दिब्ब द्रिसट होई ॥३६॥
ए स्रवणहु मेरिहो साचै सुनणै नो पठाए ॥ साचै सुनणै नो पठाए सरीर लाए सुणहु सत बाणी ॥ जित सुणी मन तन हरेया होआ रसना रस समाणी ॥ सच अलख विडाणी ता की गत कही न जाए ॥ कहै नानक अमृत नाम सुणहु पवित्र होवहु साचै सुनणै नो पठाए ॥३७॥
हर जीओ गुफा अंदर रख कै वाजा पवण वजाया ॥ वजाया वाजा पौण नौ दुआरे परगट कीए दसवा गुप्त रखाया ॥ गुरदुआरै लाए भावनी इकना दसवां दुआर दिखाया ॥ तह अनेक रूप नाओ नव निध तिस दा अंत न जाई पाया ॥ कहै नानक हर प्यारै जीओ गुफा अंदर रख कै वाजा पवण वजाया ॥३८॥
एहो साचा सोहिला साचै घर गावहु ॥ गावहु त सोहिला घर साचै जिथै सदा सच ध्यावहे ॥ सचो ध्यावहि जा तुध भावहि गुरमुख जिना बुझावहे ॥एहो सच सभना का खसम है जिस बखसे सो जन पावहे ॥ कहै नानक सच सोहिला सच्चै घर गावहे ॥३९॥
अनद सुणहो वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥ पारब्रह्म प्रभ पाया उतरे सगल विसूरे ॥ दूख रोग संताप उतरे सुणी सच्ची बाणी ॥ संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥ सुणते पुनीत कहते पवित्त सतगुर रहिआ भरपूरे ॥ बिनवंत नानक गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥
The availability of Anand Sahib transliterated in Hindi serves as a valuable resource for those who are unable to read Gurmukhi but desire to recite this sacred hymn as part of their Nitnem. Our carefully revised transliteration aims to minimize errors and ensure an accurate recitation experience. By reciting Anand Sahib with correct pronunciation and sound, Hindi readers can connect more deeply with the divine message conveyed within the hymn. We hope that this resource enables a more meaningful and spiritually uplifting recitation of Anand Sahib for individuals on their spiritual journey.