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Home Nitnem

Tav Prasad Savaiye in Hindi | Full Path Translation | Nitnem Bani

Read and Recite Complete Nitnem Path of Tav Prasad Savaiye in Hindi Language

October 11, 2023
in Nitnem, Translation
71 1
Tav Prasad Savaiye in Hindi - Full Path Translation
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Tav Prasad Savaiye in Hindi

Tav Prasad Savaiye is Sacred Bani from Sri Dasam Granth and is a part of Morning Nitnem adopted by Sikhs according to Sikh Rehat Maryada. The purpose of Tav Prasad Savaiye is to create Vairagya (detachment from Maya/the world) and destroy Pakhand (false actions) and ego.

It is the 3rd Bani of Nitnem following Japji Sahib and Jaap Sahib. It is said that it was written by Sri Guru Gobind Singh Ji in Sri Anandpur Sahib before the Revelation of Khalsa, before CE 1699.

Amritvela Bani:Tav Prasad Savaiye - Sravag Sudh
Transliteration:Hindi
Source:Sri Dasam Granth
Created:Prior to 1699 Amrit Sanchar
Place of Creation:Sri Anandpur Sahib
Number of Stanzas:10

Sravag Sudh - Tva Parsad Svaiyye Path

We have written Tav Prasad Savaiye's complete path in corrected pronunciation by omitting the extra matras of Gurmukhi while transliterating it in Hindi. Read and Recite the Complete Nitnem Path of Tav Prasad Savaiye in the Hindi Language.

त्व प्रसाद सवैये पाठ (हिन्दी में)
ੴ सतिगुर प्रसाद ॥ पातिसाही दसवीं ॥ त्व प्रसाद ॥ सवय्ये ॥

स्रावग सुद्ध समूह सिधान के देख फिरिओ घर जोग जती के ॥ सूर सुरारदन सुद्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥ सारे ही देस को देख रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥ स्री भगवान की भाए कृपा हू ते एक रत्ती बिन एक रत्ती के ॥१॥२१॥

माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥ कोट तुरंग कुरंग से कूदत पौन के गौन को जात निवारे ॥ भारी भुजान के भूप भली बिध निआवत सीस न जात बिचारे ॥ एते भए तो कहा भए भूपत अंत को नाँगे ही पाँए पधारे ॥२॥२२॥

जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल मृदंग नगारे ॥ गुँजत गूड़ गजान के सुँदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥ भूत भविक्ख भवान के भूपत कौन गनै नहीं जात बिचारे ॥ स्री पत स्री भगवान भजे बिन अंत कौ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥

तीरथ न्हान दया दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥ बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥ पौन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजार क देखै ॥ स्री भगवान भजे बिन भूपत एक रत्ती बिन एक न लेखै ॥४॥२४॥

सुद्ध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥ भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥ तोर अरीन मरोर मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥ स्री पति स्री भगवान कृपा बिन त्याग जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥

बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछय्या ॥ तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मलय्या ॥ गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लवय्या ॥ साहिब स्री सभ को सिरनायक जाचक अनेक सु एक दिवय्या ॥६॥२६॥

दानव देव फनिंद निसाचर भूत भविक्ख भवान जपैंगे ॥ जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥ पुँन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुँज खपैंगे ॥ साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अविलोक चपैंगे ॥७॥२७॥

मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन तृलोक को राज करैंगे ॥ कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअंबर साज बरैंगे ॥ ब्रह्म महेसर बिसन सचीपत अंत फसे जम फास परैंगे ॥ जे नर स्रीपत के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥

कहा भयो जो दोऊ लोचन मूँद कै बैठ रहिओ बक ध्यान लगायो ॥ न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रन लोक गयो परलोक गवायो ॥ बास कीओ बिखिआन सों बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बितायो ॥ साच कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो ॥९॥२९॥

काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकायो ॥ काहू लखिओ हर अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीस निवायो ॥ कोऊ बुतान को पूजत है पसु कोऊ मृतान को पूजन धायो ॥ कूर क्रिया उरझियो सभ ही जग स्री भगवान को भेद न पायो ॥१०॥३०॥

Uthanka (उथानका)

During Guru Tegh Bahadur Ji's visit to Assam, a king named Raja Ram became his disciple. Guru Ji blessed Raja Ram with a son named Rattan Rai. Rattan Rai grew up as a devout Sikh, following Guru Ji's teachings and keeping unshorn hair.

Years later, Rattan Rai discovered a mark on his head and learned about Guru Ji's sacrifice. He desired to see Guru Ji but found out that Guru Gobind Rai had become the successor. Rattan Rai, his mother, and ministers journeyed to Anandpur Sahib with gifts.

At Anandpur Sahib, Rattan Rai offered his gifts and requested the Sikh faith. Guru Ji granted his request and bestowed spiritual teachings. Rattan Rai and his entourage enjoyed kirtan and Guru Ji's sermons during their stay.

Before leaving, Raja Rattan Rai asked Guru Ji for guidance to live a life detached from worldly desires. Guru Ji composed Gurbani, found in the 21st to 30th Pauri of Akal Ustat in Sri Dasam Granth, to fulfill his request.

Translation in Hindi

Stanza 1

ੴ सतिगुर प्रसाद ॥ पातिसाही १० ॥ त्व प्रसाद ॥ सवय्ये ॥ स्रावग सुद्ध समूह सिधान के देख फिरिओ घर जोग जती के ॥ सूर सुरारदन सुद्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥ सारे ही देस को देख रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥ स्री भगवान की भाए कृपा हू ते एक रत्ती बिन एक रत्ती के ॥१॥२१॥

एक अनंत प्रभु जो गुरु कृपा से पाया। उन्ही की कृपा से सवैये लिखे पातिशाही दसवीं ने।

मैंने अपनी यात्राओं के दौरान शुद्ध श्रावकों (जैन और बौद्ध भिक्षुओं), अनेक सिद्ध योगी यति देखे हैं। अनेक देवताओं को मारते राक्षस, अमृत पीते देवता और विभिन्न मतों के संतों की सभाएं देखी हैं। मैंने सभी देशों की धार्मिक व्यवस्थाओं के अनुशासन तो देखे हैं, परंतु प्रभु मिलाप की युक्ति बता पाने वाला कोई नहीं देखा। इन सभी अनुशासन मार्गों का भाव एक रत्ती बराबर भी नहीं है, क्योंकि ये सभी श्री भगवान जी के प्रेम से रहित हैं।

Stanza 2

माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥ कोट तुरंग कुरंग से कूदत पौन के गौन को जात निवारे ॥ भारी भुजान के भूप भली बिध निआवत सीस न जात बिचारे ॥ एते भए तो कहा भए भूपत अंत को नाँगे ही पाँए पधारे ॥२॥२२॥

स्वर्ण जड़ित सुंदर कद काठी के, संदूर से सजे हाथी रखने वाला, वा मृगों की भांति वायुगति से दौड़ने वाले कोटिन अश्वों का स्वामी, भारी बाहुबल वाला राजा जिन्हे अनेक लोग नतमस्तक होते हों। इतने ऐश्वर्य का क्या लाभ जब अंत समय नंगे पाँव अर्थात प्रेम-विहीन ही संसार से गमन कर गए?

Stanza 3

जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल मृदंग नगारे ॥ गुँजत गूड़ गजान के सुँदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥ भूत भविक्ख भवान के भूपत कौन गनै नहीं जात बिचारे ॥ स्री पत स्री भगवान भजे बिन अंत कौ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥

देश देशांतरों को विजयी करने वाले जिनके दसों दिशाओ में विजयी मृदंग व ढोल बजते हों। हजारों हाथियों व दरियाई घोड़ों के झुंड जिनके दलों में गुंजायमान होते हों। ऐसे ऐश्वर्य वाले नरेश भूतकाल में कितने हो चुके, वर्तमान में कितने हैं व भविष्य में कितने होंगे, कौन गणना कर सकता है? लेकिन श्री पति श्री भगवान जी से विमुख, ऐसे नरेश भी खाली चले गए, जा रहे हैं वा खाली जाएंगे।

Stanza 4

तीरथ न्हान दया दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥ बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥ पौन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजार क देखै ॥ स्री भगवान भजे बिन भूपत एक रत्ती बिन एक न लेखै ॥४॥२४॥

पवित्र स्थानों पर स्नान करना, दया करना, वासनाओं पर नियंत्रण रखना, दान के कार्य करना, तपस्या करना और कई विशेष अनुष्ठान करना। वेदों, पुराणों और पवित्र कुरान का अध्ययन करना और इस लोक और परलोक का अध्ययन करना। केवल वायु पर निर्वाह करना, संयम का अभ्यास करना और सभी अच्छे विचारों वाले ऐसे हजारों लोगों से मिल कर देख लिया। लेकिन श्री भगवान के भजन बिना सभी अनुशासन कौड़ी की कीमत के भी नहीं।

Stanza 5

सुद्ध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥ भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥ तोर अरीन मरोर मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥ स्री पति स्री भगवान कृपा बिन त्याग जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥

प्रशिक्षित सैनिक, शक्तिशाली और अजेय, शस्त्रों से सुसज्जित योद्धा, जो दुश्मनों को कुचलने में सक्षम हों। उनके मन में बड़ा अहंकार था कि पर्वत भी पंख लगाकर हिल जाएं तो भी वे परास्त नहीं होंगे। वे शत्रुओं का नाश कर देंगे, विद्रोहियों को मरोड़ देंगे और मतवाले हाथियों का घमंड चूर-चूर कर देंगे। लेकिन श्री पति श्री भगवान की कृपा के बिना, वे अंततः दुनिया छोड़ देंगे और उनका घमंड बहादुरी धरी की धरी रह जाएगी ।

Stanza 6

बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछय्या ॥ तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मलय्या ॥ गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लवय्या ॥ साहिब स्री सभ को सिरनायक जाचक अनेक सु एक दिवय्या ॥६॥२६॥

असंख्य वीर और पराक्रमी निडर होकर तलवार की धार का सामना करते हैं, देशों को जीतना, विद्रोहियों को अपने अधीन करना और वे मतवाले हाथियों का घमंड चूर करने वाले हैं। मजबूत किलों पर कब्ज़ा करने वाले और केवल डरावे व धमकियों से ही विरोधी को जीत लेने वाले हैं। ऐसे वीरों पराक्रमियों का शिरोमणि नायक भी वही प्रभु है जो इन सभी मांगने वालों पर अपनी कृपा बरसा रहा है।

Stanza 7

दानव देव फनिंद निसाचर भूत भविक्ख भवान जपैंगे ॥ जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥ पुँन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुँज खपैंगे ॥ साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अविलोक चपैंगे ॥७॥२७॥

दानव, देवता, विशाल नाग, भूत, वर्तमान और भविष्य उनका नाम दोहराते हैं। समुद्र और भूमि पर सभी प्राणियों की उत्पत्ति व विकास वह एक पल में करने में सक्षम है। प्रभु के सुमिरन से पुण्य कर्मों का तेज बढ़ता है व जय जयकार की ध्वनि से अनेक पाप नाश हो जाते हैं। प्रभु भक्ति में लीन साधु समूह प्रसन्नता से फिरते हैं और उनके शत्रुओं का नाश हो जाता है।

Stanza 8

मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन तृलोक को राज करैंगे ॥ कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअंबर साज बरैंगे ॥ ब्रह्म महेसर बिसन सचीपत अंत फसे जम फास परैंगे ॥ जे नर स्रीपत के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥

मनुष्यों के राजा मानवेंद्र और हाथियों के राजा गजेन्द्र, वा कुबेर सम्राट जो तीनों लोकों पर शासन करते हैं। जो लाखों तीर्थ स्नान, हाथियों और अन्य जानवरों को दान करके और अनेक स्वयंवरों (स्व-विवाह समारोह) से स्त्री की प्राप्ति कर रहे हैं। ब्रह्मा विष्णु महेश व शचीपति इन्द्र इत्यादि भी अंत में मृत्यु जाल में फंस जाते हैं। सिर्फ वही परमगति को प्राप्त होंगे व देह नहीं धारण करेंगे जो श्री पति प्रभु चरणों को परसेंगे।

Stanza 9

कहा भयो जो दोऊ लोचन मूँद कै बैठ रहिओ बक ध्यान लगायो ॥ न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रन लोक गयो परलोक गवायो ॥ बास कीओ बिखिआन सों बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बितायो ॥ साच कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो ॥९॥२९॥

अगर कोई वक्क की तरह आंखें बंद करके बैठ जाए और ध्यान करे तो उसका क्या फायदा? यदि वह सातवें समुद्र तक के तीर्थों में स्नान करता है, तो वह इस लोक के साथ-साथ परलोक को भी खो देता है। वह अपना जीवन ऐसे ही मिथ्या कर्मों में व्यतीत करता है और ऐसे ही कर्मकांडों में अपना जीवन बर्बाद कर देता है। मैं सत्य बोलता हूं, सभी सुनें इस बात को, जो सच्चे प्रेम में लीन है, श्री भगवान की प्राप्ति उन्हें ही होगी।

Stanza 10

काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकायो ॥ काहू लखिओ हर अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीस निवायो ॥ कोऊ बुतान को पूजत है पसु कोऊ मृतान को पूजन धायो ॥ कूर क्रिया उरझियो सभ ही जग स्री भगवान को भेद न पायो ॥१०॥३०॥

किसी ने पत्थर को पूजकर उसे सिर पर बैठा लिया। किसी ने उसका शिवलिंग बनाकर गले में लटका लिया। हिन्दू ने ईश्वर का निवास दक्षिण दिशा में मान लिया व मुस्लिम ने भगवान की कल्पना कर पश्चिम दिशा में सिर झुकाया। कोई पशु-वृति मूर्ख केवल मूर्तियों की पूजा करता है और कोई मुर्दों की पूजा करने जाता है। सारा संसार मिथ्या कर्मकांडों में उलझा हुआ है और प्रभु-ईश्वर के रहस्य को नहीं जान पाया है।

भावार्थ: प्रभु भक्ति को त्याग कर मिथ्या कर्मकांडों से तत्व का बोध किसी को न हुआ, न होगा। जगत ऐश्वर्य में डूबा है व कोई विरला उस प्रभु के प्यार में डूब कर पार हो रहा है। मुक्त वही होता है जो प्रभु द्वारा रची सृष्टि में रह कर उसके हरेक जीव से प्यार करता है, प्रेम के रास्ते ही वह जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।

Tags: dasam granthguru gobind singhNitnemTav Parsad SavaiyeTav Prasad SavaiyeTav Prasad Savaiye in Hindi
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