Mori Ahung Jaye Darsan Pavat Hai
Mori Mori Ahung Jaye Darsan Pavat Hey, Rachoh Nath Hi Sahayi Santna, Ab Charan Gahey; is Pious Mukhwak of Sri Guru Arjan Dev Ji, Raag Bilawal, documented on Page 830 of Sri Guru Granth Sahib Ji.
Hukamnama | Satgur Ki Sewa Safal Hai |
Place | Darbar Sri Harmandir Sahib Ji, Amritsar |
Ang | 830 |
Creator | Guru Arjan Dev Ji |
Raag | Bilawal |
Hukamnama English Translation
Bilawal Mahala Panjva ( Mori Ahung Jaye Darsan Pavat Hey... )
O Brother! I have got over my egoistic tendencies by having a glimpse of the Lord and have united with the True Master who is the supporter of the holy saints. I have sought the support of the Lord by taking hold of His lotus-feet. (Pause - 1)
Now I do not like anything else except the lotus-feet of the beloved Lord and do not wish (desire) for anything else except the pure and holy feet of the Lord. Now my prayer to the Lord is that I may be imbued with His love (so much) just as a black wasp gets enamoured with the fragrance of the lotus-flower and then loses his life even, being engrossed in its love. Now I also seek only the boon of the Lord's True Name, irrespective of any other charm.(1)
O Brother! When we cast away our dual-mindedness and attain salvation from the worldly bondage and rise above the greed (love) of the sensual pleasures and partake the nectar of True Name, we get freedom from the vicious and sinful actions in the company of the holy saints, following the loving path of the Lord's attainment. O Nanak! This world, engrossed in dual-mindedness, is never real and true, as such we have developed love for the lotus-feet of the Lord now. (2-2-129)
Punjabi Translation by Prof Sahib Singh
ਹੇ ਭਾਈ! ਸੰਤਾਂ ਦੇ ਸਹਾਈ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿਚ ਸਦਾ ਜੁੜੇ ਰਹੋ। ਮੈਂ ਤਾਂ ਹੁਣ ਉਸੇ ਦੇ ਹੀ ਚਰਨ ਫੜ ਲਏ ਹਨ। ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਦਰਸਨ ਕਰਨ ਨਾਲ ਮੇਰੀ ਹਉਮੈ ਦੂਰ ਹੋ ਗਈ ਹੈ।੧।ਰਹਾਉ।
(ਹੇ ਭਾਈ! ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰਸਨ ਦੀ ਬਰਕਤ ਨਾਲ) ਮੇਰੇ ਮਨ ਨੂੰ ਹੋਰ ਕੁਝ ਭੀ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਲੱਗਦਾ, (ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰਸਨ ਨੂੰ ਹੀ) ਤਾਂਘਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਜਿਵੇਂ ਭੌਰਾ ਕੌਲ-ਫੁੱਲ ਦੀ ਧੂੜੀ ਵਿਚ ਲਪਟਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਤਿਵੇਂ ਮੇਰਾ ਮਨ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਲ ਹੀ ਮੁੜ ਮੁੜ ਪਰਤਦਾ ਹੈ। ਮੇਰਾ ਮਨ ਹੋਰ (ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ) ਸੁਆਦਾਂ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਲੋੜਦਾ, ਇਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਲੱਭਦਾ ਹੈ।੧।
(ਹੇ ਭਾਈ! ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਦਰਸਨ ਦੀ ਬਰਕਤ ਨਾਲ) ਹੋਰ (ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਮੋਹ) ਤੋਂ ਸੰਬੰਧ ਤੋੜ ਲਈਦਾ ਹੈ, ਇੰਦ੍ਰੀਆਂ ਦੇ ਪਕੜ ਤੋਂ ਖ਼ਲਾਸੀ ਪਾ ਲਈਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਮਨ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਸੰਗਤਿ ਵਿਚ ਰਹਿ ਕੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ-ਰਸ ਚੁੰਘੀਦਾ ਹੈ, ਤੇ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਵਲੋਂ ਬ੍ਰਿਤੀ) ਪਰਤ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ! ਆਖ-) ਹੇ ਭਾਈ! (ਦਰਸਨ ਦੀ ਬਰਕਤ ਨਾਲ) ਹੋਰ ਮੋਹ ਉੱਕਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਭਾਉਂਦਾ, ਹਰ ਵੇਲੇ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਪਿਆਰ ਬਣਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।੨।੨।੧੨੯।
बिलावलु महला ५ ॥ मोरी अहं जाइ दरसन पावत हे ॥ राचहु नाथ ही सहाई संतना ॥ अब चरन गहे ॥१॥ रहाउ॥ आहे मन अवरु न भावै चरनावै चरनावै उलझिओ अलि मकरंद कमल जिउ ॥ अन रस नही चाहै एकै हरि लाहै ॥१॥ अन ते टूटीऐ रिख ते छूटीऐ ॥ मन हरि रस घूटीऐ संगि साधू उलटीऐ ॥ अन नाही नाही रे ॥ नानक प्रीति चरन चरन हे ॥२॥२॥१२९॥
Hukamnama meaning in Hindi:
यह शबद गुरु अर्जन देव जी द्वारा रचित है, जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में राग बिलावल में पन्ना 830 पर संकलित है।
शबद का सरलार्थ:
बिलावलु महला ५ मोरी अहं जाइ दरसन पावत हे ॥
हे प्रभु! जब मुझे आपका दर्शन प्राप्त होता है, तो मेरा अहंकार समाप्त हो जाता है।
राचहु नाथ ही सहाई संतना ॥ अब चरन गहे ॥१॥ रहाउ॥
हे प्रभु! मैंने अब आपके चरण पकड़ लिए हैं, मुझे सिर्फ संतों का सहारा चाहिए। आप ही मेरे स्वामी और सहायक हैं।
आहे मन अवरु न भावै चरनावै चरनावै उलझिओ अलि मकरंद कमल जिउ ॥
हे मन! अब मुझे और किसी वस्तु में रुचि नहीं है। जैसे मधुमक्खी कमल के मकरंद में उलझ जाती है, वैसे ही मेरा मन प्रभु के चरणों में उलझ गया है।
अन रस नही चाहै एकै हरि लाहै ॥१॥
अब मुझे कोई दूसरा रस नहीं भाता। मुझे सिर्फ एक ही आनंद चाहिए, और वह है हरि का सुमिरन।
अन ते टूटीऐ रिख ते छूटीऐ ॥ मन हरि रस घूटीऐ संगि साधू उलटीऐ ॥
दूसरे पदार्थों से बंधन तोड़ कर, और दुर्गुणों से छूट कर, मेरा मन अब साधु संगति में हरि के रस में डूब गया है।
अन नाही नाही रे ॥ नानक प्रीति चरन चरन हे ॥२॥२॥१२९॥
हे नानक, अब मुझे कोई अन्य चीज़ नहीं चाहिए। मेरी प्रेम की डोर प्रभु के चरणों में बंध गई है।
भावार्थ:
गुरु अर्जन देव जी इस शबद में बता रहे हैं कि जब मनुष्य को प्रभु का सच्चा दर्शन और अनुभूति होती है, तो उसका अहंकार मिट जाता है। उसे संसार के अन्य सुखों में कोई रुचि नहीं रह जाती, वह सिर्फ हरि के नाम और सुमिरन में लीन हो जाता है। इस अवस्था में मनुष्य संतों की संगति में रहते हुए प्रभु के चरणों में सच्चा आनंद प्राप्त करता है।