जीवन वृत्तान्त श्री गुरु हरिराय जी
Jivan Vritant Sri Guru Har Rai Ji - is a Book in Hindi published by Krantikari Jagat Guru Nanak Dev Charitable Trust, Chandigarh. Written by S. Jasbir Singh, It covers the History and Life Journey of the 7th Sikh Guru Sri Guru Har Rai Ji Maharaj in Brief.
Book | जीवन वृत्तान्त श्री गुरु हरिराय जी |
Writer | S. Jasbir Singh |
Pages | 28 |
Language | Hindi |
Script | Devnagari |
Size | 4.45 MB |
Format | |
Publisher | Krantikari Jagat Guru Nanak Dev Charitable Trust, Chandigarh [Public Domain] |
जीवन वृत्तान्त श्री गुरु हरिराय जी - क्रांतिकारी जगतगुरु नानक देव चेरीटेबल ट्रस्ट, चंडीगढ़ द्वारा प्रकाशित हिंदी पुस्तक है। स. जसबीर सिंघ द्वारा लिखी इस पुस्तक में सातवें सिख गुरु श्री गुरु हरिराय जी महाराज के इतिहास और जीवन यात्रा पर सरल भाषा में प्रकाश डाला गया है।
Sri Guru Har Rai Ji Biography Hindi Book - Index
1. पौत्र हरिराय जी को गुरयाई सौंपना
2. परिचय श्री गुरू हरिराय जी
3. दामन संकोच कर चलो
4. दैनिक जीवन
5. युवराज दारा शिकोह का कीरतपुर आगमन
6. बिहार 'गया' का संन्यासी भगवान गिरि
7. भाई जीवन जी
8. बालक फूल व संदली
9. समृद्धि के लिए गुरू चरणों में प्रार्थना
10. भाई गौरा जी
11. भाई पुंगर जी
12. भाई फेरू जी
13. भाई काले दुलट जी
14. गुरु वाणी का आदर
15. वाणी की महिमा
16. गुरू दंभ का परिणाम
17. असहाय वर्ग का मसीहा
18. दारा शिकोह और सत्ता परिवर्तन
19. औरंगजेब के कट्टरवाद का विरोध्
20. रामराय का दिल्ली दरबार के लिए प्रस्थान
21. श्री गुरू हरिराय जी का देहावसान
Synopsis:
श्री गुरू हरिगोविन्द साहब के पाँच पुत्रा थे किन्तु दो पुत्रों ने स्वेच्छा से योग बल द्वारा शरीर त्याग दिया था। आप के सबसे छोटे पुत्रा त्यागमल, जिस का नाम बदल कर आपने तेग बहादुर रखा था, बहुत ही योग्य थे किन्तु आप तो विद्याता की इच्छा को मद्देनजर रख के अपने छोटे पौत्रा हरिराय को बहुत प्यार करते और उनके प्रशिक्षण पर विशेष बल दे रहे थे।
आप की दृष्टि में वही सर्वगुण सम्पन्न थे और वही गुरू नानक की गद्दी के उत्तराध्किारी बनने की योग्यता रखते थे। अतः आपने एक दिन यह निर्णय समस्त संगत के सामने रख दिया। संगत में से बहुत से निकटवर्तियों ने कहा - आप तो बिल्कुल स्वस्थ हैं, फिर यह निर्णय कैसा ? किन्तु गुरूदेव जी ने उत्तर दिया - प्रभु इच्छा अनुसार वह समय आ गया है, जब हमने इस मानव शरीर को त्याग कर प्रभु चरणों में विलीन होना है।
आपने निकट के क्षेत्र में बसे सभी अनुयायियों को संदेश भेज दिया कि हमने अपने उत्तराध्किारी की नियुक्ति करनी है, अतः समय अनुसार संगत इक्ट्ठी हो ? संगत के एकत्रित होने पर तीन दिन हरियश में कीर्तन होता रहा, समाप्ति पर आपने पौत्र हरिराय जी को अपने सिहांसन पर विराजमान किया और उनकी परिक्रमा की, इसके साथ ही एक थाल में गुरू परम्परा अनुसार कुछ सामग्री उन को भेंट की।
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Gurfateh ji. Good read for Hindi readers.