जीवन वृत्तान्त श्री गुरु हरिकृष्ण जी
Jivan Vritant Guru Harkrishan Sahib Ji - is a Book in Hindi published by Krantikari Jagat Guru Nanak Dev Charitable Trust, Chandigarh. Written by S. Jasbir Singh, It covers the History and Life Journey of the 8th Sikh Guru Sri Guru Harkrishan Sahib Ji Maharaj in Brief.
Book | जीवन वृत्तान्त श्री गुरु हरिकृष्ण जी |
Writer | S. Jasbir Singh |
Pages | 13 |
Language | Hindi |
Script | Devnagari |
Size | 4.08 MB |
Format | |
Publisher | Krantikari Jagat Guru Nanak Dev Charitable Trust, Chandigarh [Public Domain] |
जीवन वृत्तान्त श्री गुरु हरिकृष्ण साहिब जी - क्रांतिकारी जगतगुरु नानक देव चेरीटेबल ट्रस्ट, चंडीगढ़ द्वारा प्रकाशित हिंदी पुस्तक है। स. जसबीर सिंघ द्वारा लिखी इस पुस्तक में आठवें सिख गुरु श्री गुरु हरिकृष्ण जी महाराज के इतिहास और जीवन यात्रा पर सरल भाषा में प्रकाश डाला गया है।
Sri Guru Harkrishan Sahib Ji Biography Hindi Book - Index
1. जीवन वृत्तान्त श्री गुरू हरिकृष्ण साहब जी
2. गुरूगद्दी की प्राप्ति
3. नन्हें गुरु के नेतृत्त्व में
4. कुष्ठ रोगी का आरोग्य होना
5. श्री गुरू हरिकृष्ण जी को सम्राट द्वारा निमन्त्रण
6. एक ब्राह्मण की शंका का समाधान
7. श्री गुरू हरिकृष्ण जी दिल्ली पधारे
8. दिल्ली में महामारी का आतंक
9. देहावसान
Synopsis Jivan Vritant Guru Harkrishan:
श्री गुरू हरिकृष्ण साहिब जी का प्रकाश(जन्म) श्री गुरू हरिराय जी के गृह, माता किशन कौर की कोख से संवत 1713 सावन माह शुक्ल पक्ष 8 को तदानुसार 23 जुलाई 1656 को कीरतपुर, पँजाब में हुआ। आप हरिराय जी के छोटे पुत्र थे।
आपके बड़े भाई रामराय आप से 10 वर्ष बड़े थे। श्री हरिकृष्ण जी का बाल्यकाल अत्यन्त लाड़ प्यार से व्यतीत हुआ। परिवारजन तथा अन्य निकटवर्ती लोगों को बाल हरिकृष्ण जी के भोले भाले मुख मण्डल पर एक अलौकिक आभा छाई दिखाई देती थी, नेत्रों में करूणा के भाव दृष्टिगोचर होते थे। छोटे से व्यक्तित्त्व में गजब का ओज रहता था। उनका दर्शन करने मात्रा से एक आत्मिक सुख सा मिलता था।
गुरू हरिराय अपने इस नन्हें से बेटे की ओर दृष्टि डालते तो उन्हें प्रतीत होता था कि जैसे प्रभु स्वयँ मानव रूप धरण कर किसी महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस घर में पधारे हों। भाव, श्री हरिकृष्ण में उन्हें ईश्वरीय पूर्ण प्रतिबिम्ब नजर आता। वह हरिकृष्ण के रूप में ऐसा पुत्र पाकर परम सन्तुष्ट थे।
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