Rehras Sahib in Hindi
Recite Rehras Sahib Complete Path in Hindi with Precise Pronunciation. We have written full Path including Slokas, Chaupai Sahib for Nitnem Sangat who prefers doing Path in Hindi.
Path | Rehras Sahib |
Source | Guru Granth Sahib, Dasam Granth Sahib |
Language | Hindi |
Script | Devnagari |
Creators | Guru Nanak Dev Ji, Guru Gobind Singh and Other Gurus |
हरि जुग जुग भगत उपाया पैज रखदा आया राम राजे ॥ हरणाखस दुसट हरि मारेया प्रहलाद तराया ॥ अहंकारीआं निंदका पिठ देए नामदेओ मुख लाया ॥ जन नानक ऐसा हरि सेवेया अंत लए छडाया ॥४॥१३॥२०॥
ੴ सतगुर प्रसाद सलोक महल्ला पहला ॥ दुख दारू सुख रोग भया जा सुख ताम न होई ॥ तूं करता करणा मै नाही जा हौ करी न होई ॥१॥ बलिहारी कुदरत वसेया ॥ तेरा अंत न जाई लखेया ॥१॥ रहाओ ॥ जात महि जोत जोत महि जाता अकल कला भरपूर रहया॥ तूं सचा साहिब सिफत सुआल्हियो जिन कीती सो पार पया ॥ कहु नानक करते कीआ बाता जो किछ करणा सु कर रहया ॥२॥
सो दर राग आसा महला १ ੴ सतगुर प्रसाद ॥ सो दर तेरा केहा सो घर केहा जित बहि सरब समाले ॥ वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥ केते तेरे राग परी स्यों कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥ गावन तुधनो पवण पाणी बैसंतर गावै राजा धरम दुआरे ॥ गावन तुधनो चित गुपत लिख जाणन लिख लिख धरम बीचारे ॥ गावन तुधनो ईसर ब्रह्मा देवी सोहन तेरे सदा सवारे ॥ गावन तुधनो इंद्र इंद्रासण बैठे देवतेआं दर नाले ॥ गावन तुधनो सिध समाधी अंदर गावन तुधनो साध बीचारे ॥
गावन तुधनो जती सती संतोखी गावन तुधनो वीर करारे ॥ गावन तुधनो पंडित पड़न रखीसुर जुग जुग वेदा नाले ॥ गावन तुधनो मोहणीआ मन मोहन सुरग मछ पयाले ॥ गावन तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठ तीरथ नाले ॥ गावन तुधनो जोध महाबल सूरा गावन तुधनो खाणी चारे ॥ गावन तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा कर कर रखे तेरे धारे ॥ सेई तुधनो गावन जो तुध भावन रते तेरे भगत रसाले ॥ होर केते तुधनो गावन से मै चित न आवन नानक क्या बीचारे ॥ सोई सोई सदा सच साहिब साचा साची नाई ॥ है भी होसी जाय न जासी रचना जिन रचाई ॥ रंगी रंगी भाती कर कर जिनसी माया जिन उपाई ॥ कर कर देखै कीता आपणा ज्यों तिस दी वडिआई ॥ जो तिस भावै सोई करसी फिर हुकम न करणा जाई ॥ सो पातिसाहु साहा पतिसाहिब नानक रहण रजाई ॥१॥
आसा महल्ला पहला ॥ सुण वडा आखै सभ कोए ॥ केवड वडा डीठा होए ॥ कीमत पाए न कहया जाए ॥ कहणै वाले तेरे रहे समाए ॥१॥ वडे मेरे साहिबा गहर गंभीरा गुणी गहीरा ॥ कोए न जाणै तेरा केता केवड चीरा ॥१॥ रहाओ ॥ सभ सुरती मिल सुरत कमाई ॥ सभ कीमत मिल कीमत पाई ॥ ज्ञानी ध्यानी गुर गुरहाई ॥ कहण न जाई तेरी तिल वडिआई ॥२॥ सभ सत सभ तप सभ चंगयाईआ ॥ सिधा पुरखा कीआ वडियाईआ ॥ तुध विण सिधी किनै न पाईआ ॥ करम मिलै नाही ठाक रहाईआ ॥३॥ आखण वाला क्या वेचारा ॥ सिफती भरे तेरे भंडारा ॥ जिस तू देहि तिसै क्या चारा ॥ नानक सच सवारणहारा ॥४॥२॥
आसा महल्ला पहला ॥ आखा जीवा विसरै मर जाओ ॥ आखण औखा साचा नाओ ॥ साचे नाम की लागै भूख ॥ उत भूखै खाए चलीअहि दूख ॥१॥ सो क्यों विसरै मेरी माए ॥ साचा साहिब साचै नाए ॥१॥ रहाओ ॥ साचे नाम की तिल वडिआई ॥ आख थके कीमत नही पाई ॥ जे सभ मिल कै आखण पाहि ॥ वडा न होवै घाट न जाए ॥२॥ ना ओहो मरै न होवै सोग ॥ देंदा रहै न चूकै भोग ॥ गुण एहो होर नाही कोए ॥ ना को होआ ना को होए ॥३॥ जेवड आप तेवड तेरी दात ॥ जिन दिन कर कै कीती रात ॥ खसम विसारहि ते कमजात ॥ नानक नावै बाझ सनात ॥४॥३॥
राग गूजरी महल्ला चौथा ॥ हर के जन सतिगुर सतपुरखा बिनौ करौ गुर पास ॥ हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई कर दया नाम परगास ॥१॥ मेरे मीत गुरदेव मो कौ राम नाम परगास ॥ गुरमत नाम मेरा प्रान सखाई हर कीरत हमरी रहरास ॥१॥ रहाओ ॥ हर जन के वड भाग वडेरे जिन हर हर सरधा हर प्यास॥ हर हर नाम मिलै त्रिपतासह मिल संगत गुण परगास ॥२॥ जिन हर हर हर रस नाम न पाया ते भागहीण जम पास ॥ जो सतिगुर सरण संगत नही आए ध्रिग जीवे ध्रिग जीवास ॥३॥ जिन हर जन सतिगुर संगत पाई तिन धुर मसतक लिखिआ लिखास ॥ धन धंन सतसंगत जित हर रस पाया मिल जन नानक नाम परगास ॥४॥४॥
राग गूजरी महल्ला पंजवाँ ॥ काहे रे मन चितवहि उदम जा आहर हर जीओ परेया ॥ सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजक आगै कर धरेया ॥१॥ मेरे माधौ जी सतसंगत मिले सु तरेया ॥ गुर परसाद परम पद पाया सूके कासट हरेया ॥१॥ रहाओ ॥ जनन पिता लोक सुत बनिता कोए न किस की धरेया ॥ सिर सिर रिजक स्मबाहे ठाकुर काहे मन भौ करेया ॥२॥ ऊडे ऊड आवै सै कोसा तिस पाछै बचरे छरेया ॥ तिन कवण खलावै कवण चुगावै मन महि सिमरन करेया ॥३॥ सभ निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरेया ॥ जन नानक बल बल सद बल जाईऐ तेरा अंत न पारावरेया ॥४॥५॥
राग आसा महल्ला चौथा सो पुरख ੴ सतगुर प्रसाद ॥
सो पुरख निरंजन हर पुरख निरंजन हर अगमा अगम अपारा ॥ सभ ध्यावहि सभ ध्यावहि तुध जी हर सचे सिरजणहारा ॥ सभ जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥ हर ध्यावहु संतहु जी सभ दूख विसारणहारा ॥ हर आपे ठाकुर हर आपे सेवक जी क्या नानक जंत विचारा ॥१॥
तूं घट घट अंतर सरब निरंतर जी हर एको पुरख समाणा ॥ इक दाते इक भेखारी जी सभ तेरे चोज विडाणा ॥ तूं आपे दाता आपे भुगता जी हौ तुध बिन अवर न जाणा ॥ तूं पारब्रहम बेअंत बेअंत जी तेरे क्या गुण आख वखाणा ॥ जो सेवहि जो सेवहि तुध जी जन नानक तिन कुरबाणा ॥२॥
हर ध्यावहि हर ध्यावहि तुध जी से जन जुग महि सुखवासी ॥ से मुकत से मुकत भए जिन हर ध्याया जी तिन तूटी जम की फासी ॥ जिन निरभौ जिन हर निरभौ ध्याया जी तिन का भौ सभ गवासी ॥ जिन सेवेया जिन सेवेया मेरा हर जी ते हर हर रूप समासी ॥ से धंन से धंन जिन हर ध्याया जी जन नानक तिन बल जासी ॥३॥
तेरी भगत तेरी भगत भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥ तेरे भगत तेरे भगत सलाहन तुध जी हर अनिक अनेक अनंता ॥ तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हर पूजा जी तप तापहि जपहि बेअंता ॥ तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिमृत सासत जी कर किरिया खट करम करंता ॥ से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हर भगवंता ॥४॥
तूं आद पुरख अपरंपर करता जी तुध जेवड अवर न कोई ॥ तूं जुग जुग एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचल करता सोई ॥ तुध आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि स होई ॥ तुध आपे सृसट सभ उपाई जी तुध आपे सिरज सभ गोई ॥ जन नानक गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥ आसा महला ४ ॥ तूं करता सचिआर मैडा सांई ॥ जो तौ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हौ पाई ॥१॥ रहाओ ॥ सभ तेरी तूं सभनी ध्याया ॥ जिस नो कृपा करहि तिन नाम रतन पाया ॥ गुरमुख लाधा मनमुख गवाया ॥ तुध आप विछोड़ेया आप मिलाया ॥१॥ तूं दरीयाओ सभ तुझ ही माहि ॥ तुझ बिन दूजा कोई नाहि ॥ जीअ जंत सभ तेरा खेल ॥ विजोग मिल विछुड़िआ संजोगी मेल ॥२॥ जिस नो तू जाणाइह सोई जन जाणै ॥ हर गुण सद ही आख वखाणै ॥ जिन हर सेवेया तिन सुख पाया ॥ सहजे ही हर नाम समाया ॥३॥
तू आपे करता तेरा कीआ सभ होए ॥ तुधु बिनु दूजा अवर न कोए ॥ तू कर कर वेखह जाणह सोए ॥ जन नानक गुरमुख परगट होए ॥४॥२॥ आसा महला १ ॥ तित सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावक तिनह कीआ ॥ पंकज मोह पग नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥ मन एक न चेतस मूड़ मना ॥ हर बिसरत तेरे गुण गलेआ ॥१॥ रहाओ ॥ ना हौ जती सती नही पड़ेआ मूरख मुगधा जनम भया ॥ प्रणवत नानक तिन की सरणा जिन तू नाही वीसरेया ॥२॥३॥
आसा महल्ला पंजवाँ॥ भई परापत मानुख देहुरीआ ॥ गोबिंद मिलण की एह तेरी बरीआ ॥ अवर काज तेरै कितै न काम ॥ मिल साधसंगत भज केवल नाम ॥१॥ सरंजाम लाग भवजल तरन कै ॥ जनम ब्रिथा जात रंग माया कै ॥१॥ रहाओ ॥ जप तप संजम धरम न कमाया ॥ सेवा साध न जानेया हर राया ॥ कहु नानक हम नीच करमा ॥ सरण परे की राखहु सरमा ॥२॥४॥
पातशाही दसवीं कबयो बाच बेनती ॥ चौपई ॥
हमरी करो हाथ दै रच्छा ॥ पूरन होए चित की इच्छा ॥ तव चरनन मन रहै हमारा ॥ अपना जान करो प्रतिपारा ॥३७७॥ हमरे दुसट सभै तुम घावहु ॥ आप हाथ दै मोहि बचावहु ॥ सुखी बसै मोरो परिवारा ॥ सेवक सिक्ख सभै करतारा ॥३७८॥ मो रच्छा निज कर दै करियै ॥ सभ बैरन को आज संघरियै ॥ पूरन होए हमारी आसा ॥ तोर भजन की रहै प्यासा ॥३७९॥
तुमह छाड कोई अवर न धयाऊं ॥ जो बर चहों सु तुम ते पाऊं ॥ सेवक सिक्ख हमारे तारीअह ॥ चुन चुन सत्र हमारे मारीअहि ॥३८०॥ आप हाथ दै मुझै उबरियै ॥ मरन काल का त्रास निवरियै ॥ हूजो सदा हमारे पच्छा ॥ स्री असिधुज जू करियहु रच्छा ॥३८१॥ राख लेहु मोहि राखनहारे ॥ साहिब संत सहाय प्यारे ॥ दीन बंधु दुसटन के हंता ॥ तुम हो पुरी चतुर दस कंता ॥३८२॥
काल पाए ब्रह्मा बप धरा ॥ काल पाए सिवजू अवतरा ॥ काल पाए कर बिसन प्रकासा ॥ सकल काल का कीया तमासा ॥३८३॥ जवन काल जोगी सिव कीयो ॥ बेद राज ब्रह्मा जू थीओ ॥ जवन काल सभ लोक सवारा ॥ नमसकार है ताहि हमारा ॥३८४॥ जवन काल सभ जगत बनायो ॥ देव दैत जच्छन उपजायो ॥ आदि अंत एकै अवतारा ॥ सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥ नमसकार तिस ही को हमारी ॥ सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सिवगुन सुख दीयो ॥ सत्रुन को पल मो बध कीओ ॥३८६॥ घट घट के अंतर की जानत ॥ भले बुरे की पीर पछानत ॥ चीटी ते कुँचर असथूला ॥ सभ पर कृपा दृसटि कर फूला ॥३८७॥ संतन दुख पाए ते दुखी ॥
सुख पाए साधुन के सुखी ॥ एक एक की पीर पछानैं ॥ घट घट के पट पट की जानैं ॥३८८॥ जब उदकरख करा करतारा ॥ प्रजा धरत तब देह अपारा ॥ जब आकरख करत हो कबहूँ ॥ तुम मै मिलत देह धर सभहूँ ॥३८९॥ जेते बदन सृसट सभ धारै ॥ आप आपनी बूझ उचारै ॥ तुम सभही ते रहत निरालम ॥ जानत बेद भेद अर आलम ॥३९०॥
निरंकार नृबिकार निरलंभ ॥ आदि अनील अनाद असंभ ॥ ता का मूड़्ह उचारत भेदा ॥ जा को भेव न पावत बेदा ॥३९१॥ ता को कर पाहन अनुमानत ॥ महा मूड़्ह कछ भेद न जानत ॥ महादेव को कहत सदा सिव ॥ निरंकार का चीनत नहि भिव ॥३९२॥ आप आपनी बुधि है जेती ॥ बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥ तुमरा लखा न जाए पसारा ॥ किह बिध सजा प्रथम संसारा ॥३९३॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥ रंक भयो राव कही भूपा ॥ अंडज जेरज सेतज कीनी ॥ उतभुज खान बहुर रचि दीनी ॥३९४॥ कहूँ फूल राजा ह्वै बैठा ॥ कहूँ सिमट भि्यो संकर इकैठा ॥ सगरी सृसट दिखाए अचंभव ॥ आद जुगाद सरूप सुयंभव ॥३९५॥ अब रच्छा मेरी तुम करो ॥ सिक्ख उबार असिक्ख संघरो ॥
दुष्ट जिते उठवत उतपाता ॥ सकल मलेछ करो रण घाता ॥३९६॥ जे असिधुज तव सरनी परे ॥ तिन के दुष्ट दुखित ह्वै मरे ॥ पुरख जवन पग परे तिहारे ॥ तिन के तुम संकट सभ टारे ॥३९७॥ जो कल को इक बार धिऐ है ॥ ता के काल निकट नहि ऐहै ॥ रच्छा होए ताहि सभ काला ॥ दुस्ट अरिस्ट टरें ततकाला ॥३९८॥
कृपा दृसट तन जाहि निहरिहो ॥ ताके ताप तनक मो हरिहो ॥ रिद्ध सिद्ध घर मो सभ होए ॥ दुष्ट छाह छ्वै सकै न कोई ॥३९९॥ एक बार जिन तुमै संभारा ॥ काल फास ते ताहि उबारा ॥ जिन नर नाम तिहारो कहा ॥ दारिद दुसट दोख ते रहा ॥४००॥ खड़ग केत मै सरण तिहारी ॥ आप हाथ दै लेहु उबारी ॥ सरब ठौर मो होहो सहाई ॥ दुस्ट दोख ते लेहो बचाई ॥४०१॥
कृपा करी हम पर जगमाता ॥ ग्रंथ करा पूरन सुभराता ॥ किलबिख सकल देह को हरता ॥ दुसट दोखियन को छै करता ॥४०२॥ स्री असिधुज जब भए दयाला ॥ पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥ मन बाछत फल पावै सोई ॥ दूख न तिसै ब्यापत कोई ॥४०३॥
अड़िल ॥ सुनै गुँग जो याहि सु रसना पावई ॥ सुनै मूड़ चित लाए चतुरता आवई ॥ दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै ॥ हो जो या की एक बार चौपई को कहै ॥४०४॥
चौपई ॥ संबत सत्रह सहस भणिजै ॥ अरध सहस फुन तीन कहिजै ॥ भाद्रव सुदी असटमी रविवारा ॥ तीर सतुद्रव ग्रंथ सुधारा ॥४०५॥
स्वैया ॥ पाएं गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आँख तरे नही आनयो ॥ राम रहीम पुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मानयो ॥ सिंमृति सासत्र बेद सभै बहु भेद कहै हम एक न जानयो ॥ स्री असिपान कृपा तुमरी कर मै न कहयो सभ तोहि बखानयो ॥८६३॥
दोहरा ॥ सगल दुआर कौ छाड कै गहयो तुहारो दुआर ॥ बाँहि गहे की लाज अस गोबिंद दास तुहार ॥८६४॥
रामकली महल्ला तीजा अनंद ੴ सतगुर प्रसाद ॥ अनंद भया मेरी माए सतिगुरू मै पाया ॥ सतिगुर त पाया सहज सेती मन वजीआ वाधाईआ ॥ राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥ सबदो त गावहु हरी केरा मन जिनी वसाया ॥ कहै नानक अनंद होआ सतिगुरू मै पाया ॥१॥
ए मन मेरेया तू सदा रहु हरि नाले ॥ हरि नाल रहु तू मंन मेरे दूख सभ विसारणा ॥ अंगीकार ओहु करे तेरा कारज सभ सवारणा ॥ सभना गला समरथ सुआमी सो क्यों मनहु विसारे ॥ कहै नानक मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥
साचे साहिबा क्या नाही घर तेरै ॥ घर त तेरै सभ किछ है जिस देहि सु पावए ॥ सदा सिफत सलाह तेरी नाम मन वसावए ॥ नाम जिन कै मन वसेया वाजे सबद घनेरे ॥ कहै नानक सचे साहिब क्या नाही घर तेरै ॥३॥
साचा नाम मेरा आधारो ॥ साच नाम अधार मेरा जिन भुखा सभ गवाईआ ॥ कर सांत सुख मन आय वसेया जिन इच्छा सभ पुजाईआ ॥ सदा कुरबाण कीता गुरू विटहु जिस दीआं एह वडिआईआं ॥ कहै नानक सुणहु संतहु सबद धरहु प्यारो ॥ साचा नाम मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तित घर सभागै ॥ घर सभागै सबद वाजे कला जित घर धारीआ ॥ पंच दूत तुध वस कीते काल कंटक मारेया ॥ धुर करम पाया तुध जिन कौ सि नाम हरि कै लागे ॥ कहै नानक तह सुख होआ तित घर अनहद वाजे ॥५॥
अनद सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥ पारब्रहम प्रभ पाया उतरे सगल विसूरे ॥ दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥ संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥ सुणते पुनीत कहते पवित सतिगुर रहया भरपूरे ॥ बिनवंत नानक गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥
मुंदावणी महल्ला पंजवाँ ॥ थाल विच तिंन वसतू पईओ सत संतोख वीचारो ॥ अमृत नाम ठाकुर का पयो जिस का सभस अधारो ॥ जे को खावै जे को भुंचै तिस का होए उधारो ॥ एह वसत तजी नह जाई नित नित रख उर धारो ॥ तम संसार चरन लग तरीऐ सभ नानक ब्रह्म पसारो ॥१॥
सलोक महल्ला पंजवाँ ॥ तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई ॥ मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई ॥ तरस पया मिहरामत होई सतिगुर सजण मिलेया ॥ नानक नाम मिलै तां जीवां तन मन थीवै हरेया ॥१॥
पौड़ी॥ तिथै तू समरथ जिथै कोइ नाहि ॥ ओथै तेरी रख अगनी उदर माहि ॥ सुण कै जम के दूत नाए तेरै छड जाहि ॥ भौजल बिखम असगाहु गुर सबदी पार पाहि ॥ जिन कौ लगी प्यास अमृत सेइ खाहि ॥ कल महि एहो पुंन गुण गोविंद गाहि ॥ सभसै नो किरपाल सम्हाले साहि साहि ॥ बिरथा कोए न जाए जि आवै तुध आहि ॥९॥
सलोकु महल्ला पंजवाँ ॥ अंतर गुर आराधणा जिहवा जप गुर नाओ ॥ नेत्री सतिगुर पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाओ ॥ सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाओ ॥ कहु नानक किरपा करे जिस नो एह वथ देइ ॥ जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥ मः ५ ॥ रखे रखणहार आप उबारिअन ॥ गुर की पैरी पाए काज सवारिअन ॥ होआ आप दइयाल मनहु न विसारिअन ॥ साध जना कै संग भवजल तारिअन ॥ साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअन ॥ तिस साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥ जिस सिमरत सुख होए सगले दूख जाहि ॥२॥
सगले दूखा पापा दा नास, तेरे भजन दा परताप, वाहेगुरु
तू ठाकुर तुम पह अरदास ॥ जीओ पिंड सभ तेरी रास ॥ तुम मात पिता हम बारिक तेरे ॥ तुमरी किरपा मह सूख घनेरे ॥ कोए न जानै तुमरा अंत ॥ ऊचे ते ऊचा भगवंत ॥ सगल समग्री तुमरै सूत्र धारी ॥ तुम ते होए सु आज्ञाकारी ॥ तुमरी गत मित तुम ही जानी ॥ नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥४॥