Brahm Bindai Tis Da Brahmat Rahe
Brahm Bindai Tis Da Brahmat Rahe, Ek Shabad Liv Laaye; Composed by Third Patishahi Sri Guru Amar Dass Ji and is documented on Page 649 of Sri Guru Granth Sahib Ji : raga Sorath Ki Vaar Pauri 19th. ब्रहमु बिंदै तिस दा ब्रहमतु रहै एक सबदि लिव लाइ; वाणी श्री गुरु अमरदास जी, गुरु ग्रंथ साहिब जी के पावन अंग 649 पर राग सोरठ की वार की पौड़ी 19 वीं श्लोकों सहित।
Hukamnama | Brahm Bindai Tis Da Brahmat Rahe |
Place | Darbar Sri Harmandir Sahib Ji, Amritsar |
Ang | 649 |
Creator | Guru Amar Dass Ji |
Raag | Sorath |
English Translation
Slok Mahalla 3rd ( Brahm Bindai Tis Da Brahmat Rahe... )
The person, who is immersed in the (love of the) Guru's Word (sabad) and realises the Lord and continues to develop his knowledge. The person, who inculcates the love of the Lord in his heart, always finds all the nine treasures (nine ridhis) including eighteen Sidhis following him. If someone were to deliberate (meditate) on the Lord, then it would be clear that no one could attain a True Name without the Guru's guidance. O Nanak! The person, who is fortunate enough, being pre-destined by the Lord's Will, and gets (the company) united with the True Guru, enjoys eternal bliss during all four ages (Yugas). (1)
Mahalla 3rd: The faithless person (self-willed person) whether young or old, is always asking for more and more of worldly possessions as his fire of worldly desires is never extinguished and his hunger is never satiated. However, the Guru-minded person, imbued with the love of the Guru's Word, attains peace and tranquillity of mind having rid himself of his egoism. He gets satiated with his hunger satisfied and attains contentment within his inner self, thus getting free from having more of worldly possessions. O Nanak! The Guru-minded persons, who are immersed in the Lord's True Name, enjoy the bliss of life and whatever they do is accepted by the Lord as they have won His favour. (2)
Pouri: I offer myself as a sacrifice to such a Guru-minded person, (Gursikh) who follows the Guru's teachings and I feel thrilled by perceiving ( a glimpse of) such a person, who recites the Lord's True Name. I would listen to their singing of the Lord's praises (Kirtan) and confirm my faith in the True Name and join them in singing the praises of the Lord. Thus I would cast away all my sins and vices by reciting the True Name of the Lord with love and devotion. Blessed is the place and praiseworthy is the human frame, wherein my Guru abides (places his lotus feet)! (19)
Download Hukamnama PDF
ਸਲੋਕ ਤੀਜੀ ਪਾਤਿਸ਼ਾਹੀ ॥ ਜੋ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਜਾਣਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਕ ਨਾਮ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਬਿਰਤੀ ਜੋੜਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਬ੍ਰਹਮਣ-ਪੁਣਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ॥ ਨੌ ਖਜਾਨੇ ਅਤੇ ਅਠਾਰਾਂ ਕਰਾਮਾਤੀ-ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਉਸ ਦੇ ਮਗਰ ਲੱਗੀਆਂ ਫਿਰਦੀਆਂ ਹਨ ਜੋ ਸੁਆਮੀ ਨੂੰ ਸਦੀਵ ਹੀ ਆਪਣੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਟਿਕਾਈ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ॥ ਸੱਚੇ ਗੁਰਾਂ ਦੇ ਬਾਝੋਂ ਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ॥ ਤੂੰ ਇਸ ਨੂੰ ਸਮਝ ਅਤੇ ਵਿਚਾਰ ॥ ਨਾਨਕ, ਪੂਰਨ ਨਸੀਬਾਂ ਰਾਹੀਂ ਬੰਦਾ ਸੱਚੇ ਗੁਰਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਚਾਰਾਂ ਹੀ ਯੁੱਗਾਂ ਅੰਦਰ ਆਰਾਮ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ॥
ਤੀਜੀ ਪਾਤਿਸ਼ਾਹੀ ॥ ਭਾਵਨੂੰ ਜੁਆਨ ਹੋਵੇ, ਭਾਵਨੂੰ ਬੁੱਢਾ, ਆਪ-ਹੁਦਰੇ ਪੁਰਸ਼ ਦੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਣਾ ਤੇ ਭੁੱਖ ਮਿਟਦੀਆਂ ਨਹੀਂ ॥ ਗੁਰੂ-ਅਨੁਸਾਰੀ ਨਾਮ ਨਾਲ ਰੰਗੇ ਹੋਏ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਸਵੈ-ਹੰਗਤਾ ਨੂੰ ਗੁਆ ਕੇ ਸ਼ਾਂਤ ਥੀ ਗਏ ਹਨ ॥ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਨ ਰੱਜ ਅਤੇ ਧ੍ਰਾਮ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੁੜ ਕੇ ਭੁੱਖ ਨਹੀਂ ਲੱਗਦੀ ॥ ਨਾਨਕ, ਜਿਹੜਾ ਕੁਝ, ਗੁਰੂ-ਸਮਰਪਣੇ ਨਾਮ ਦੀ ਪ੍ਰੀਤ ਅੰਦਰ ਲੀਨ ਰਹਿੰਦੇ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਕਬੂਲ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ॥
ਪਉੜੀ ॥ ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਉਤੋਂ ਕੁਰਬਾਨ ਵੰਦਾ ਹਾਂ ਜਿਹੜੇ ਰੱਬ ਨੂੰ ਜਾਨਣ ਵਾਲੇ ਗੁਰਸਿੱਖ ਹਨ ॥ ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦੀਦਾਰ ਵੇਖਦਾ ਹਾਂ, ਜਿਹੜੇ ਸਾਈਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ॥ ਸੁਆਮੀ ਦੀ ਉਸਤਤੀ ਸ੍ਰਵਣ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਵਡਿਆਈਆਂ ਨੂੰ ਉਚਾਰਦਾ ਹਾਂ ਅਤੇ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਦੀ ਕੀਰਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਹਿਰਦੇ ਅੰਦਰ ਉਕਰਦਾ ਹਾਂ ॥ ਮੈਂ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੀ ਪ੍ਰਸੰਸਾ ਕਰਦਾਹਾਂ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਪਾਪਾਂ ਨੂੰ ਜੜੋਂ ਪੁੱਟਦਾ ਹਾਂ ॥ ਸੁਲੱਖਣੀ, ਸੁਲੱਖਣੀ ਅਤੇ ਸੁਹਣੀ ਹੈ ਉਹ ਦੇਹ ਤੇ ਥਾਂ ਜਿਸ ਉਤੇ ਮੇਰਾ ਗੁਰੂ ਆਪਣਾ ਪੈਰ ਟੋਕਦਾ ਹੈ ॥
To Read Punjabi Translation by Prof Sahib Singh, please download the PDF File given below:
Hukamnama in Hindi
इस शबद में गुरु अमर दास जी (तीसरे गुरु) ने ब्रह्मज्ञान, सच्चे गुरु, और सच्चे भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला है। आइए, हम इस शबद का अर्थ और संदेश समझें:
सलोक १ (मः ३): ब्रहमु बिंदै तिस दा ब्रहमतु रहै एक सबदि लिव लाइ ॥ नव निधी अठारह सिधी पिछै लगीआ फिरहि जो हरि हिरदै सदा वसाइ ॥ बिनु सतिगुर नाउ न पाईऐ बुझहु करि वीचारु ॥ नानक पूरै भागि सतिगुरु मिलै सुखु पाए जुग चारि ॥१॥
ब्रहमु बिंदै तिस दा ब्रहमतु रहै एक सबदि लिव लाइ: जो ब्रह्म (ईश्वर) को बिंदु (मूल) के रूप में जानता है, वह ब्रह्मज्ञानी कहलाता है और एक सच्चे शब्द (सत्यनाम) में लिव (प्रेम) लगाता है।
नव निधी अठारह सिधी पिछै लगीआ फिरहि जो हरि हिरदै सदा वसाइ: जो अपने हृदय में हरि (भगवान) को स्थायी रूप से बसा लेते हैं, उनके पीछे नौ निधियाँ और अठारह सिद्धियाँ (अलौकिक शक्तियाँ) स्वयं ही लगी रहती हैं।
बिनु सतिगुर नाउ न पाईऐ बुझहु करि वीचारु: बिना सतगुरु (सच्चे गुरु) के नाम (ईश्वर का सच्चा नाम) प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह बात गहराई से सोचकर समझो।
नानक पूरै भागि सतिगुरु मिलै सुखु पाए जुग चारि: नानक कहते हैं कि पूर्ण भाग्य से सतगुरु मिलता है और चारों युगों में सुख प्राप्त होता है।
सलोक २ (मः ३): किआ गभरू किआ बिरधि है मनमुख त्रिसना भुख न जाइ ॥ गुरमुखि सबदे रतिआ सीतलु होए आपु गवाइ ॥ अंदरु त्रिपति संतोखिआ फिरि भुख न लगै आइ ॥ नानक जि गुरमुखि करहि सो परवाणु है जो नामि रहे लिव लाइ ॥२॥
किआ गभरू किआ बिरधि है मनमुख त्रिसना भुख न जाइ: मनमुख (माया में लिप्त व्यक्ति) हो या युवा या वृद्ध, उसकी तृष्णा और भूख समाप्त नहीं होती।
गुरमुखि सबदे रतिआ सीतलु होए आपु गवाइ: गुरमुख (गुरु का अनुसरण करने वाला) शब्द (गुरबाणी) में रमता है, और वह अपने अहंकार को समाप्त कर शीतल (शांत) हो जाता है।
अंदरु त्रिपति संतोखिआ फिरि भुख न लगै आइ: अंदर से तृप्त और संतुष्ट होकर उसे फिर कभी भूख नहीं लगती।
नानक जि गुरमुखि करहि सो परवाणु है जो नामि रहे लिव लाइ: नानक कहते हैं कि जो गुरमुखी (गुरु का अनुसरण करने वाले) जो भी करते हैं, वह स्वीकृत होता है क्योंकि वे नाम (ईश्वर के नाम) में लिव लगाए रखते हैं।
पौड़ी: हउ बलिहारी तिंन कंउ जो गुरमुखि सिखा ॥ जो हरि नामु धिआइदे तिन दरसनु पिखा ॥ सुणि कीरतनु हरि गुण रवा हरि जसु मनि लिखा ॥ हरि नामु सलाही रंग सिउ सभि किलविख क्रिखा ॥ धनु धंनु सुहावा सो सरीरु थानु है जिथै मेरा गुरु धरे विखा ॥१९॥
हउ बलिहारी तिंन कंउ जो गुरमुखि सिखा: मैं उन गुरमुख सिखों पर बलिहारी (बलिदान) जाता हूँ।
जो हरि नामु धिआइदे तिन दरसनु पिखा: जो हरि (भगवान) के नाम का ध्यान करते हैं, उनके दर्शन की मैं इच्छा करता हूँ।
सुणि कीरतनु हरि गुण रवा हरि जसु मनि लिखा: कीर्तन सुनकर हरि के गुण गाता हूँ और हरि का यश अपने मन में लिखता हूँ।
हरि नामु सलाही रंग सिउ सभि किलविख क्रिखा: हरि के नाम की प्रशंसा करता हूँ और रंग (प्रेम) से सारे पाप धुल जाते हैं।
धनु धंनु सुहावा सो सरीरु थानु है जिथै मेरा गुरु धरे विखा: धन्य है वह सुंदर शरीर और स्थान जहाँ मेरा गुरु निवास करता है।
इस शबद का सार यह है कि सच्चे गुरु के बिना ईश्वर का नाम प्राप्त नहीं हो सकता और गुरु की कृपा से ही जीवन में सच्चा सुख प्राप्त होता है। गुरमुख, जो सच्चे गुरु का अनुसरण करते हैं, वे अपने अहंकार को मिटाकर ईश्वर के नाम में लिव लगाते हैं और सच्चे आनंद को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, जीवन में सच्चा सुख और शांति सच्चे गुरु और ईश्वर के नाम के ध्यान से ही संभव है।