Khasam Mare Tou Naar Na Rove
Mukhwak Shiromani Bhagat Kabir Ji Maharaj: Khasam Mare Tou Naar Na Rove, Us Rakhwara Auro Hove; Raag Gond @Page 871 of Sri Guru Granth Sahib.
Hukamnama | Khasam Mare Tou Naar Na Rove |
Place | Darbar Sri Harmandir Sahib Ji, Amritsar |
Ang | 871 |
Creator | Bhagat Kabir Ji |
Raag | Gond |
English Translation¹
Gond ( Khasam Mare Tou Naar Na Rove... )
When the miserly person dies the wealth does not cry as there is someone else to care for it (to look after it), just as a woman does not cry over the death of her spouse when ( Us Rakhwara Auro Hove... ) she has someone else to look after her. But when that protector (well-wisher) also dies then she faces hell after enjoying worldly pleasures. (1)
(Ek Suhagan Jagat Pyari...) The whole world loves this Maya. (has enamoured the whole world) as it is the better half of the whole world (has enticed all with its charm) (Pause)
(Sohagan Gal Sohe Haar...) This Maya wears a beautiful necklace as her ornament whereas the saints hate it like poison and the whole world is pleased with it. This Maya beautifies itself with ornaments (beauty aids) like a prostitute, while the saints discard it and feel dejected. (2)
(Sant Bhaag Oho Paachhe Pari...) This Maya follows the saints (showing its love for them). But due to the Guru's Grace, it fears punishment at their hands. This Maya is the beloved of the faithless persons having pleased them but we have viewed it as a vicious devil, and avoid perceiving this demon. (3)
(Hum Tis Ka Bahu Jaania Bheo...) When we united with the Guru through His grace and benevolence, we learned certain secrets of this Maya. O Kabir! Now we have thrown it out of my heart, and she has joined the company of worldly people. (4-4-7)
Hindi Translation
गोंड ॥ खसम मरै तौ नार न रोवै ॥ उस रखवारा औरो होवै ॥ रखवारे का होय बिनास ॥ आगै नरक ईहा भोग बिलास ॥१॥ एक सुहागन जगत प्यारी ॥ सगले जीअ जंत की नारी ॥१॥ रहाओ ॥ सोहागन गल सोहै हार ॥ संत कौ बिख बिगसै संसार ॥ कर सीगार बहै पखिआरी ॥ संत की ठिठकी फिरै बिचारी ॥२॥ संत भाग ओह पाछै परै ॥ गुर परसादी मारहु डरै ॥ साकत की ओह पिंड पराएण ॥ हम कौ दृष्ट परै त्रख डायण ॥३॥ हम तिस का बहु जानया भेओ ॥ जब हूए कृपाल मिले गुरदेओ ॥ कहु कबीर अब बाहर परी ॥ संसारै कै अंचल लरी ॥४॥४॥७॥
Meaning in Hindi²
(यह माया) एक ऐसी सुन्दर स्त्री है जिसे सारा संसार प्रेम करता है, सभी प्राणी उसे अपनी पत्नी बनाकर रखना चाहते हैं (अपने वश में रखना चाहते हैं) ।
(परन्तु जो मनुष्य इस माया को अपनी पत्नी बनाकर रखता है) वह (अंत में) मर जाता है, यह (माया) वधू (उसकी मृत्यु पर) रोती भी नहीं है, क्योंकि उसका संरक्षक (खसम) दूसरा पक्ष बन जाता है (अत: यह कभी विधवा नहीं होती) . (इस माया का) रक्षक मर जाता है, मनुष्य यहाँ इस माया के सुखों में (भोगता है) (नशा करता है) और आगे (अपने लिए) नरक भोगता है।
इस सुहागन स्त्री के गले में एक हार सुशोभित है, (अर्थात यह सदैव प्राणियों के मन को मोहित करने वाली सुन्दर और आकर्षक बनी रहती है)। (इसे देखकर) संसार आनन्दित होता है, परन्तु संतों को यह (विष के समान) प्रतीत होती है। (जैसे) वेश्या सदैव अपना श्रृंगार करती है, परन्तु संतों द्वारा दुतकारी हुई संतों से दूर दूर ही फिर रही है।
(यह माया) भागकर संतों से युद्ध करने की कोशिश करती है, लेकिन गुरु की (संतों पर) दया के कारण उसे (संतों द्वारा) मारे जाने का भी डर रहता है। यह माया ही ईश्वर से विमुख लोगों का जीवन और आत्मा बनी हुई है, लेकिन मुझे यह भयानक डायन दिखाई देती है।
जब मेरे सतगुरु जी मुझ पर दयालु हुए और मुझे मिले, तब से मुझे इस माया का रहस्य पता चल गया है। हे कबीर! अब तुम्हें कहना होगा - बेशक यह माया मेरा कुछ न बिगाड़ पाएगी परंतु यह सांसारिक प्राणियों से जा लिपटी है।4.4.7।
Translation in Punjabi³
ਗੋਂਡ ॥ ਜਦ ਕੰਤ ਮਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਦੀ ਵਹੁਟੀ ਰੋਂਦੀ ਨਹੀਂ ॥ ਕੋਈ ਹੋਰ ਜਣਾ ਉਸ ਦਾ ਰਖਵਾਲਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ॥ ਜਦ ਇਹ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਮਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਏਥੇ ਕਾਮ ਦੇ ਸੁਆਦ ਮਾਨਣ ਦੀ ਖਾਤਿਰ, ਉਹ ਅੱਗੇ ਦੋਜ਼ਕ ਵਿੱਚ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ॥ ਕੇਵਲ ਮਾਇਆ ਹੀ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਲਾਡਲੀ ਹੈ ॥ ਸਾਰੇ ਪ੍ਰਾਣਧਾਰੀਆਂ ਦੀ ਉਹ ਵਹੁਟੀ ਹੈ ॥ ਠਹਿਰਾਉ ॥
ਗਰਦਨ ਦੁਆਲੇ ਗਲ ਮਾਲਾ ਨਾਲ ਮਾਇਆ ਸੁੰਦਰ ਦਿੱਸਦੀ ਹੈ ॥ ਸਾਧੂ ਲਈ ਉਹ ਜ਼ਹਿਰ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ ਪ੍ਰੰਤੂ ਉਸ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਜਗਤ ਖਿੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ॥ ਹਾਰ-ਸ਼ਿੰਗਾਰ ਲਾ ਕੇ ਉਹ ਕੰਜਰੀ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬੈਠਦੀ ਹੈ ॥ ਸਾਧੂਆਂ ਦੀ ਠਿਠ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਉਹ ਨੀਚ ਭਟਕਦੀ ਫਿਰਦੀ ਹੈ ॥ ਉਹ ਭੱਜ ਕੇ ਸਾਧੂਆਂ ਦੇ ਪਿਛੇ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ॥ ਉਹ ਗੁਰਾਂ ਦੀ ਦਇਆ ਦੇ ਪਾਤ੍ਰ ਸਾਧੂਆਂ ਦੀ ਕੁਟ ਮਾਰ ਤੋਂ ਡਰਦੀ ਹੈ ॥ ਅਧਰਮੀ ਦੀ ਉਹ ਦੇਹ ਤ ਜਿੰਦ-ਜਾਨ ਹੈ ॥ ਮੈਨੂੰ ਉਹ ਮੇਰੇ ਲਹੂ ਦੀ ਤਿਹਾਈ ਚੁੜੇਲ ਮਲੂਮ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ॥ ਮੈਂ ਉਸ ਦੇ ਭੇਤਾਂ ਦਾ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਹੋ ਗਿਆ ਹਾਂ, ਹੁਣ ਜਦ ਮਿਹਰਬਾਨ ਹੋ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਮੇਰੇ ਗੁਰੂ-ਪਰਮੇਸ਼ਰ ਮਿਲ ਪਏ ਹਨ ॥ ਕਬੀਰ ਜੀ ਆਖਦੇ ਹਨ, ਹੁਣ ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ॥ ਉਹ ਜਗਤ ਦੇ ਪੱਲੇ ਨਾਲ ਚਿੰਮੜ ਗਈ ਹੈ ॥
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To read a detailed Punjabi Translation by Prof. Sahib Singh Ji, Please download the PDF given below:
Resources: 1. English Translation by Gurbachan Singh Makin 2. Hindi Trans. inspired by Prof Sahib Singh 3. Punjabi Translation by Manmohan Singh.