Sukhmani Sahib Hindi Path
Sukhmani Sahib ( सुखमनी साहिब ) is a beautiful creation of Guru Arjan Dev Ji present in Guru Granth Sahib at Ang 262 to 296. It is known in English as "The Jewel of Peace" or "The Psalm of Peace".
This is a prayer that eradicates worries, fear, anxiety, and all negativity while bringing peace and joy to the one who reads, understands, and practices it.
Gurbani Path | Sukhmani Sahib Path in Hindi |
Language | Hindi |
Ang | 262-296 |
Creator | Guru Arjan Dev Ji |
Raag | Gauri |
Sukhmani Sahib is divided into 24 Shlokas with Ashtpadas each describing the ways to attain eternal bliss.
सुखमनी साहिब पाठ (हिन्दी)
1 गौड़ी सुखमनी मः ५ ॥ सलोक ॥ ੴ सतगुर प्रसाद ॥ आद गुरए नमह ॥ जुगाद गुरए नमह ॥ सतगुरए नमह ॥ श्री गुरदेवए नमह ॥१॥
अष्टपदी ॥ सिमरौ सिमर सिमर सुख पावौ ॥ कल कलेस तन माहि मिटावौ ॥ सिमरौ जास बिसुंभर एकै ॥ नाम जपत अगनत अनेकै ॥ बेद पुरान सिमृत सुधाख्यर ॥ कीने राम नाम इक आख्यर ॥ किनका एक जिस जीअ बसावै ॥ ता की महिमा गनी न आवै ॥ कांखी एकै दरस तुहारो ॥ नानक उन संग मोहि उधारो ॥१॥ सुखमनी सुख अमृत प्रभ नाम ॥ भगत जना कै मन बिस्राम ॥ रहाओ ॥ प्रभ कै सिमरन गर्भ न बसै ॥ प्रभ कै सिमरन दूख जम नसै ॥ प्रभ कै सिमरन काल परहरै ॥ प्रभ कै सिमरन दुसमन टरै ॥ प्रभ सिमरत कछु बिघन न लागै ॥ प्रभ कै सिमरन अनदिन जागै ॥ प्रभ कै सिमरन भौ न ब्यापै ॥ प्रभ कै सिमरन दुख न संतापै ॥ प्रभ का सिमरन साध कै संग ॥ सरब निधान नानक हर रंग ॥२॥ प्रभ कै सिमरन रिध सिध नौ निध ॥ प्रभ कै सिमरन ज्ञान ध्यान तत बुध ॥ प्रभ कै सिमरन जप तप पूजा ॥ प्रभ कै सिमरन बिनसै दूजा ॥ प्रभ कै सिमरन तीरथ इसनानी ॥ प्रभ कै सिमरन दरगह मानी ॥ प्रभ कै सिमरन होए सु भला ॥ प्रभ कै सिमरन सुफल फला ॥ से सिमरहि जिन आप सिमराए ॥ नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥ प्रभ का सिमरन सभ ते ऊचा ॥ प्रभ कै सिमरन उधरे मूचा ॥ प्रभ कै सिमरन त्रिसना बुझै ॥ प्रभ कै सिमरन सभ किछ सुझै ॥ प्रभ कै सिमरन नाही जम त्रासा ॥ प्रभ कै सिमरन पूरन आसा ॥ प्रभ कै सिमरन मन की मल जाए ॥ अमृत नाम रिद माहि समाए ॥ प्रभ जी बसहि साध की रसना ॥ नानक जन का दासन दसना ॥४॥ प्रभ कौ सिमरहि से धनवंते ॥ प्रभ कौ सिमरहि से पतिवंते ॥ प्रभ कौ सिमरहि से जन परवान ॥ प्रभ कौ सिमरहि से पुरख प्रधान ॥ प्रभ कौ सिमरहि सु बेमुहताजे ॥ प्रभ कौ सिमरहि सु सरब के राजे ॥ प्रभ कौ सिमरहि से सुखवासी ॥ प्रभ कौ सिमरहि सदा अबिनासी ॥ सिमरन ते लागे जिन आप दयाला ॥ नानक जन की मंगै रवाला ॥५॥ प्रभ कौ सिमरहि से परौपकारी ॥ प्रभ कौ सिमरहि तिन सद बलिहारी ॥ प्रभ कौ सिमरहि से मुख सुहावे ॥ प्रभ कौ सिमरहि तिन सूख बिहावै ॥ प्रभ कौ सिमरहि तिन आतम जीता ॥ प्रभ कौ सिमरहि तिन निरमल रीता ॥ प्रभ कौ सिमरहि तिन अनद घनेरे ॥ प्रभ कौ सिमरहि बसहि हर नेरे ॥ संत कृपा ते अनदिन जाग ॥ नानक सिमरन पूरै भाग ॥६॥ प्रभ कै सिमरन कारज पूरे ॥ प्रभ कै सिमरन कबहु न झूरे ॥ प्रभ कै सिमरन हर गुन बानी ॥ प्रभ कै सिमरन सहज समानी ॥ प्रभ कै सिमरन निहचल आसन ॥ प्रभ कै सिमरन कमल बिगासन ॥ प्रभ कै सिमरन अनहद झुनकार ॥ सुख प्रभ सिमरन का अंत न पार ॥ सिमरहि से जन जिन कौ प्रभ मया ॥ नानक तिन जन सरनी पया ॥७॥ हर सिमरन कर भगत प्रगटाए ॥ हर सिमरन लग बेद उपाए ॥ हर सिमरन भए सिध जती दाते ॥ हर सिमरन नीच चहु कुंट जाते ॥ हर सिमरन धारी सभ धरना ॥ सिमर सिमर हर कारन करना ॥ हर सिमरन कीओ सगल अकारा ॥ हर सिमरन महि आप निरंकारा ॥ कर किरपा जिस आप बुझाया ॥ नानक गुरमुख हर सिमरन तिन पाया ॥८॥१॥
2 सलोक ॥ दीन दरद दुख भंजना घट घट नाथ अनाथ ॥ सरण तुम्हारी आयो नानक के प्रभ साथ ॥१॥
अष्टपदी ॥ जह मात पिता सुत मीत न भाई ॥ मन ऊहा नाम तेरै संग सहाई ॥ जह महा भयान दूत जम दलै ॥ तह केवल नाम संग तेरै चलै ॥ जह मुसकल होवै अत भारी ॥ हर को नाम खिन माहि उधारी ॥ अनिक पुनहचरन करत नही तरै ॥ हर को नाम कोट पाप परहरै ॥ गुरमुख नाम जपहु मन मेरे ॥ नानक पावहु सूख घनेरे ॥१॥ सगल सृष्ट को राजा दुखीआ ॥ हर का नाम जपत होए सुखीआ ॥ लाख करोरी बंध न परै ॥ हर का नाम जपत निसतरै ॥ अनिक माया रंग तिख न बुझावै ॥ हर का नाम जपत आघावै ॥ जिह मारग एहो जात इकेला ॥ तह हर नाम संग होत सुहेला ॥ ऐसा नाम मन सदा ध्यायिए ॥ नानक गुरमुख परम गत पाइए ॥२॥ छूटत नही कोट लख बाही ॥ नाम जपत तह पार पराही ॥ अनिक बिघन जह आए संघारै ॥ हर का नाम तत्काल उधारै ॥ अनिक जोन जनमै मर जाम ॥ नाम जपत पावै बिस्राम ॥ हौं मैला मल कबहु न धोवै ॥ हर का नाम कोट पाप खोवै ॥ ऐसा नाम जपहु मन रंग ॥ नानक पाइए साध कै संग ॥३॥ जिह मारग के गने जाहि न कोसा ॥ हर का नाम ऊहा संग तोसा ॥ जिह पैडै महा अंध गुबारा ॥ हर का नाम संग उजियारा ॥ जहा पंथ तेरा को न सिञानू ॥ हर का नाम तह नाल पछानू ॥ जह महा भयान तपत बहु घाम ॥ तह हर के नाम की तुम ऊपर छाम ॥ जहा त्रिखा मन तुझ आकरखै ॥ तह नानक हर हर अमृत बरखै ॥४॥ भगत जना की बरतन नाम ॥ संत जना कै मन बिस्राम ॥ हर का नाम दास की ओट ॥ हर कै नाम उधरे जन कोट ॥ हर जस करत संत दिन रात ॥ हर हर अउखध साध कमात ॥ हर जन कै हर नाम निधान ॥ पारब्रह्म जन कीनो दान ॥ मन तन रंग रते रंग एकै ॥ नानक जन कै बिरत बिबेकै ॥५॥ हर का नाम जन कौ मुकत जुगत ॥ हर कै नाम जन कौ त्रिपत भुगत ॥ हर का नाम जन का रूप रंग ॥ हर नाम जपत कब परै न भंग ॥ हर का नाम जन की वडिआई ॥ हर कै नाम जन सोभा पाए ॥ हर का नाम जन कौ भोग जोग ॥ हर नाम जपत कछु नाहि बियोग ॥ जन राता हर नाम की सेवा ॥ नानक पूजै हर हर देवा ॥६॥ हर हर जन कै माल खजीना ॥ हर धन जन कौ आप प्रभ दीना ॥ हर हर जन कै ओट सताणी ॥ हर प्रताप जन अवर न जाणी ॥ ओत पोत जन हर रस राते ॥ सुन्न समाध नाम रस माते ॥ आठ पहर जन हर हर जपै ॥ हर का भगत प्रगट नही छपै ॥ हर की भगत मुकत बहु करे ॥ नानक जन संग केते तरे ॥७॥ पारजात एहो हर को नाम ॥ कामधेन हर हर गुण गाम ॥ सभ ते ऊतम हर की कथा ॥ नाम सुनत दरद दुख लथा ॥ नाम की महिमा संत रिद वसै ॥ संत प्रताप दुरत सभ नसै ॥ संत का संग वडभागी पाइए ॥ संत की सेवा नाम ध्यायिए ॥ नाम तुल कछु अवर न होए ॥ नानक गुरमुख नाम पावै जन कोए ॥८॥२॥
3 सलोक ॥ बहु सासत्र बहु सिमृती पेखे सरब ढढोल ॥ पूजस नाही हर हरे नानक नाम अमोल ॥१॥
अष्टपदी ॥ जाप ताप ज्ञान सभ ध्यान ॥ खट सासत्र सिमृत वखयान ॥ जोग अभ्यास करम धर्म किरिया ॥ सगल त्याग बन मधे फिरया ॥ अनिक प्रकार कीए बहु जतना ॥ पुन्न दान होमे बहु रतना ॥ सरीर कटाए होमै कर राती ॥ वरत नेम करै बहु भाती ॥ नही तुल राम नाम बीचार ॥ नानक गुरमुख नाम जपीऐ इक बार ॥१॥ नौ खंड प्रिथमी फिरै चिर जीवै ॥ महा उदास तपीसर थीवै ॥ अगन माहि होमत परान ॥ कनिक अस्व हैवर भूम दान ॥ निऑली करम करै बहु आसन ॥ जैन मारग संजम अत साधन ॥ निमख निमख कर सरीर कटावै ॥ तौ भी हौमै मैल न जावै ॥ हर के नाम समसर कछु नाहि ॥ नानक गुरमुख नाम जपत गत पाहि ॥२॥ मन कामना तीरथ देह छुटै ॥ गरबु गुमान न मन ते हुटै ॥ सोच करै दिनस अर रात ॥ मन की मैल न तन ते जात ॥ इस देही कौ बहु साधना करै ॥ मन ते कबहू न बिख्या टरै ॥ जल धोवै बहु देह अनीत ॥ सुध कहा होए काची भीत ॥ मन हर के नाम की महिमा ऊच ॥ नानक नाम उधरे पतित बहु मूच ॥३॥ बहुत स्याणप जम का भौ ब्यापै ॥ अनिक जतन कर त्रिसन ना ध्रापै ॥ भेख अनेक अगन नही बुझै ॥ कोट उपाव दरगह नही सिझै ॥ छूटस नाही ऊभ पयाल ॥ मोहि ब्यापहि माया जाल ॥ अवर करतूत सगली जम डानै ॥ गोविंद भजन बिन तिल नही मानै ॥ हर का नाम जपत दुख जाए ॥ नानक बोलै सहज सुभाइ ॥४॥ चार पदारथ जे को मागै ॥ साध जना की सेवा लागै ॥ जे को आपुना दूख मिटावै ॥ हर हर नाम रिदै सद गावै ॥ जे को अपुनी सोभा लोरै ॥ साधसंग इह हौमै छोरै ॥ जे को जनम मरण ते डरै ॥ साध जना की सरनी परै ॥ जिस जन कौ प्रभ दरस प्यासा ॥ नानक ता कै बल बल जासा ॥५॥ सगल पुरख महि पुरख प्रधान ॥ साधसंग जा का मिटै अभिमान ॥ आपस कौ जो जाणै नीचा ॥ सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा ॥ जा का मन होए सगल की रीना ॥ हर हर नाम तिन घट घट चीना ॥ मन अपुने ते बुरा मिटाना ॥ पेखै सगल सृष्ट साजना ॥ सूख दूख जन सम द्रिसटेता ॥ नानक पाप पुन्न नही लेपा ॥६॥ निरधन कौ धन तेरो नांओ ॥ निथावे कौ नांओ तेरा थाओ ॥ निमाने कौ प्रभ तेरो मान ॥ सगल घटा कौ देवहु दान ॥ करन करावनहार सुआमी ॥ सगल घटा के अंतरजामी ॥ अपनी गत मित जानहु आपे ॥ आपन संग आप प्रभ राते ॥ तुम्हरी उसतत तुम ते होए ॥ नानक अवर न जानस कोए ॥७॥ सरब धरम महि सरेस्ट (श्रेष्ट) धरम ॥ हर को नाम जप निरमल करम ॥ सगल किरया महि ऊतम किरया ॥ साधसंग दुरमत मल हिरया ॥ सगल उदम महि उदम भला ॥ हर का नाम जपहु जीअ सदा ॥ सगल बानी महि अमृत बानी ॥ हर को जस सुन रसन बखानी ॥ सगल थान ते ओहो ऊतम थान ॥ नानक जिह घट वसै हर नाम ॥८॥३॥
4 सलोक ॥ निरगुनीआर एयानया सो प्रभ सदा समाल ॥ जिन कीआ तिस चीत रख नानक निबही नाल ॥१॥
अष्टपदी ॥ रमईआ के गुन चेत परानी ॥ कवन मूल ते कवन द्रिसटानी ॥ जिन तूं साज सवार सीगारया ॥ गर्भ अगन महि जिनहि उबारया ॥ बार बिवसथा तुझहि प्यारै दूध ॥ भर जोबन भोजन सुख सूध ॥ बिरध भया ऊपर साक सैन ॥ मुख अपयाओ बैठ कौ दैन ॥ एहो निरगुन गुन कछुू न बूझै ॥ बखस लेहु तौ नानक सीझै ॥१॥ जिह प्रसाद धर ऊपर सुख बसहि ॥ सुत भ्रात मीत बनिता संग हसहि ॥ जिह प्रसाद पीवहि सीतल जला ॥ सुखदाई पवन पावक अमुला ॥ जिह प्रसाद भोगहि सभ रसा ॥ सगल समग्री संग साथ बसा ॥ दीने हस्त पाव करन नेत्र रसना ॥ तिसहि त्याग अवर संग रचना ॥ ऐसे दोख मूड़ अंध ब्यापे ॥ नानक काढ लेहु प्रभ आपे ॥२॥ आद अंत जो राखनहार ॥ तिस स्यो प्रीत न करै गवार ॥ जा की सेवा नव निध पावै ॥ ता स्यो मूड़ा मन नही लावै ॥ जो ठाकुर सद सदा हजूरे ॥ ता कौ अंधा जानत दूरे ॥ जा की टहल पावै दरगह मान ॥ तिसहि बिसारै मुगध अजान ॥ सदा सदा एहो भूलनहार ॥ नानक राखनहार अपार ॥३॥ रतन त्याग कौडी संग रचै ॥ साच छोड झूठ संग मचै ॥ जो छडना सु असथिर कर मानै ॥ जो होवन सो दूर परानै ॥ छोड जाए तिस का स्रम करै ॥ संग सहाई तिस परहरै ॥ चंदन लेप उतारै धोए ॥ गरधब प्रीत भसम संग होए ॥ अंध कूप महि पतित बिकराल ॥ नानक काढ लेहु प्रभ दयाल ॥४॥ करतूत पसू की मानस जात ॥ लोक पचारा करै दिन रात ॥ बाहर भेख अंतर मल माया ॥ छपस नाहि कछु करै छपाया ॥ बाहर ज्ञान ध्यान इसनान ॥ अंतर ब्यापै लोभ सुआन ॥ अंतर अगन बाहर तन सुआह ॥ गल पाथर कैसे तरै अथाह ॥ जा कै अंतर बसै प्रभ आप ॥ नानक ते जन सहज समात ॥५॥ सुन अंधा कैसे मारग पावै ॥ कर गहि लेहु ओड़ निबहावै ॥ कहा बुझारत बूझै डोरा ॥ निस कहीऐ तौ समझै भोरा ॥ कहा बिसनपद गावै गुंग ॥ जतन करै तौ भी सुर भंग ॥ कह पिंगुल परबत पर भवन ॥ नही होत ऊहा उस गवन ॥ करतार करुणा मै दीन बेनती करै ॥ नानक तुमरी किरपा तरै ॥६॥ संग सहाई सु आवै न चीत ॥ जो बैराई ता स्यो प्रीत ॥ बलूआ के गृह भीतर बसै ॥ अनद केल माया रंग रसै ॥ द्रिड़ कर मानै मनहि प्रतीत ॥ काल न आवै मूड़े चीत ॥ बैर बिरोध काम क्रोध मोह ॥ झूठ बिकार महा लोभ ध्रोह ॥ याहू जुगत बिहाने कई जनम ॥ नानक राख लेहु आपन कर करम ॥७॥ तू ठाकुर तुम पहि अरदास ॥ जीओ पिण्ड सभ तेरी रास ॥ तुम मात पिता हम बारिक तेरे ॥ तुमरी कृपा महि सूख घनेरे ॥ कोए न जानै तुमरा अंत ॥ ऊचे ते ऊचा भगवंत ॥ सगल समग्री तुमरै सूत्र धारी ॥ तुम ते होए सु आज्ञाकारी ॥ तुमरी गत मित तुम ही जानी ॥ नानक दास सदा कुरबानी ॥८॥४॥
5 सलोक ॥ देनहार प्रभ छोड कै लागहि आन सुआए ॥ नानक कहू न सीझई बिन नावै पत जाए ॥१॥
अष्टपदी ॥ दस बसतू ले पाछै पावै ॥ एक बसत कारन बिखोट गवावै ॥ एक भी न देए दस भी हिर लेए ॥ तौ मूड़ा कहु कहा करेए ॥ जिस ठाकुर स्यो नाही चारा ॥ ता कौ कीजै सद नमसकारा ॥ जा कै मन लागा प्रभ मीठा ॥ सरब सूख ताहू मन वूठा ॥ जिस जन अपना हुकम मनाया ॥ सरब थोक नानक तिन पाया ॥१॥ अगनत साहु अपनी दे रास ॥ खात पीत बरतै अनद उलास ॥ अपुनी अमान कछु बहुर साहु लेए ॥ अज्ञानी मन रोस करेए ॥ अपनी परतीत आप ही खोवै ॥ बहुर उस का बिस्वास न होवै ॥ जिस की बसत तिस आगै राखै ॥ प्रभ की आज्ञा मानै माथै ॥ उस ते चौगुन करै निहाल ॥ नानक साहिब सदा दयाल ॥२॥ अनिक भात माया के हेत ॥ सरपर होवत जान अनेत ॥ बिरख की छाया स्यो रंग लावै ॥ ओह बिनसै ओहो मन पछुतावै ॥ जो दीसै सो चालनहार ॥ लपट रहयो तह अंध अंधार ॥ बटाऊ स्यो जो लावै नेह ॥ ता कौ हाथ न आवै केह ॥ मन हर के नाम की प्रीत सुखदाई ॥ कर किरपा नानक आप लए लाई ॥३॥ मिथ्या तन धन कुटंब सबाया ॥ मिथ्या हौमै ममता माया ॥ मिथ्या राज जोबन धन माल ॥ मिथ्या काम क्रोध बिकराल ॥ मिथ्या रथ हस्ती अस्व बस्त्रा ॥ मिथ्या रंग संग माया पेख हसता ॥ मिथ्या ध्रोह मोह अभिमान ॥ मिथ्या आपस ऊपर करत गुमान ॥ असथिर भगत साध की सरन ॥ नानक जप जप जीवै हर के चरन ॥४॥ मिथ्या स्रवन पर निंदा सुनहि ॥ मिथ्या हस्त पर दरब कौ हिरहि ॥ मिथ्या नेत्र पेखत पर त्रिअ रूपाद ॥ मिथ्या रसना भोजन अन स्वाद ॥ मिथ्या चरन पर बिकार कौ धावहि ॥ मिथ्या मन पर लोभ लुभावहि ॥ मिथ्या तन नही परौपकारा ॥ मिथ्या बास लेत बिकारा ॥ बिन बूझे मिथ्या सभ भए ॥ सफल देह नानक हर हर नाम लए ॥५॥ बिरथी साकत की आरजा ॥ साच बिना कह होवत सूचा ॥ बिरथा नाम बिना तन अंध ॥ मुख आवत ता कै दुरगंध ॥ बिन सिमरन दिन रैन ब्रिथा बिहाए ॥ मेघ बिना ज्यों खेती जाए ॥ गोबिद भजन बिन ब्रिथे सभ काम ॥ ज्यों किरपन के निरारथ दाम ॥ धंन धंन ते जन जिह घट बसिओ हर नांओ ॥ नानक ता कै बल बल जाउ ॥६॥ रहत अवर कछु अवर कमावत ॥ मन नही प्रीत मुखहु गंढ लावत ॥ जाननहार प्रभू परबीन ॥ बाहर भेख न काहू भीन ॥ अवर उपदेसै आप न करै ॥ आवत जावत जनमै मरै ॥ जिस कै अंतर बसै निरंकार ॥ तिस की सीख तरै संसार ॥ जो तुम भाने तिन प्रभ जाता ॥ नानक उन जन चरन पराता ॥७॥ करौ बेनती पारब्रह्म सभ जानै ॥ अपना कीआ आपहि मानै ॥ आपहि आप आप करत निबेरा ॥ किसै दूर जनावत किसै बुझावत नेरा ॥ उपाव सयानप सगल ते रहत ॥ सभ कछु जानै आतम की रहत ॥ जिस भावै तिस लए लड़ लाए ॥ थान थनंतर रहया समाए ॥ सो सेवक जिस किरपा करी ॥ निमख निमख जप नानक हरी ॥८॥५॥
6 सलोक ॥ काम क्रोध अर लोभ मोह बिनस जाए अहमेव ॥ नानक प्रभ सरणागती कर प्रसाद गुरदेव ॥१॥
अष्टपदी ॥ जिह प्रसाद छतीह अमृत खाहि ॥ तिस ठाकुर कौ रख मन माहि ॥ जिह प्रसाद सुगंधत तन लावहि ॥ तिस कौ सिमरत परम गत पावहि ॥ जिह प्रसाद बसहि सुख मंदर ॥ तिसहि ध्याए सदा मन अंदर ॥ जिह प्रसाद गृह संग सुख बसना ॥ आठ पहर सिमरहु तिस रसना ॥ जिह प्रसाद रंग रस भोग ॥ नानक सदा ध्यायिए ध्यावन जोग ॥१॥ जिह प्रसाद पाट पटंबर हंढावहि ॥ तिसहि त्याग कत अवर लुभावहि ॥ जिह प्रसाद सुख सेज सोईजै ॥ मन आठ पहर ता का जस गावीजै ॥ जिह प्रसाद तुझ सभ कोऊ मानै ॥ मुख ता को जस रसन बखानै ॥ जिह प्रसाद तेरो रहता धरम ॥ मन सदा ध्याए केवल पारब्रह्म ॥ प्रभ जी जपत दरगह मान पावहि ॥ नानक पत सेती घर जावहि ॥२॥ जिह प्रसाद आरोग कंचन देही ॥ लिव लावहु तिस राम सनेही ॥ जिह प्रसाद तेरा ओला रहत ॥ मन सुख पावहि हर हर जस कहत ॥ जिह प्रसाद तेरे सगल छिद्र ढाके ॥ मन सरनी पर ठाकुर प्रभ ता कै ॥ जिह प्रसाद तुझ को न पहूचै ॥ मन सास सास सिमरहु प्रभ ऊचे ॥ जिह प्रसाद पाए दुर्लभ देह ॥ नानक ता की भगत करेह ॥३॥ जिह प्रसाद आभूखन पहिरीजै ॥ मन तिस सिमरत क्यों आलस कीजै ॥ जिह प्रसाद अस्व हस्त असवारी ॥ मन तिस प्रभ कौ कबहू न बिसारी ॥ जिह प्रसाद बाग मिलख धना ॥ राख परोए प्रभ अपुने मना ॥ जिन तेरी मन बनत बनाई ॥ ऊठत बैठत सद तिसहि ध्याई ॥ तिसहि ध्याए जो एक अलखै ॥ ईहा ऊहा नानक तेरी रखै ॥४॥ जिह प्रसाद करहि पुन्न बहु दान ॥ मन आठ पहर कर तिस का ध्यान ॥ जिह प्रसाद तू आचार ब्योहारी ॥ तिस प्रभ कौ सास सास चितारी ॥ जिह प्रसाद तेरा सुंदर रूप ॥ सो प्रभ सिमरहु सदा अनूप ॥ जिह प्रसाद तेरी नीकी जात ॥ सो प्रभ सिमर सदा दिन रात ॥ जिह प्रसाद तेरी पत रहै ॥ गुर प्रसाद नानक जस कहै ॥५॥ जिह प्रसाद सुनहि करन नाद ॥ जिह प्रसाद पेखहि बिसमाद ॥ जिह प्रसाद बोलहि अमृत रसना ॥ जिह प्रसाद सुख सहजे बसना ॥ जिह प्रसाद हस्त कर चलहि ॥ जिह प्रसाद सम्पूरन फलहि ॥ जिह प्रसाद परम गत पावहि ॥ जिह प्रसाद सुख सहज समावहि ॥ ऐसा प्रभ त्याग अवर कत लागहु ॥ गुर प्रसाद नानक मन जागहु ॥६॥ जिह प्रसाद तूं प्रगट संसार ॥ तिस प्रभ कौ मूल न मनहु बिसार ॥ जिह प्रसाद तेरा परताप ॥ रे मन मूड़ तू ता कौ जाप ॥ जिह प्रसाद तेरे कारज पूरे ॥ तिसहि जान मन सदा हजूरे ॥ जिह प्रसाद तूं पावहि साच ॥ रे मन मेरे तूं ता स्यो राच ॥ जिह प्रसाद सभ की गत होए ॥ नानक जाप जपै जप सोए ॥७॥ आप जपाए जपै सो नांओ ॥ आप गावाए सु हर गुन गाओ ॥ प्रभ किरपा ते होए प्रगास ॥ प्रभू दया ते कमल बिगास ॥ प्रभ सुप्रसन्न बसै मन सोए ॥ प्रभ दया ते मत ऊतम होए ॥ सरब निधान प्रभ तेरी मया ॥ आपहु कछु न किनहू लया ॥ जित जित लावहु तित लगहि हर नाथ ॥ नानक इन कै कछु न हाथ ॥८॥६॥
7 सलोक ॥ अगम अगाध पारब्रह्म सोए ॥ जो जो कहै सु मुकता होए ॥ सुन मीता नानक बिनवंता ॥ साध जना की अचरज कथा ॥१॥
अष्टपदी ॥ साध कै संग मुख ऊजल होत ॥ साधसंग मल सगली खोत ॥ साध कै संग मिटै अभिमान ॥ साध कै संग प्रगटै सुज्ञान ॥ साध कै संग बुझै प्रभ नेरा ॥ साधसंग सभ होत निबेरा ॥ साध कै संग पाए नाम रतन ॥ साध कै संग एक ऊपर जतन ॥ साध की महिमा बरनै कौन प्रानी ॥ नानक साध की सोभा प्रभ माहि समानी ॥१॥ साध कै संग अगोचर मिलै ॥ साध कै संग सदा परफुलै ॥ साध कै संग आवहि बस पंचा ॥ साधसंग अमृत रस भुंचा ॥ साधसंग होए सभ की रेन ॥ साध कै संग मनोहर बैन ॥ साध कै संग न कतहूं धावै ॥ साधसंग असथित मन पावै ॥ साध कै संग माया ते भिन्न ॥ साधसंग नानक प्रभ सुप्रसंन ॥२॥ साधसंग दुसमन सभ मीत ॥ साधू कै संग महा पुनीत ॥ साधसंग किस स्यो नही बैर ॥ साध कै संग न बीगा पैर ॥ साध कै संग नाही को मंदा ॥ साधसंग जाने परमानंदा ॥ साध कै संग नाही हौं ताप ॥ साध कै संग तजै सभ आप ॥ आपे जानै साध बडाई ॥ नानक साध प्रभू बन आई ॥३॥ साध कै संग न कबहू धावै ॥ साध कै संग सदा सुख पावै ॥ साधसंग बसत अगोचर लहै ॥ साधू कै संग अजर सहै ॥ साध कै संग बसै थान ऊचै ॥ साधू कै संग महल पहूचै ॥ साध कै संग द्रिड़ै सभ धरम ॥ साध कै संग केवल पारब्रह्म ॥ साध कै संग पाए नाम निधान ॥ नानक साधू कै कुरबान ॥४॥ साध कै संग सभ कुल उधारै ॥ साधसंग साजन मीत कुटंब निसतारै ॥ साधू कै संग सो धन पावै ॥ जिस धन ते सभ को वरसावै ॥ साधसंग धरम राय करे सेवा ॥ साध कै संग सोभा सुरदेवा ॥ साधू कै संग पाप पलाइन ॥ साधसंग अमृत गुन गाइन ॥ साध कै संग सरब थान गम ॥ नानक साध कै संग सफल जनम ॥५॥ साध कै संग नही कछु घाल ॥ दरसन भेटत होत निहाल ॥ साध कै संग कलूखत हरै ॥ साध कै संग नरक परहरै ॥ साध कै संग ईहा ऊहा सुहेला ॥ साधसंग बिछुरत हर मेला ॥ जो इछै सोई फल पावै ॥ साध कै संग न बिरथा जावै ॥ पारब्रह्म साध रिद बसै ॥ नानक उधरै साध सुन रसै ॥६॥ साध कै संग सुनउ हर नांओ ॥ साधसंग हर के गुन गाओ ॥ साध कै संग न मन ते बिसरै ॥ साधसंग सरपर निसतरै ॥ साध कै संग लगै प्रभ मीठा ॥ साधू कै संग घट घट डीठा ॥ साधसंग भए आज्ञाकारी ॥ साधसंग गत भई हमारी ॥ साध कै संग मिटे सभ रोग ॥ नानक साध भेटे संजोग ॥७॥ साध की महिमा बेद न जानहि ॥ जेता सुनहि तेता बखयानहि ॥ साध की उपमा तिहु गुण ते दूर ॥ साध की उपमा रही भरपूर ॥ साध की सोभा का नाही अंत ॥ साध की सोभा सदा बेअंत ॥ साध की सोभा ऊच ते ऊची ॥ साध की सोभा मूच ते मूची ॥ साध की सोभा साध बन आई ॥ नानक साध प्रभ भेद न भाई ॥८॥७॥
8 सलोक ॥ मन साचा मुख साचा सोए ॥ अवर न पेखै एकस बिन कोए ॥ नानक इह लछण ब्रह्म ज्ञानी होए ॥१॥
अष्टपदी ॥ ब्रह्म ज्ञानी सदा निरलेप ॥ जैसे जल महि कमल अलेप ॥ ब्रह्म ज्ञानी सदा निरदोख ॥ जैसे सूर सरब कौ सोख ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै द्रिसट समान ॥ जैसे राज रंक कौ लागै तुल पवान ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै धीरज एक ॥ ज्यों बसुधा कोऊ खोदै कोऊ चंदन लेप ॥ ब्रह्म ज्ञानी का इहै गुनाउ ॥ नानक ज्यों पावक का सहज सुभाउ ॥१॥ ब्रह्म ज्ञानी निरमल ते निरमला ॥ जैसे मैल न लागै जला ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै मन होए प्रगास ॥ जैसे धर ऊपर आकास ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै मित्र सत्र समान ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै नाही अभिमान ॥ ब्रह्म ज्ञानी ऊच ते ऊचा ॥ मन अपनै है सभ ते नीचा ॥ ब्रह्म ज्ञानी से जन भए ॥ नानक जिन प्रभ आप करेए ॥२॥ ब्रह्म ज्ञानी सगल की रीना ॥ आतम रस ब्रह्म ज्ञानी चीना ॥ ब्रह्म ज्ञानी की सभ ऊपर मया ॥ ब्रह्म ज्ञानी ते कछु बुरा न भया ॥ ब्रह्म ज्ञानी सदा समदरसी ॥ ब्रह्म ज्ञानी की द्रिसट अमृत बरसी ॥ ब्रह्म ज्ञानी बंधन ते मुकता ॥ ब्रह्म ज्ञानी की निरमल जुगता ॥ ब्रह्म ज्ञानी का भोजन ज्ञान ॥ नानक ब्रह्म ज्ञानी का ब्रह्म ध्यान ॥३॥ ब्रह्म ज्ञानी एक ऊपर आस ॥ ब्रह्म ज्ञानी का नही बिनास ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै गरीबी समाहा ॥ ब्रह्म ज्ञानी परौपकार उमाहा ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै नाही धंधा ॥ ब्रह्म ज्ञानी ले धावत बंधा ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै होए सु भला ॥ ब्रह्म ज्ञानी सुफल फला ॥ ब्रह्म ज्ञानी संग सगल उधार ॥ नानक ब्रह्म ज्ञानी जपै सगल संसार ॥४॥ ब्रह्म ज्ञानी कै एकै रंग ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै बसै प्रभ संग ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै नाम आधार ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै नाम परवार ॥ ब्रह्म ज्ञानी सदा सद जागत ॥ ब्रह्म ज्ञानी अह्मबुध त्यागत ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै मन परमानंद ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै घर सदा अनंद ॥ ब्रह्म ज्ञानी सुख सहज निवास ॥ नानक ब्रह्म ज्ञानी का नही बिनास ॥५॥ ब्रह्म ज्ञानी ब्रह्म का बेता ॥ ब्रह्म ज्ञानी एक संग हेता ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै होए अचिंत ॥ ब्रह्म ज्ञानी का निरमल मंत ॥ ब्रह्म ज्ञानी जिस करै प्रभ आप ॥ ब्रह्म ज्ञानी का बड परताप ॥ ब्रह्म ज्ञानी का दरस बडभागी पाइए ॥ ब्रह्म ज्ञानी कौ बल बल जाईऐ ॥ ब्रह्म ज्ञानी कौ खोजहि महेसुर ॥ नानक ब्रह्म ज्ञानी आप परमेसुर ॥६॥ ब्रह्म ज्ञानी की कीमत नाहि ॥ ब्रह्म ज्ञानी कै सगल मन माहि ॥ ब्रह्म ज्ञानी का कौन जानै भेद ॥ ब्रह्म ज्ञानी कौ सदा अदेस ॥ ब्रह्म ज्ञानी का कथिया न जाए अधाख्यर ॥ ब्रह्म ज्ञानी सरब का ठाकुर ॥ ब्रह्म ज्ञानी की मित कौन बखानै ॥ ब्रह्म ज्ञानी की गत ब्रह्म ज्ञानी जानै ॥ ब्रह्म ज्ञानी का अंत न पार ॥ नानक ब्रह्म ज्ञानी कौ सदा नमसकार ॥७॥ ब्रह्म ज्ञानी सभ सृष्ट का करता ॥ ब्रह्म ज्ञानी सद जीवै नही मरता ॥ ब्रह्म ज्ञानी मुकत जुगत जीअ का दाता ॥ ब्रह्म ज्ञानी पूरन पुरख बिधाता ॥ ब्रह्म ज्ञानी अनाथ का नाथ॥ ब्रह्म ज्ञानी का सभ ऊपर हाथ ॥ ब्रह्म ज्ञानी का सगल अकार ॥ ब्रह्म ज्ञानी आप निरंकार ॥ ब्रह्म ज्ञानी की सोभा ब्रह्म ज्ञानी बनी ॥ नानक ब्रह्म ज्ञानी सरब का धनी ॥८॥८॥
9 सलोक ॥ उर धारै जो अंतर नाम ॥ सरब मै पेखै भगवान ॥ निमख निमख ठाकुर नमसकारै ॥ नानक ओहो अपरस सगल निसतारै ॥१॥
अष्टपदी ॥ मिथ्या नाही रसना परस ॥ मन महि प्रीत निरंजन दरस ॥ पर त्रिअ रूप न पेखै नेत्र ॥ साध की टहल संतसंग हेत ॥ करन न सुनै काहू की निंदा ॥ सभ ते जानै आपस कौ मंदा ॥ गुर प्रसाद बिख्या परहरै ॥ मन की बासना मन ते टरै ॥ इंद्री जित पंच दोख ते रहत ॥ नानक कोट मधे को ऐसा अपरस ॥१॥ बैसनो सो जिस ऊपर सुप्रसंन ॥ बिसन की माया ते होए भिन्न ॥ करम करत होवै निहकरम ॥ तिस बैसनो का निरमल धरम ॥ काहू फल की इछा नही बाछै ॥ केवल भगत कीरतन संग राचै ॥ मन तन अंतर सिमरन गोपाल ॥ सभ ऊपर होवत किरपाल ॥ आप द्रिड़ै अवरह नाम जपावै ॥ नानक ओहो बैसनो परम गत पावै ॥२॥ भगौती भगवंत भगत का रंग ॥ सगल त्यागै दुष्ट का संग ॥ मन ते बिनसै सगला भरम ॥ कर पूजै सगल पारब्रह्म ॥ साधसंग पापा मल खोवै ॥ तिस भगौती की मत ऊतम होवै ॥ भगवंत की टहल करै नित नीत ॥ मन तन अरपै बिसन परीत ॥ हर के चरन हिरदै बसावै ॥ नानक ऐसा भगौती भगवंत कौ पावै ॥३॥ सो पंडित जो मन परबोधै ॥ राम नाम आतम महि सोधै ॥ राम नाम सार रस पीवै ॥ उस पंडित कै उपदेस जग जीवै ॥ हर की कथा हिरदै बसावै ॥ सो पंडित फिर जोन न आवै ॥ बेद पुरान सिमृत बूझै मूल ॥ सूखम महि जानै असथूल ॥ चहु वरना कौ दे उपदेस ॥ नानक उस पंडित कौ सदा अदेस ॥४॥ बीज मंत्र सरब को ज्ञान ॥ चहु वरना महि जपै कोऊ नाम ॥ जो जो जपै तिस की गत होए ॥ साधसंग पावै जन कोए ॥ कर किरपा अंतर उर धारै ॥ पस प्रेत मुघद पाथर कौ तारै ॥ सरब रोग का औखध नाम ॥ कल्याण रूप मंगल गुण गाम ॥ काहू जुगत कितै न पाइए धरम ॥ नानक तिस मिलै जिस लिख्या धुर करम ॥५॥ जिस कै मन पारब्रह्म का निवास ॥ तिस का नाम सत रामदास ॥ आतम राम तिस नदरी आया ॥ दास दसंतण भाए तिन पाया ॥ सदा निकट निकट हर जान ॥ सो दास दरगह परवान ॥ अपुने दास कौ आप किरपा करै ॥ तिस दास कौ सभ सोझी परै ॥ सगल संग आतम उदास ॥ ऐसी जुगत नानक रामदास ॥६॥ प्रभ की आज्ञा आतम हितावै ॥ जीवन मुकत सोऊ कहावै ॥ तैसा हरख तैसा उस सोग ॥ सदा अनंद तह नही बियोग ॥ तैसा सुवरन तैसी उस माटी ॥ तैसा अमृत तैसी बिख खाटी ॥ तैसा मान तैसा अभिमान ॥ तैसा रंक तैसा राजान ॥ जो वरताए साई जुगत ॥ नानक ओहो पुरख कहीऐ जीवन मुकत ॥७॥ पारब्रह्म के सगले ठाओ ॥ जित जित घर राखै तैसा तिन नांओ ॥ आपे करन करावन जोग ॥ प्रभ भावै सोई फुन होग ॥ पसरियो आप होए अनत तरंग ॥ लखे न जाहि पारब्रह्म के रंग ॥ जैसी मत देए तैसा परगास ॥ पारब्रह्म करता अबिनास ॥ सदा सदा सदा दयाल ॥ सिमर सिमर नानक भए निहाल ॥८॥९॥
10 सलोक ॥ उसतत करहि अनेक जन अंत न पारावार ॥ नानक रचना प्रभ रची बहु बिध अनिक प्रकार ॥१॥
अष्टपदी ॥ कई कोट होए पूजारी ॥ कई कोट आचार ब्योहारी ॥ कई कोट भए तीरथ वासी ॥ कई कोट बन भ्रमहि उदासी ॥ कई कोट बेद के स्रोते ॥ कई कोट तपीसुर होते ॥ कई कोट आतम ध्यान धारहि ॥ कई कोट कबि काबि बीचारहि ॥ कई कोट नवतन नाम ध्यावह ॥ नानक करते का अंत न पावहि ॥१॥ कई कोट भए अभिमानी ॥ कई कोट अंध अज्ञानी ॥ कई कोट किरपन कठोर ॥ कई कोट अभिग आतम निकोर ॥ कई कोट पर दरब कौ हिरहि ॥ कई कोट पर दूखना करहि ॥ कई कोट माया स्रम माहि ॥ कई कोट परदेस भ्रमाहि ॥ जित जित लावहु तित तित लगना ॥ नानक करते की जानै करता रचना ॥२॥ कई कोट सिध जती जोगी ॥ कई कोट राजे रस भोगी ॥ कई कोट पंखी सरप उपाए ॥ कई कोट पाथर बिरख निपजाए ॥ कई कोट पवण पाणी बैसंतर ॥ कई कोट देस भू मंडल ॥ कई कोट ससीअर सूर नख्यत्र ॥ कई कोट देव दानव इंद्र सिर छत्र ॥ सगल समग्री अपनै सूत धारै ॥ नानक जिस जिस भावै तिस तिस निसतारै ॥३॥ कई कोट राजस तामस सातक ॥ कई कोट बेद पुरान सिमृत अर सासत ॥ कई कोट कीए रतन समुंद ॥ कई कोट नाना प्रकार जंत ॥ कई कोट कीए चिर जीवे ॥ कई कोट गिरी मेर सुवरन थीवे ॥ कई कोट जख्य किंनर पिसाच ॥ कई कोट भूत प्रेत सूकर म्रिगाच ॥ सभ ते नेरै सभहू ते दूर ॥ नानक आप अलिपत रहया भरपूर ॥४॥ कई कोट पाताल के वासी ॥ कई कोट नरक सुरग निवासी ॥ कई कोट जनमहि जीवहि मरहि ॥ कई कोट बहु जोनी फिरहि ॥ कई कोट बैठत ही खाहि ॥ कई कोट घालहि थकि पाहि ॥ कई कोट कीए धनवंत ॥ कई कोट माया महि चिंत ॥ जह जह भाणा तह तह राखे ॥ नानक सभ किछ प्रभ कै हाथे ॥५॥ कई कोट भए बैरागी ॥ राम नाम संग तिन लिव लागी ॥ कई कोट प्रभ कौ खोजंते ॥ आतम महि पारब्रह्म लहंते ॥ कई कोट दरसन प्रभ पिआस ॥ तिन कौ मिलिओ प्रभ अबिनास ॥ कई कोट मागहि सतसंग ॥ पारब्रह्म तिन लागा रंग ॥ जिन कौ होए आप सुप्रसंन ॥ नानक ते जन सदा धन धंन ॥६॥ कई कोट खाणी अर खंड ॥ कई कोट अकास ब्रह्मंड ॥ कई कोट होए अवतार ॥ कई जुगत कीनो बिसथार ॥ कई बार पसरिओ पासार ॥ सदा सदा इक एकंकार ॥ कई कोट कीने बहु भात ॥ प्रभ ते होए प्रभ माहि समात ॥ ता का अंत न जानै कोए ॥ आपे आप नानक प्रभ सोए ॥७॥ कई कोट पारब्रह्म के दास ॥ तिन होवत आतम परगास ॥ कई कोट तत के बेते ॥ सदा निहारहि एको नेत्रे ॥ कई कोट नाम रस पीवहि ॥ अमर भए सद सद ही जीवहि ॥ कई कोट नाम गुन गावहि ॥ आतम रस सुख सहज समावहि ॥ अपुने जन कौ सास सास समारे ॥ नानक ओइ परमेसुर के प्यारे ॥८॥१०॥
11 सलोक ॥ करण कारण प्रभ एक है दूसर नाही कोए ॥ नानक तिस बलिहारणै जल थल महीअल सोए ॥१॥
अष्टपदी ॥ करन करावन करनै जोग ॥ जो तिस भावै सोई होग ॥ खिन महि थाप उथापनहारा ॥ अंत नही किछ पारावारा ॥ हुकमे धार अधर रहावै ॥ हुकमे उपजै हुकम समावै ॥ हुकमे ऊच नीच ब्योहार ॥ हुकमे अनिक रंग परकार ॥ कर कर देखै अपनी वडिआई ॥ नानक सभ महि रहया समाई ॥१॥ प्रभ भावै मानुख गत पावै ॥ प्रभ भावै ता पाथर तरावै ॥ प्रभ भावै बिन सास ते राखै ॥ प्रभ भावै ता हर गुण भाखै ॥ प्रभ भावै ता पतित उधारै ॥ आप करै आपन बीचारै ॥ दुहा सिरया का आप सुआमी ॥ खेलै बिगसै अंतरजामी ॥ जो भावै सो कार करावै ॥ नानक दृष्टि अवर न आवै ॥२॥ कहु मानुख ते क्या होए आवै ॥ जो तिस भावै सोई करावै ॥ इस कै हाथ होए ता सभ किछ लेए ॥ जो तिस भावै सोई करेए ॥ अनजानत बिख्या महि रचै ॥ जे जानत आपन आप बचै ॥ भरमे भूला दह दिस धावै ॥ निमख माहि चार कुंट फिर आवै ॥ कर किरपा जिस अपनी भगत देए ॥ नानक ते जन नाम मिलेइ ॥३॥ खिन महि नीच कीट कौ राज ॥ पारब्रह्म गरीब निवाज ॥ जा का द्रिसट कछु न आवै ॥ तिस तत्काल दह दिस प्रगटावै ॥ जा कौ अपुनी करै बखसीस ॥ ता का लेखा न गनै जगदीस ॥ जीओ पिण्ड सभ तिस की रास ॥ घट घट पूरन ब्रह्म प्रगास ॥ अपनी बणत आप बनाई ॥ नानक जीवै देख बडाई ॥४॥ इस का बल नाही इस हाथ ॥ करन करावन सरब को नाथ ॥ आज्ञाकारी बपुरा जीओ ॥ जो तिस भावै सोई फुन थीउ ॥ कबहू ऊच नीच महि बसै ॥ कबहू सोग हरख रंग हसै ॥ कबहू निंद चिंद ब्योहार ॥ कबहू ऊभ अकास पयाल ॥ कबहू बेता ब्रह्म बीचार ॥ नानक आप मिलावणहार ॥५॥ कबहू निरत करै बहु भात ॥ कबहू सोए रहै दिन रात ॥ कबहू महा क्रोध बिकराल ॥ कबहूं सरब की होत रवाल ॥ कबहू होए बहै बड राजा ॥ कबहु भेखारी नीच का साजा ॥ कबहू अपकीरत महि आवै ॥ कबहू भला भला कहावै ॥ ज्यों प्रभ राखै तिव ही रहै ॥ गुर प्रसाद नानक सच कहै ॥६॥ कबहू होए पंडित करे बख्यान ॥ कबहू मोनिधारी लावै ध्यान ॥ कबहू तट तीरथ इसनान ॥ कबहू सिध साधिक मुख ज्ञान ॥ कबहू कीट हस्त पतंग होए जीआ ॥ अनिक जोन भरमै भरमीआ ॥ नाना रूप ज्यों स्वागी दिखावै ॥ ज्यों प्रभ भावै तिवै नचावै ॥ जो तिस भावै सोई होए ॥ नानक दूजा अवर न कोए ॥७॥ कबहू साधसंगत एहो पावै ॥ उस असथान ते बहुर न आवै ॥ अंतर होए ज्ञान परगास ॥ उस असथान का नही बिनास ॥ मन तन नाम रते इक रंग ॥ सदा बसहि पारब्रह्म कै संग ॥ ज्यों जल महि जल आए खटाना ॥ त्यों जोती संग जोत समाना ॥ मिट गए गवन पाए बिस्राम ॥ नानक प्रभ कै सद कुरबान ॥८॥११॥
12 सलोक ॥ सुखी बसै मसकीनीआ आप निवार तले ॥ बडे बडे अहंकारीआ नानक गरबि गले ॥१॥
अष्टपदी ॥ जिस कै अंतर राज अभिमान ॥ सो नरकपाती होवत सुआन ॥ जो जानै मै जोबनवंत ॥ सो होवत बिसटा का जंत ॥ आपस कौ करमवंत कहावै ॥ जनम मरै बहु जोन भ्रमावै ॥ धन भूम का जो करै गुमान ॥ सो मूरख अंधा अज्ञान ॥ कर किरपा जिस कै हिरदै गरीबी बसावै ॥ नानक ईहा मुकत आगै सुख पावै ॥१॥ धनवंता होए कर गरबावै ॥ त्रिण समान कछु संग न जावै ॥ बहु लसकर मानुख ऊपर करे आस ॥ पल भीतर ता का होए बिनास ॥ सभ ते आप जानै बलवंत ॥ खिन महि होए जाए भसमंत ॥ किसै न बदै आप अहंकारी ॥ धरम राय तिस करे खुआरी ॥ गुर प्रसाद जा का मिटै अभिमान ॥ सो जन नानक दरगह परवान ॥२॥ कोट करम करै हौं धारे ॥ स्रम पावै सगले बिरथारे ॥ अनिक तपस्या करे अहंकार ॥ नरक सुरग फिर फिर अवतार ॥ अनिक जतन कर आतम नही द्रवै ॥ हर दरगह कहु कैसे गवै ॥ आपस कौ जो भला कहावै ॥ तिसहि भलाई निकट न आवै ॥ सरब की रेन जा का मन होए ॥ कहु नानक ता की निरमल सोए ॥३॥ जब लग जानै मुझ ते कछु होए ॥ तब इस कौ सुख नाही कोए ॥ जब इह जानै मै किछ करता ॥ तब लग गर्भ जोन महि फिरता ॥ जब धारै कोऊ बैरी मीत ॥ तब लग निहचल नाही चीत ॥ जब लग मोह मगन संग माए ॥ तब लग धरम राय देए सजाए ॥ प्रभ किरपा ते बंधन तूटै ॥ गुर प्रसाद नानक हौं छूटै ॥४॥ सहस खटे लख कौ उठ धावै ॥ त्रिपत न आवै माया पाछै पावै ॥ अनिक भोग बिख्या के करै ॥ नह त्रिपतावै खप खप मरै ॥ बिना संतोख नही कोऊ राजै ॥ सुपन मनोरथ ब्रिथे सभ काजै ॥ नाम रंग सरब सुख होए ॥ बडभागी किसै परापत होए ॥ करन करावन आपे आप ॥ सदा सदा नानक हर जाप ॥५॥ करन करावन करनैहार ॥ इस कै हाथ कहा बीचार ॥ जैसी द्रिसट करे तैसा होए ॥ आपे आप आप प्रभ सोए ॥ जो किछ कीनो सु अपनै रंग ॥ सभ ते दूर सभहू कै संग ॥ बूझै देखै करै बिबेक ॥ आपहि एक आपहि अनेक ॥ मरै न बिनसै आवै न जाए ॥ नानक सद ही रहया समाए ॥६॥ आप उपदेसै समझै आप ॥ आपे रचिआ सभ कै साथ ॥ आप कीनो आपन बिसथार ॥ सभ कछु उस का ओहो करनैहार ॥ उस ते भिन्न कहहु किछ होए ॥ थान थनंतर एकै सोए ॥ अपुने चलित आप करणैहार ॥ कौतक करै रंग आपार ॥ मन महि आप मन अपुने माहि ॥ नानक कीमत कहन न जाए ॥७॥ सत सत सत प्रभ सुआमी ॥ गुर परसाद किनै वखयानी ॥ सच सच सच सभ कीना ॥ कोट मधे किनै बिरलै चीना ॥ भला भला भला तेरा रूप ॥ अत सुंदर अपार अनूप ॥ निरमल निरमल निरमल तेरी बाणी ॥ घट घट सुनी स्रवन बख्याणी ॥ पवित्र पवित्र पवित्र पुनीत ॥ नाम जपै नानक मन प्रीत ॥८॥१२॥
13 सलोक ॥ संत सरन जो जन परै सो जन उधरनहार ॥ संत की निंदा नानका बहुर बहुर अवतार ॥१॥
अष्टपदी ॥ संत कै दूखन आरजा घटै ॥ संत कै दूखन जम ते नही छुटै ॥ संत कै दूखन सुख सभ जाए ॥ संत कै दूखन नरक महि पाए ॥ संत कै दूखन मत होए मलीन ॥ संत कै दूखन सोभा ते हीन ॥ संत के हते कौ रखै न कोए ॥ संत कै दूखन थान भ्रष्ट होए ॥ संत कृपाल कृपा जे करै ॥ नानक संतसंग निंदक भी तरै ॥१॥ संत के दूखन ते मुख भवै ॥ संतन कै दूखन काग ज्यों लवै ॥ संतन कै दूखन सरप जोन पाए ॥ संत कै दूखन त्रिगद जोन किरमाए ॥ संतन कै दूखन त्रिसना महि जलै ॥ संत कै दूखन सभ को छलै ॥ संत कै दूखन तेज सभ जाए ॥ संत कै दूखन नीच नीचाइ ॥ संत दोखी का थाओ को नाहि ॥ नानक संत भावै ता ओइ भी गत पाहि ॥२॥ संत का निंदक महा अतताई ॥ संत का निंदक खिन टिकन न पाए ॥ संत का निंदक महा हतिआरा ॥ संत का निंदक परमेसुर मारा ॥ संत का निंदक राज ते हीन ॥ संत का निंदक दुखीआ अर दीन ॥ संत के निंदक कौ सरब रोग ॥ संत के निंदक कौ सदा बिजोग ॥ संत की निंदा दोख महि दोख ॥ नानक संत भावै ता उस का भी होए मोख ॥३॥ संत का दोखी सदा अपवित ॥ संत का दोखी किसै का नही मित ॥ संत के दोखी कौ डान लागै ॥ संत के दोखी कौ सभ त्यागै ॥ संत का दोखी महा अहंकारी ॥ संत का दोखी सदा बिकारी ॥ संत का दोखी जनमै मरै ॥ संत की दूखना सुख ते टरै ॥ संत के दोखी कौ नाही ठाओ ॥ नानक संत भावै ता लए मिलाए ॥४॥ संत का दोखी अध बीच ते टूटै ॥ संत का दोखी कितै काज न पहूचै ॥ संत के दोखी कौ उदिआन भ्रमाईऐ ॥ संत का दोखी उझड़ पाइए ॥ संत का दोखी अंतर ते थोथा ॥ ज्यों सास बिना मिरतक की लोथा ॥ संत के दोखी की जड़ किछ नाहि ॥ आपन बीज आपे ही खाहि ॥ संत के दोखी कौ अवर न राखनहार ॥ नानक संत भावै ता लए उबार ॥५॥ संत का दोखी इउ बिललाइ ॥ ज्यों जल बिहून मछुली तड़फड़ाइ ॥ संत का दोखी भूखा नही राजै ॥ ज्यों पावक ईधन नही ध्रापै ॥ संत का दोखी छुटै इकेला ॥ ज्यों बूआड़ु तिल खेत माहि दुहेला ॥ संत का दोखी धरम ते रहत ॥ संत का दोखी सद मिथ्या कहत ॥ किरत निंदक का धुर ही पया ॥ नानक जो तिस भावै सोई थिआ ॥६॥ संत का दोखी बिगड़ रूप होए जाए ॥ संत के दोखी कौ दरगह मिलै सजाए ॥ संत का दोखी सदा सहकाईऐ ॥ संत का दोखी न मरै न जीवाईऐ ॥ संत के दोखी की पुजै न आसा ॥ संत का दोखी उठचलै निरासा ॥ संत कै दोख न त्रिसटै कोए ॥ जैसा भावै तैसा कोई होए ॥ पया किरत न मेटै कोए ॥ नानक जानै सचा सोए ॥७॥ सभ घट तिस के ओहो करनैहार ॥ सदा सदा तिस कौ नमसकार ॥ प्रभ की उसतत करहु दिन रात ॥ तिसहि धिआवहु सास गिरास ॥ सभ कछु वरतै तिस का कीआ ॥ जैसा करे तैसा को थीआ ॥ अपना खेल आप करनैहार ॥ दूसर कौन कहै बीचार ॥ जिस नो कृपा करै तिस आपन नाम देए ॥ बडभागी नानक जन सेए ॥८॥१३॥
14 सलोक ॥ तजहु स्यानप सुर जनहु सिमरहु हर हर राय ॥ एक आस हर मन रखहु नानक दूख भरम भौ जाए ॥१॥
अष्टपदी ॥ मानुख की टैक ब्रिथी सभ जान || देवन कौ एकै भगवान ॥ जिस कै दीऐ रहै अघाए ॥ बहुर न त्रिसना लागै आए ॥ मारै राखै एको आप ॥ मानुख कै किछ नाही हाथ ॥ तिस का हुकम बूझि सुख होए ॥ तिस का नाम रख कंठपरोए ॥ सिमर सिमर सिमर प्रभ सोए ॥ नानक बिघन न लागै कोए ॥१॥ उसतत मन महि कर निरंकार ॥ कर मन मेरे सत ब्योहार ॥ निरमल रसना अमृत पीओ ॥ सदा सुहेला कर लेहि जीओ ॥ नैनहु पेख ठाकुर का रंग ॥ साधसंग बिनसै सभ संग ॥ चरन चलौ मारग गोबिंद ॥ मिटहि पाप जपीऐ हर बिंद ॥ कर हर करम स्रवन हर कथा ॥ हर दरगह नानक ऊजल मथा ॥२॥ बडभागी ते जन जग माहि ॥ सदा सदा हर के गुन गाहि ॥ राम नाम जो करहि बीचार ॥ से धनवंत गनी संसार ॥ मन तन मुख बोलहि हर मुखी ॥ सदा सदा जानहु ते सुखी ॥ एको एक एक पछानै ॥ इत उत की ओहो सोझी जानै ॥ नाम संग जिस का मन मानया ॥ नानक तिनहि निरंजन जानया ॥३॥ गुर प्रसाद आपन आप सुझै ॥ तिस की जानहु त्रिसना बुझै ॥ साधसंग हर हर जस कहत ॥ सरब रोग ते ओहो हर जन रहत ॥ अनदिन कीरतन केवल बख्यान ॥ गृहसत महि सोई निरबान ॥ एक ऊपर जिस जन की आसा ॥ तिस की कटीऐ जम की फासा ॥ पारब्रह्म की जिस मन भूख ॥ नानक तिसहि न लागहि दूख ॥४॥ जिस कौ हर प्रभ मन चित आवै ॥ सो संत सुहेला नही डुलावै ॥ जिस प्रभ अपुना किरपा करै ॥ सो सेवक कहु किस ते डरै ॥ जैसा सा तैसा द्रिसटाया ॥ अपुने कारज महि आप समाया ॥ सोधत सोधत सोधत सीझिआ ॥ गुर प्रसाद तत सभ बूझिआ ॥ जब देखउ तब सभ किछ मूल ॥ नानक सो सूखम सोई असथूल ॥५॥ नह किछ जनमै नह किछ मरै ॥ आपन चलित आप ही करै ॥ आवन जावन द्रिसट अनद्रिसट ॥ आज्ञाकारी धारी सभ सृष्ट ॥ आपे आप सगल महि आप ॥ अनिक जुगत रच थाप उथाप ॥ अबिनासी नाही किछ खंड ॥ धारण धार रहयो ब्रह्मंड ॥ अलख अभेव पुरख परताप ॥ आप जपाए त नानक जाप ॥६॥ जिन प्रभ जाता सु सोभावंत ॥ सगल संसार उधरै तिन मंत ॥ प्रभ के सेवक सगल उधारन ॥ प्रभ के सेवक दूख बिसारन ॥ आपे मेल लए किरपाल ॥ गुर का सबद जप भए निहाल ॥ उन की सेवा सोई लागै ॥ जिस नो कृपा करहि बडभागै ॥ नाम जपत पावहि बिस्राम ॥ नानक तिन पुरख कौ ऊतम कर मान ॥७॥ जो किछ करै सु प्रभ कै रंग ॥ सदा सदा बसै हर संग ॥ सहज सुभाइ होवै सो होए ॥ करणैहार पछाणै सोए ॥ प्रभ का कीआ जन मीठ लगाना ॥ जैसा सा तैसा द्रिसटाना ॥ जिस ते उपजे तिस माहि समाए ॥ ओइ सुख निधान उनहू बन आए ॥ आपस कौ आप दीनो मान ॥ नानक प्रभ जन एको जान ॥८॥१४॥
15 सलोक ॥ सरब कला भरपूर प्रभ बिरथा जाननहार ॥ जा कै सिमरन उधरीऐ नानक तिस बलिहार ॥१॥
अष्टपदी ॥ टूटी गाढनहार गोपाल ॥ सरब जीआ आपे प्रतिपाल ॥ सगल की चिंता जिस मन माहि ॥ तिस ते बिरथा कोई नाहि ॥ रे मन मेरे सदा हर जाप ॥ अबिनासी प्रभ आपे आप ॥ आपन कीआ कछुू न होए ॥ जे सउ प्रानी लोचै कोए ॥ तिस बिन नाही तेरै किछ काम ॥ गत नानक जप एक हर नाम ॥१॥ रूपवंत होए नाही मोहै ॥ प्रभ की जोत सगल घट सोहै ॥ धनवंता होए क्या को गरबै ॥ जा सभ किछ तिस का दीया दरबै ॥ अत सूरा जे कोऊ कहावै ॥ प्रभ की कला बिना कह धावै ॥ जे को होए बहै दातार ॥ तिस देनहार जानै गावार ॥ जिस गुर प्रसाद तूटै हौं रोग ॥ नानक सो जन सदा अरोग ॥२॥ ज्यों मंदर कौ थामै थमन ॥ त्यों गुर का सबद मनहि असथमन ॥ ज्यों पाखाणु नाव चड़ तरै ॥ प्राणी गुर चरण लगत निसतरै ॥ ज्यों अंधकार दीपक परगास ॥ गुर दरसन देख मन होए बिगास ॥ ज्यों महा उद्यान महि मारग पावै ॥ त्यों साधू संग मिल जोत प्रगटावै ॥ तिन संतन की बाछउ धूर ॥ नानक की हर लोचा पूर ॥३॥ मन मूरख काहे बिललाईऐ ॥ पुरब लिखे का लिखया पाइए ॥ दूख सूख प्रभ देवनहार ॥ अवर त्याग तू तिसहि चितार ॥ जो कछु करै सोई सुख मान ॥ भूला काहे फिरहि अजान ॥ कौन बसत आई तेरै संग ॥ लपट रहयो रस लोभी पतंग ॥ राम नाम जप हिरदे माहि ॥ नानक पत सेती घर जाहि ॥४॥ जिस वखर कौ लैन तू आया ॥ राम नाम संतन घर पाया ॥ तज अभिमान लेहु मन मोल ॥ राम नाम हिरदे महि तोल ॥ लाद खेप संतह संग चाल ॥ अवर त्याग बिख्या जंजाल ॥ धंन धंन कहै सभ कोए ॥ मुख ऊजल हर दरगह सोए ॥ एहो वापार विरला वापारै ॥ नानक ता कै सद बलिहारै ॥५॥ चरन साध के धोए धोए पीओ ॥ अरप साध कौ अपना जीओ ॥ साध की धूर करहु इसनान ॥ साध ऊपर जाईऐ कुरबान ॥ साध सेवा वडभागी पाइए ॥ साधसंग हर कीरतन गाईऐ ॥ अनिक बिघन ते साधू राखै ॥ हर गुन गाए अमृत रस चाखै ॥ ओट गही संतह दर आया ॥ सरब सूख नानक तिह पाया ॥६॥ मिरतक कौ जीवालनहार ॥ भूखे कौ देवत अधार ॥ सरब निधान जा की दृष्टि माहि ॥ पुरब लिखे का लहणा पाहि ॥ सभ किछ तिस का ओहो करनै जोग ॥ तिस बिन दूसर होआ न होग ॥ जप जन सदा सदा दिन रैणी ॥ सभ ते ऊच निरमल इह करणी ॥ कर किरपा जिस कौ नाम दीया ॥ नानक सो जन निरमल थीआ ॥७॥ जा कै मन गुर की परतीत ॥ तिस जन आवै हर प्रभ चीत ॥ भगत भगत सुनीऐ तिहु लोइ ॥ जा कै हिरदै एको होए ॥ सच करणी सच ता की रहत ॥ सच हिरदै सत मुख कहत ॥ साची द्रिसट साचा आकार ॥ सच वरतै साचा पासार ॥ पारब्रह्म जिन सच कर जाता ॥ नानक सो जन सच समाता ॥८॥१५॥
16 सलोक ॥ रूप न रेख न रंग किछ त्रिहु गुण ते प्रभ भिन्न ॥ तिसहि बुझाए नानका जिस होवै सुप्रसंन ॥१॥
अष्टपदी ॥ अबिनासी प्रभ मन महि राख ॥ मानुख की तू प्रीत त्याग ॥ तिस ते परै नाही किछ कोए ॥ सरब निरंतर एको सोए ॥ आपे बीना आपे दाना ॥ गहिर ग्मभीर गहीर सुजाना ॥ पारब्रह्म परमेसुर गोबिंद ॥ कृपा निधान दयाल बखसंद ॥ साध तेरे की चरनी पाओ ॥ नानक कै मन एहो अनराओ ॥१॥ मनसा पूरन सरना जोग ॥ जो कर पाया सोई होग ॥ हरन भरन जा का नेत्र फोर ॥ तिस का मंत्र न जानै होर ॥ अनद रूप मंगल सद जा कै ॥ सरब थोक सुनीअहि घर ता कै ॥ राज महि राज जोग महि जोगी ॥ तप महि तपीसर गृहसत महि भोगी ॥ ध्याए ध्याए भगतह सुख पाया ॥ नानक तिस पुरख का किनै अंत न पाया ॥२॥ जा की लीला की मित नाहि ॥ सगल देव हारे अवगाहि ॥ पिता का जनम कि जानै पूत ॥ सगल परोई अपुनै सूत ॥ सुमत ज्ञान ध्यान जिन देए ॥ जन दास नाम ध्यावह सेए ॥ तिहु गुण महि जा कौ भरमाए ॥ जनम मरै फिर आवै जाए ॥ ऊच नीच तिस के असथान ॥ जैसा जनावै तैसा नानक जान ॥३॥ नाना रूप नाना जा के रंग ॥ नाना भेख करहि इक रंग ॥ नाना बिध कीनो बिसथार ॥ प्रभ अबिनासी एकंकार ॥ नाना चलित करे खिन माहि ॥ पूर रहयो पूरन सभ ठाइ ॥ नाना बिध कर बनत बनाई ॥ अपनी कीमत आपे पाए ॥ सभ घट तिस के सभ तिस के ठाओ ॥ जप जप जीवै नानक हर नांओ ॥४॥ नाम के धारे सगले जंत ॥ नाम के धारे खंड ब्रह्मंड ॥ नाम के धारे सिमृत बेद पुरान ॥ नाम के धारे सुनन ज्ञान ध्यान ॥ नाम के धारे आगास पाताल ॥ नाम के धारे सगल आकार ॥ नाम के धारे पुरीआ सभ भवन ॥ नाम कै संग उधरे सुन स्रवन ॥ कर किरपा जिस आपनै नाम लाए ॥ नानक चौथे पद महि सो जन गत पाए ॥५॥ रूप सत जा का सत असथान ॥ पुरख सत केवल परधान ॥ करतूत सत सत जा की बाणी ॥ सत पुरख सभ माहि समाणी ॥ सत करम जा की रचना सत ॥ मूल सत सत उतपत ॥ सत करणी निरमल निरमली ॥ जिसहि बुझाए तिसहि सभ भली ॥ सत नाम प्रभ का सुखदाई ॥ बिस्वास सत नानक गुर ते पाए ॥६॥ सत बचन साधू उपदेस ॥ सत ते जन जा कै रिदै प्रवेस ॥ सत निरत बूझै जे कोए ॥ नाम जपत ता की गत होए ॥ आप सत कीआ सभ सत ॥ आपे जानै अपनी मित गत ॥ जिस की सृष्ट सु करणैहार ॥ अवर न बूझि करत बीचार ॥ करते की मित न जानै कीआ ॥ नानक जो तिस भावै सो वरतीआ ॥७॥ बिसमन बिसम भए बिसमाद ॥ जिन बूझिआ तिस आया स्वाद ॥ प्रभ कै रंग राच जन रहे ॥ गुर कै बचन पदारथ लहे ॥ ओइ दाते दुख काटनहार ॥ जा कै संग तरै संसार ॥ जन का सेवक सो वडभागी ॥ जन कै संग एक लिव लागी ॥ गुन गोबिद कीरतन जन गावै ॥ गुर प्रसाद नानक फल पावै ॥८॥१६॥
17 सलोक ॥ आद सच जुगाद सच ॥ है भ सच नानक होसी भ सच ॥१॥
अष्टपदी ॥ चरन सत सत परसनहार ॥ पूजा सत सत सेवदार ॥ दरसन सत सत पेखनहार ॥ नाम सत सत ध्यावनहार ॥ आप सत सत सभ धारी ॥ आपे गुण आपे गुणकारी ॥ सबद सत सत प्रभ बकता ॥ सुरत सत सत जस सुनता ॥ बुझनहार कौ सत सभ होए ॥ नानक सत सत प्रभ सोए ॥१॥ सत सरूप रिदै जिन मानया ॥ करन करावन तिन मूल पछानया ॥ जा कै रिदै बिस्वास प्रभ आया ॥ तत ज्ञान तिस मन प्रगटाया ॥ भै ते निरभौ होए बसाना ॥ जिस ते उपजिआ तिस माहि समाना ॥ बसत माहि ले बसत गडाई ॥ ता कौ भिन्न न कहना जाई ॥ बूझै बूझनहार बिबेक ॥ नाराइन मिले नानक एक ॥२॥ ठाकुर का सेवक आज्ञाकारी ॥ ठाकुर का सेवक सदा पूजारी ॥ ठाकुर के सेवक कै मन परतीत ॥ ठाकुर के सेवक की निरमल रीत ॥ ठाकुर कौ सेवक जानै संग ॥ प्रभ का सेवक नाम कै रंग ॥ सेवक कौ प्रभ पालनहारा ॥ सेवक की राखै निरंकारा ॥ सो सेवक जिस दया प्रभ धारै ॥ नानक सो सेवक सास सास समारै ॥३॥ अपुने जन का परदा ढाकै ॥ अपने सेवक की सरपर राखै ॥ अपने दास कौ देए वडाई ॥ अपने सेवक कौ नाम जपाई ॥ अपने सेवक की आप पत राखै ॥ ता की गत मित कोए न लाखै ॥ प्रभ के सेवक कौ को न पहूचै ॥ प्रभ के सेवक ऊच ते ऊचे ॥ जो प्रभ अपनी सेवा लाया ॥ नानक सो सेवक दह दिस प्रगटाया ॥४॥ नीकी कीरी महि कल राखै ॥ भसम करै लसकर कोट लाखै ॥ जिस का सास न काढत आप ॥ ता कौ राखत दे कर हाथ ॥ मानस जतन करत बहु भात ॥ तिस के करतब बिरथे जात ॥ मारै न राखै अवर न कोए ॥ सरब जीआ का राखा सोए ॥ काहे सोच करहि रे प्राणी ॥ जप नानक प्रभ अलख विडाणी ॥५॥ बारं बार बार प्रभ जपीऐ ॥ पी अमृत एहो मन तन ध्रपीऐ ॥ नाम रतन जिन गुरमुख पाया ॥ तिस किछ अवर नाही द्रिसटाया ॥ नाम धन नामो रूप रंग ॥ नामो सुख हर नाम का संग ॥ नाम रस जो जन त्रिपताने ॥ मन तन नामहि नाम समाने ॥ ऊठत बैठत सोवत नाम ॥ कहु नानक जन कै सद काम ॥६॥ बोलहु जस जिहबा दिन रात ॥ प्रभ अपनै जन कीनी दात ॥ करहि भगत आतम कै चाइ ॥ प्रभ अपने स्यो रहहि समाए ॥ जो होआ होवत सो जानै ॥ प्रभ अपने का हुकम पछानै ॥ तिस की महिमा कौन बखानउ ॥ तिस का गुन कहि एक न जानउ ॥ आठ पहर प्रभ बसहि हजूरे ॥ कहु नानक सेई जन पूरे ॥७॥ मन मेरे तिन की ओट लेहि ॥ मन तन अपना तिन जन देहि ॥ जिन जन अपना प्रभू पछाता ॥ सो जन सरब थोक का दाता ॥ तिस की सरन सरब सुख पावहि ॥ तिस कै दरस सभ पाप मिटावहि ॥ अवर स्यानप सगली छाडु ॥ तिस जन की तू सेवा लाग ॥ आवन जान न होवी तेरा ॥ नानक तिस जन के पूजहु सद पैरा ॥८॥१७॥
18 सलोक ॥ सत पुरख जिन जानया सतगुर तिस का नांओ ॥ तिस कै संग सिख उधरै नानक हर गुन गाओ ॥१॥
अष्टपदी ॥ सतगुर सिख की करै प्रतिपाल ॥ सेवक कौ गुर सदा दयाल ॥ सिख की गुर दुरमत मल हिरै ॥ गुर बचनी हर नाम उचरै ॥ सतगुर सिख के बंधन काटै ॥ गुर का सिख बिकार ते हाटै ॥ सतगुर सिख कौ नाम धन देए ॥ गुर का सिख वडभागी हे ॥ सतगुर सिख का हलत पलत सवारै ॥ नानक सतगुर सिख कौ जीअ नाल समारै ॥१॥ गुर कै गृहि सेवक जो रहै ॥ गुर की आज्ञा मन महि सहै ॥ आपस कौ कर कछु न जनावै ॥ हर हर नाम रिदै सद धिआवै ॥ मन बेचै सतगुर कै पास ॥ तिस सेवक के कारज रास ॥ सेवा करत होए निहकामी ॥ तिस कौ होत परापत सुआमी ॥ अपनी कृपा जिस आप करेए ॥ नानक सो सेवक गुर की मत लेए ॥२॥ बीस बिसवे गुर का मन मानै ॥ सो सेवक परमेसुर की गत जानै ॥ सो सतगुर जिस रिदै हर नांओ ॥ अनिक बार गुर कौ बल जाउ ॥ सरब निधान जीअ का दाता ॥ आठ पहर पारब्रह्म रंग राता ॥ ब्रह्म महि जन जन महि पारब्रह्म ॥ एकहि आप नही कछु भरम ॥ सहस स्यानप लया न जाईऐ ॥ नानक ऐसा गुर बडभागी पाइए ॥३॥ सफल दरसन पेखत पुनीत ॥ परसत चरन गत निरमल रीत ॥ भेटत संग राम गुन रवे ॥ पारब्रह्म की दरगह गवे ॥ सुन कर बचन करन आघाने ॥ मन संतोख आतम पतीआने ॥ पूरा गुर अख्यओ जा का मंत्र ॥ अमृत द्रिसट पेखै होए संत ॥ गुण बिअंत कीमत नही पाए ॥ नानक जिस भावै तिस लए मिलाए ॥४॥ जिहबा एक उसतत अनेक ॥ सत पुरख पूरन बिबेक ॥ काहू बोल न पहुचत प्रानी ॥ अगम अगोचर प्रभ निरबानी ॥ निराहार निरवैर सुखदाई ॥ ता की कीमत किनै न पाए ॥ अनिक भगत बंदन नित करहि ॥ चरन कमल हिरदै सिमरहि ॥ सद बलिहारी सतगुर अपने ॥ नानक जिस प्रसाद ऐसा प्रभ जपने ॥५॥ एहो हर रस पावै जन कोए ॥ अमृत पीवै अमर सो होए ॥ उस पुरख का नाही कदे बिनास ॥ जा कै मन प्रगटे गुनतास ॥ आठ पहर हर का नाम लेए ॥ सच उपदेस सेवक कौ देए ॥ मोह माया कै संग न लेप ॥ मन महि राखै हर हर एक ॥ अंधकार दीपक परगासे ॥ नानक भरम मोह दुख तह ते नासे ॥६॥ तपत माहि ठाढ वरताई ॥ अनद भया दुख नाठे भाई ॥ जनम मरन के मिटे अंदेसे ॥ साधू के पूरन उपदेसे ॥ भौ चूका निरभौ होए बसे ॥ सगल ब्याध मन ते खै नसे ॥ जिस का सा तिन किरपा धारी ॥ साधसंग जप नाम मुरारी ॥ थित पाए चूके भ्रम गवन ॥ सुन नानक हर हर जस स्रवन ॥७॥ निरगुन आप सरगुन भी ओही ॥ कला धार जिन सगली मोही ॥ अपने चरित प्रभ आप बनाए ॥ अपुनी कीमत आपे पाए ॥ हर बिन दूजा नाही कोए ॥ सरब निरंतर एको सोए ॥ ओत पोत रविआ रूप रंग ॥ भए प्रगास साध कै संग ॥ रच रचना अपनी कल धारी ॥ अनिक बार नानक बलिहारी ॥८॥१८॥
19 सलोक ॥ साथ न चालै बिन भजन बिख्या सगली छार ॥ हर हर नाम कमावना नानक एहो धन सार ॥१॥
अष्टपदी ॥ संत जना मिल करहु बीचार ॥ एक सिमर नाम आधार ॥ अवर उपाव सभ मीत बिसारहु ॥ चरन कमल रिद महि उर धारहु ॥ करन कारन सो प्रभ समरथ ॥ द्रिड़ु कर गहहु नाम हर वथ ॥ एहो धन संचहु होवहु भगवंत ॥ संत जना का निरमल मंत ॥ एक आस राखहु मन माहि ॥ सरब रोग नानक मिट जाहि ॥१॥ जिस धन कौ चार कुंट उठधावहि ॥ सो धन हर सेवा ते पावहि ॥ जिस सुख कौ नित बाछहि मीत ॥ सो सुख साधू संग परीत ॥ जिस सोभा कौ करहि भली करनी ॥ सा सोभा भज हर की सरनी ॥ अनिक उपावी रोग न जाए ॥ रोग मिटै हर अवखध लाए ॥ सरब निधान महि हर नाम निधान ॥ जप नानक दरगहि परवान ॥२॥ मन परबोधहु हर कै नाए ॥ दह दिस धावत आवै ठाइ ॥ ता कौ बिघन न लागै कोए ॥ जा कै रिदै बसै हर सोए ॥ कल ताती ठांढा हर नांओ ॥ सिमर सिमर सदा सुख पाओ ॥ भौ बिनसै पूरन होए आस ॥ भगत भाए आतम परगास ॥ तित घर जाए बसै अबिनासी ॥ कहु नानक काटी जम फासी ॥३॥ तत बीचार कहै जन साचा ॥ जनम मरै सो काचो काचा ॥ आवा गवन मिटै प्रभ सेव ॥ आप त्याग सरन गुरदेव ॥ इउ रतन जनम का होए उधार ॥ हर हर सिमर प्रान आधार ॥ अनिक उपाव न छूटनहारे ॥ सिमृत सासत बेद बीचारे ॥ हर की भगत करहु मन लाए ॥ मन बंछत नानक फल पाए ॥४॥ संग न चालस तेरै धना ॥ तूं क्या लपटावहि मूरख मना ॥ सुत मीत कुटंब अर बनिता ॥ इन ते कहहु तुम कवन सनाथा ॥ राज रंग माया बिसथार ॥ इन ते कहहु कवन छुटकार ॥ अस हसती रथ असवारी ॥ झूठा ड्मफु झूठु पासारी ॥ जिन दीए तिस बुझै न बिगाना ॥ नाम बिसार नानक पछुताना ॥५॥ गुर की मत तूं लेहि याने ॥ भगत बिना बहु डूबे सयाने ॥ हर की भगत करहु मन मीत ॥ निरमल होए तुम्हारो चीत ॥ चरन कमल राखहु मन माहि ॥ जनम जनम के किलबिख जाहि ॥ आप जपहु अवरा नाम जपावहु ॥ सुनत कहत रहत गत पावहु ॥ सार भूत सत हर को नांओ ॥ सहज सुभाइ नानक गुन गाओ ॥६॥ गुन गावत तेरी उतरस मैल ॥ बिनस जाए हौमै बिख फैल ॥ होहि अचिंत बसै सुख नाल ॥ सास ग्रास हर नाम समाल ॥ छाड स्यानप सगली मना ॥ साधसंग पावहि सच धना ॥ हर पूंजी संच करहु ब्योहार ॥ ईहा सुख दरगह जैकार ॥ सरब निरंतर एको देख ॥ कहु नानक जा कै मस्तक लेख ॥७॥ एको जप एको सालाहि ॥ एक सिमर एको मन आहि ॥ एकस के गुन गाओ अनंत ॥ मन तन जाप एक भगवंत ॥ एको एक एक हर आप ॥ पूरन पूर रहयो प्रभ ब्याप ॥ अनिक बिसथार एक ते भए ॥ एक अराध पराछत गए ॥ मन तन अंतर एक प्रभ राता ॥ गुर प्रसाद नानक इक जाता ॥८॥१९॥
20 सलोक ॥ फिरत फिरत प्रभ आया परया तौ सरनाए ॥ नानक की प्रभ बेनती अपनी भगती लाए ॥१॥
अष्टपदी ॥ जाचक जन जाचै प्रभ दान ॥ कर किरपा देवहु हर नाम ॥ साध जना की मागउ धूर ॥ पारब्रह्म मेरी सरधा पूर ॥ सदा सदा प्रभ के गुन गावौ ॥ सास सास प्रभ तुमहि ध्यावौ ॥ चरन कमल स्यो लागै प्रीत ॥ भगत करौ प्रभ की नित नीत ॥ एक ओट एको आधार ॥ नानक मागै नाम प्रभ सार ॥१॥ प्रभ की द्रिसट महा सुख होए ॥ हर रस पावै बिरला कोए ॥ जिन चाख्या से जन त्रिपताने ॥ पूरन पुरख नही डोलाने ॥ सुभर भरे प्रेम रस रंग ॥ उपजै चाउ साध कै संग ॥ परे सरन आन सभ त्याग ॥ अंतर प्रगास अनदिन लिव लाग ॥ बडभागी जपिआ प्रभ सोए ॥ नानक नाम रते सुख होए ॥२॥ सेवक की मनसा पूरी भई ॥ सतगुर ते निरमल मत लई ॥ जन कौ प्रभ होएओ दयाल ॥ सेवक कीनो सदा निहाल ॥ बंधन काट मुकत जन भया ॥ जनम मरन दूख भ्रम गया ॥ इछ पुनी सरधा सभ पूरी ॥ रवि रहया सद संग हजूरी ॥ जिस का सा तिन लीआ मिलाए ॥ नानक भगती नाम समाए ॥३॥ सो क्यों बिसरै ज घाल न भानै ॥ सो क्यों बिसरै ज कीआ जानै ॥ सो क्यों बिसरै जिन सभ किछ दीया ॥ सो क्यों बिसरै ज जीवन जीआ ॥ सो क्यों बिसरै ज अगन महि राखै ॥ गुर प्रसाद को बिरला लाखै ॥ सो क्यों बिसरै ज बिख ते काढै ॥ जनम जनम का टूटा गाढै ॥ गुर पूरै तत इहै बुझाया ॥ प्रभ अपना नानक जन ध्याया ॥४॥ साजन संत करहु एहो काम ॥ आन त्याग जपहु हर नाम ॥ सिमर सिमर सिमर सुख पावहु ॥ आप जपहु अवरह नाम जपावहु ॥ भगत भाए तरीऐ संसार ॥ बिन भगती तन होसी छार ॥ सरब कल्याण सूख निध नाम ॥ बूडत जात पाए बिस्राम ॥ सगल दूख का होवत नास ॥ नानक नाम जपहु गुनतास ॥५॥ उपजी प्रीत प्रेम रस चाउ ॥ मन तन अंतर इही सुआओ ॥ नेत्रहु पेख दरस सुख होए ॥ मन बिगसै साध चरन धोए ॥ भगत जना कै मन तन रंग ॥ बिरला कोऊ पावै संग ॥ एक बसत दीजै कर मया ॥ गुर प्रसाद नाम जप लया ॥ ता की उपमा कही न जाए ॥ नानक रहया सरब समाए ॥६॥ प्रभ बखसंद दीन दयाल ॥ भगत वछल सदा किरपाल ॥ अनाथ नाथ गोबिंद गुपाल ॥ सरब घटा करत प्रतिपाल ॥ आद पुरख कारण करतार ॥ भगत जना के प्रान अधार ॥ जो जो जपै सु होए पुनीत ॥ भगत भाए लावै मन हीत ॥ हम निरगुनीआर नीच अजान ॥ नानक तुमरी सरन पुरख भगवान ॥७॥ सरब बैकुंठ मुकत मोख पाए ॥ एक निमख हर के गुन गाए ॥ अनिक राज भोग बडिआई ॥ हर के नाम की कथा मन भाई ॥ बहु भोजन कापर संगीत ॥ रसना जपती हर हर नीत ॥ भली सु करनी सोभा धनवंत ॥ हिरदै बसे पूरन गुर मंत ॥ साधसंग प्रभ देहु निवास ॥ सरब सूख नानक परगास ॥८॥२०॥
21 सलोक ॥ सरगुन निरगुन निरंकार सुन्न समाधी आप ॥ आपन कीआ नानका आपे ही फिर जाप ॥१॥
अष्टपदी ॥ जब अकार एहो कछु न द्रिसटेता ॥ पाप पुन्न तब कह ते होता ॥ जब धारी आपन सुन्न समाध ॥ तब बैर बिरोध किस संग कमात ॥ जब इस का बरन चिहन न जापत ॥ तब हरख सोग कहु किसहि ब्यापत ॥ जब आपन आप आप पारब्रह्म ॥ तब मोह कहा किस होवत भरम ॥ आपन खेल आप वरतीजा ॥ नानक करनैहार न दूजा ॥१॥ जब होवत प्रभ केवल धनी ॥ तब बंध मुकत कहु किस कौ गनी ॥ जब एकहि हर अगम अपार ॥ तब नरक सुरग कहु कौन अउतार ॥ जब निरगुन प्रभ सहज सुभाइ ॥ तब सिव सकत कहहु कित ठाइ ॥ जब आपहि आप अपनी जोत धरै ॥ तब कवन निडर कवन कत डरै ॥ आपन चलित आप करनैहार ॥ नानक ठाकुर अगम अपार ॥२॥ अबिनासी सुख आपन आसन ॥ तह जनम मरन कहु कहा बिनासन ॥ जब पूरन करता प्रभ सोए ॥ तब जम की त्रास कहहु किस होए ॥ जब अबिगत अगोचर प्रभ एका ॥ तब चित्र गुपत किस पूछत लेखा ॥ जब नाथ निरंजन अगोचर अगाधे ॥ तब कौन छुटे कौन बंधन बाधे ॥ आपन आप आप ही अचरजा ॥ नानक आपन रूप आप ही उपरजा ॥३॥ जह निरमल पुरख पुरख पत होता ॥ तह बिन मैल कहहु क्या धोता ॥ जह निरंजन निरंकार निरबान ॥ तह कौन कौ मान कौन अभिमान ॥ जह सरूप केवल जगदीस ॥ तह छल छिद्र लगत कहु कीस ॥ जह जोत सरूपी जोत संग समावै ॥ तह किसहि भूख कवन त्रिपतावै ॥ करन करावन करनैहार ॥ नानक करते का नाहि सुमार ॥४॥ जब अपनी सोभा आपन संग बनाई ॥ तब कवन माए बाप मित्र सुत भाई ॥ जह सरब कला आपहि परबीन ॥ तह बेद कतेब कहा कोऊ चीन ॥ जब आपन आप आप उर धारै ॥ तौ सगन अपसगन कहा बीचारै ॥ जह आपन ऊच आपन आप नेरा ॥ तह कौन ठाकुर कौन कहीऐ चेरा ॥ बिसमन बिसम रहे बिसमाद ॥ नानक अपनी गत जानहु आप ॥५॥ जह अछल अछेद अभेद समाया ॥ ऊहा किसहि ब्यापत माया ॥ आपस कौ आपहि आदेस ॥ तिहु गुण का नाही परवेस ॥ जह एकहि एक एक भगवंता ॥ तह कौन अचिंत किस लागै चिंता ॥ जह आपन आप आप पतीआरा ॥ तह कौन कथै कौन सुननैहारा ॥ बहु बेअंत ऊच ते ऊचा ॥ नानक आपस कौ आपहि पहूचा ॥६॥ जह आप रचिओ परपंच अकार ॥ तिहु गुण महि कीनो बिसथार ॥ पाप पुन्न तह भई कहावत ॥ कोऊ नरक कोऊ सुरग बंछावत ॥ आल जाल माया जंजाल ॥ हौमै मोह भरम भै भार ॥ दूख सूख मान अपमान ॥ अनिक प्रकार कीओ बख्यान ॥ आपन खेल आप कर देखै ॥ खेल संकोचै तौ नानक एकै ॥७॥ जह अबिगत भगत तह आप ॥ जह पसरै पासार संत परताप ॥ दुहू पाख का आपहि धनी ॥ उन की सोभा उनहू बनी ॥ आपहि कौतक करै अनद चोज ॥ आपहि रस भोगन निरजोग ॥ जिस भावै तिस आपन नाए लावै ॥ जिस भावै तिस खेल खिलावै ॥ बेसुमार अथाह अगनत अतोलै ॥ ज्यों बुलावहु त्यों नानक दास बोलै ॥८॥२१॥
22 सलोक ॥ जीअ जंत के ठाकुरा आपे वरतणहार ॥ नानक एको पसरया दूजा कह द्रिसटार ॥१॥
अष्टपदी ॥ आप कथै आप सुननैहार ॥ आपहि एक आप बिसथार ॥ जा तिस भावै ता सृष्ट उपाए ॥ आपनै भाणै लए समाए ॥ तुम ते भिन्न नही किछ होए ॥ आपन सूत सभ जगत परोइ ॥ जा कौ प्रभ जीओ आप बुझाए ॥ सच नाम सोई जन पाए ॥ सो समदरसी तत का बेता ॥ नानक सगल सृष्ट का जेता ॥१॥ जीअ जंत्र सभ ता कै हाथ ॥ दीन दयाल अनाथ को नाथ ॥ जिस राखै तिस कोए न मारै ॥ सो मूआ जिस मनहु बिसारै ॥ तिस तज अवर कहा को जाए ॥ सभ सिर एक निरंजन राय ॥ जीअ की जुगत जा कै सभ हाथ ॥ अंतर बाहर जानहु साथ ॥ गुन निधान बेअंत अपार ॥ नानक दास सदा बलिहार ॥२॥ पूरन पूर रहे दयाल ॥ सभ ऊपर होवत किरपाल ॥ अपने करतब जानै आप ॥ अंतरजामी रहयो ब्याप ॥ प्रतिपालै जीअन बहु भात ॥ जो जो रचिओ सु तिसहि धिआत ॥ जिस भावै तिस लए मिलाए ॥ भगत करहि हर के गुण गाए ॥ मन अंतर बिस्वास कर मानया ॥ करनहार नानक इक जानया ॥३॥ जन लागा हर एकै नाए ॥ तिस की आस न बिरथी जाए ॥ सेवक कौ सेवा बन आई ॥ हुकम बूझि परम पद पाए ॥ इस ते ऊपर नही बीचार ॥ जा कै मन बसिआ निरंकार ॥ बंधन तोर भए निरवैर ॥ अनदिन पूजहि गुर के पैर ॥ इह लोक सुखीए परलोक सुहेले ॥ नानक हर प्रभ आपहि मेले ॥४॥ साधसंग मिल करहु अनंद ॥ गुन गावहु प्रभ परमानंद ॥ राम नाम तत करहु बीचार ॥ दुर्लभ देह का करहु उधार ॥ अमृत बचन हर के गुन गाओ ॥ प्रान तरन का इहै सुआओ ॥ आठ पहर प्रभ पेखहु नेरा ॥ मिटै अज्ञान बिनसै अंधेरा ॥ सुन उपदेस हिरदै बसावहु ॥ मन इछे नानक फल पावहु ॥५॥ हलत पलत दुए लेहु सवार ॥ राम नाम अंतर उर धार ॥ पूरे गुर की पूरी दीख्या ॥ जिस मन बसै तिस साच परीख्या ॥ मन तन नाम जपहु लिव लाए ॥ दूख दरद मन ते भौ जाए ॥ सच वापार करहु वापारी ॥ दरगह निबहै खेप तुमारी ॥ एका टेक रखहु मन माहि ॥ नानक बहुर न आवहि जाहि ॥६॥ तिस ते दूर कहा को जाए ॥ उबरै राखनहार ध्याए ॥ निरभौ जपै सगल भौ मिटै ॥ प्रभ किरपा ते प्राणी छुटै ॥ जिस प्रभ राखै तिस नाही दूख ॥ नाम जपत मन होवत सूख ॥ चिंता जाए मिटै अहंकार ॥ तिस जन कौ कोए न पहुचनहार ॥ सिर ऊपर ठाढा गुर सूरा ॥ नानक ता के कारज पूरा ॥७॥ मत पूरी अमृत जा की द्रिसट ॥ दरसन पेखत उधरत सृष्ट ॥ चरन कमल जा के अनूप ॥ सफल दरसन सुंदर हर रूप ॥ धंन सेवा सेवक परवान ॥ अंतरजामी पुरख प्रधान ॥ जिस मन बसै सु होत निहाल ॥ ता कै निकट न आवत काल ॥ अमर भए अमरा पद पाया ॥ साधसंग नानक हर ध्याया ॥८॥२२॥
23 सलोक ॥ ज्ञान अंजन गुर दीया अज्ञान अंधेर बिनास ॥ हर किरपा ते संत भेटया नानक मन परगास ॥१॥
अष्टपदी ॥ संतसंग अंतर प्रभ डीठा ॥ नाम प्रभू का लागा मीठा ॥ सगल समिग्री एकस घट माहि ॥ अनिक रंग नाना द्रिसटाहि ॥ नौ निध अमृत प्रभ का नाम ॥ देही महि इस का बिस्राम ॥ सुन्न समाध अनहत तह नाद ॥ कहन न जाई अचरज बिसमाद ॥ तिन देख्या जिस आप दिखाए ॥ नानक तिस जन सोझी पाए ॥१॥ सो अंतर सो बाहर अनंत ॥ घट घट ब्याप रहया भगवंत ॥ धरन माहि आकास पयाल ॥ सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥ बन तिन परबत है पारब्रह्म ॥ जैसी आज्ञा तैसा करम ॥ पौण पाणी बैसंतर माहि ॥ चार कुंट दह दिसे समाहि ॥ तिस ते भिन्न नही को ठाओ ॥ गुर प्रसाद नानक सुख पाओ ॥२॥ बेद पुरान सिमृत महि देख ॥ ससीअर सूर नख्यत्र महि एक ॥ बाणी प्रभ की सभ को बोलै ॥ आप अडोल न कबहू डोलै ॥ सरब कला कर खेलै खेल ॥ मोल न पाइए गुणह अमोल ॥ सरब जोत महि जा की जोत ॥ धार रहयो सुआमी ओत पोत ॥ गुर परसाद भरम का नास ॥ नानक तिन महि एहु बिसास ॥३॥ संत जना का पेखन सभ ब्रह्म ॥ संत जना कै हिरदै सभ धरम ॥ संत जना सुनहि सुभ बचन ॥ सरब ब्यापी राम संग रचन ॥ जिन जाता तिस की इह रहत ॥ सत बचन साधू सभ कहत ॥ जो जो होए सोई सुख मानै ॥ करन करावनहार प्रभ जानै ॥ अंतर बसे बाहर भी ओही ॥ नानक दरसन देख सभ मोही ॥४॥ आप सत कीआ सभ सत ॥ तिस प्रभ ते सगली उतपत ॥ तिस भावै ता करे बिसथार ॥ तिस भावै ता एकंकार ॥ अनिक कला लखी नह जाए ॥ जिस भावै तिस लए मिलाए ॥ कवन निकट कवन कहीऐ दूर ॥ आपे आप आप भरपूर ॥ अंतरगत जिस आप जनाए ॥ नानक तिस जन आप बुझाए ॥५॥ सरब भूत आप वरतारा ॥ सरब नैन आप पेखनहारा ॥ सगल समग्री जा का तना ॥ आपन जस आप ही सुना ॥ आवन जान इक खेल बनाया ॥ आज्ञाकारी कीनी माया ॥ सभ कै मध अलिप्तो रहै ॥ जो किछ कहणा सु आपे कहै ॥ आज्ञा आवै आज्ञा जाए ॥ नानक जा भावै ता लए समाए ॥६॥ इस ते होए सु नाही बुरा ॥ ओरै कहहु किनै कछु करा ॥ आप भला करतूत अत नीकी ॥ आपे जानै अपने जी की ॥ आप साच धारी सभ साच ॥ ओत पोत आपन संग राच ॥ ता की गत मित कही न जाए ॥ दूसर होए त सोझी पाए ॥ तिस का कीआ सभ परवान ॥ गुर प्रसाद नानक एहो जान ॥७॥ जो जानै तिस सदा सुख होए ॥ आप मिलाए लए प्रभ सोए ॥ ओहो धनवंत कुलवंत पतिवंत ॥ जीवन मुकत जिस रिदै भगवंत ॥ धंन धंन धंन जन आया ॥ जिस प्रसाद सभ जगत तराया ॥ जन आवन का इहै सुआओ ॥ जन कै संग चित आवै नांओ ॥ आप मुकत मुकत करै संसार ॥ नानक तिस जन कौ सदा नमसकार ॥८॥२३॥
24 सलोक ॥ पूरा प्रभ आराधिआ पूरा जा का नांओ ॥ नानक पूरा पाया पूरे के गुन गाओ ॥१॥
अष्टपदी ॥ पूरे गुर का सुन उपदेस ॥ पारब्रह्म निकट कर पेख ॥ सास सास सिमरहु गोबिंद ॥ मन अंतर की उतरै चिंद ॥ आस अनित त्यागहु तरंग ॥ संत जना की धूर मन मंग ॥ आप छोड बेनती करहु ॥ साधसंग अगन सागर तरहु ॥ हर धन के भर लेहु भंडार ॥ नानक गुर पूरे नमसकार ॥१॥ खेम कुसल सहज आनंद ॥ साधसंग भज परमानंद ॥ नरक निवार उधारहु जीओ ॥ गुन गोबिंद अमृत रस पीओ ॥ चित चितवहु नाराइण एक ॥ एक रूप जा के रंग अनेक ॥ गोपाल दामोदर दीन दयाल ॥ दुख भंजन पूरन किरपाल ॥ सिमर सिमर नाम बारं बार ॥ नानक जीअ का इहै अधार ॥२॥ उतम सलोक साध के बचन ॥ अमुलीक लाल एहि रतन ॥ सुनत कमावत होत उधार ॥ आप तरै लोकह निसतार ॥ सफल जीवन सफल ता का संग ॥ जा कै मन लागा हर रंग ॥ जै जै सबद अनाहद वाजै ॥ सुन सुन अनद करे प्रभ गाजै ॥ प्रगटे गुपाल महांत कै माथे ॥ नानक उधरे तिन कै साथे ॥३॥ सरन जोग सुन सरनी आए ॥ कर किरपा प्रभ आप मिलाए ॥ मिट गए बैर भए सभ रेन ॥ अमृत नाम साधसंग लैन ॥ सुप्रसंन भए गुरदेव ॥ पूरन होई सेवक की सेव ॥ आल जंजाल बिकार ते रहते ॥ राम नाम सुन रसना कहते ॥ कर प्रसाद दया प्रभ धारी ॥ नानक निबही खेप हमारी ॥४॥ प्रभ की उसतत करहु संत मीत ॥ सावधान एकागर चीत ॥ सुखमनी सहज गोबिंद गुन नाम ॥ जिस मन बसै सु होत निधान ॥ सरब इछा ता की पूरन होए ॥ प्रधान पुरख प्रगट सभ लोइ ॥ सभ ते ऊच पाए असथान ॥ बहुर न होवै आवन जान ॥ हर धन खाट चलै जन सोए ॥ नानक जिसहि परापत होए ॥५॥ खेम सांत रिध नव निध ॥ बुध ज्ञान सरब तह सिध ॥ बिद्या तप जोग प्रभ ध्यान ॥ ज्ञान सरेस्ट (श्रेष्ट) ऊतम इसनान ॥ चार पदारथ कमल प्रगास ॥ सभ कै मध सगल ते उदास ॥ सुंदर चतुर तत का बेता ॥ समदरसी एक द्रिसटेता ॥ इह फल तिस जन कै मुख भने ॥ गुर नानक नाम बचन मन सुने ॥६॥ एहो निधान जपै मन कोए ॥ सभ जुग महि ता की गत होए ॥ गुण गोबिंद नाम धुन बाणी ॥ सिमृत सासत्र बेद बखाणी ॥ सगल मतांत केवल हर नाम ॥ गोबिंद भगत कै मन बिस्राम ॥ कोट अप्राध साधसंग मिटै ॥ संत कृपा ते जम ते छुटै ॥ जा कै मस्तक करम प्रभ पाए ॥ साध सरणि नानक ते आए ॥७॥ जिस मन बसै सुनै लाए प्रीत ॥ तिस जन आवै हर प्रभ चीत ॥ जनम मरन ता का दूख निवारै ॥ दुलभ देह तत्काल उधारै ॥ निरमल सोभा अमृत ता की बानी ॥ एक नाम मन माहि समानी ॥ दूख रोग बिनसे भै भरम ॥ साध नाम निरमल ता के करम ॥ सभ ते ऊच ता की सोभा बनी ॥ नानक इह गुण नाम सुखमनी ॥८॥२४॥