Dulabh Janam Punn Phal Paiyo
Dulabh Janam Punn Phal Paiyo, Birtha Jaat Abibekaiy; is Hukamnama from Darbar Sri Harmandir Sahib, Amritsar today on Dated [pods field="date_ce"]. The Gurbani of Hukam came from the composition of Bhagat Ravidas Ji, documented under Raag Sorath on Ang 658 of SGGS Ji.
Hukamnama | ਦੁਲਭ ਜਨਮੁ ਪੁੰਨ ਫਲ ਪਾਇਓ ਬਿਰਥਾ ਜਾਤ ਅਬਿਬੇਕੈ ॥ |
Place | Darbar Sri Harmandir Sahib Ji, Amritsar |
Ang | 658 |
Creator | Bhagat Ravidas Ji |
Raag | Sorath |
Date CE | 28 November, 2023 |
Date Nanakshahi | 13 Maghar, 555 |
Gurmukhi Translation
( Dulabh Janam Punn Phal Paiyo... )
ਇਹ ਨਾਯਾਬ ਮਨੁੱਖੀ-ਜੀਵਨ, ਮੈਨੂੰ ਚੰਗੇ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਸਿਲੇ ਵਜੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਹੈ, ਪਰ ਸੋਚ-ਵਿਚਾਰ ਦੇ ਬਗੈਰ ਇਹ ਵਿਅਰਥ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ॥ ਦਸ, ਪਾਤਿਸ਼ਾਹਾਂ, ਇੰਦ੍ਰ ਤੁਲ ਘਰ ਤੇ ਤਖਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪ੍ਰੇਮ-ਮਈ, ਦੇ ਬਾਝੋਂ ਕਿਹੜੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਹਨ? ਤੂੰ ਪਾਤਿਸ਼ਾਹ ਪ੍ਰਮੇਸ਼ਰ ਦੇ ਨਾਮ ਦੇ ਸੁਆਦ ਵਲ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ, ਜਿਸ ਸੁਆਦ ਅੰਦਰ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਸੁਆਦ ਭੁੱਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ॥ ਠਹਿਰਾਉ ॥
ਅਸੀਂ ਝੱਲੇ ਹੋਏ ਗਏ ਹਾਂ, ਅਸੀਂ ਉਸ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ ਜਿਹੜਾ ਸਾਨੂੰ ਜਾਨਣ-ਯੋਗ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਵਿਚਰਦੇ ਜੋ ਵਿਚਾਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ॥ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਡੇ ਦਿਨ ਬੀਤਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ ॥ ਸਾਡੇ ਵਿਸ਼ੇ ਵੇਗ ਬਲਵਾਨ ਹਨ ਅਤੇ ਸਾਡੀ ਵਿਚਾਰ ਸਮਝ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੈ ॥ ਸ੍ਰੇਸ਼ਟ ਮਨੋਰਥ ਤਾਂਈਂ ਸਾਡੀ ਪਹੁੰਚ ਨਹੀਂ ॥ ਅਸੀਂ ਕਹਿੰਦੇ ਕੁੱਝ ਹਾਂ ਅਤੇ ਕਮਾਉਂਦੇ ਬਿਲਕੁਲ ਹੋਰ ਹੀ ਹਾਂ ॥ ਅਨੰਤ ਸੰਸਾਰੀ ਲਗਨਾਂ ਦੇ ਬਹਿਕਾਇਆਂ ਹੋਇਆਂ ਨੂੰ ਸਾਨੂੰ ਕੋਈ ਸੂਝ ਬੂਝ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦੀ ॥ ਤੇਰਾ ਗੋਲਾ! ਹੇ ਸੁਆਮੀ! ਰਵਿਦਾਸ ਆਖਦਾ ਹੈ, ਮੈਂ ਦਿਲੋਂ ਗਮਗੀਨ ਹਾਂ ॥ ਤੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁੱਸਾ ਮੇਰੇ ਉਤੋਂ ਹਟਾ ਲੈ ਤੇ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦੜੀ ਤੇ ਤਰਸ ਕਰ ॥
English Transliteration
Dhulabh Janam Punn Fal Paaeiou Birathhaa Jaath Abibaekai || Raajae Eindhr Samasar Grih Aasan Bin Har Bhagath Kehahu Kih Laekhai ||1|| N Beechaariou Raajaa Raam Ko Ras || Jih Ras An Ras Beesar Jaahee ||1|| Rehaao || Jaan Ajaan Bheae Ham Baavar Soch Asoch Dhivas Jaahee || Eindhree Sabal Nibal Bibaek Budhh Paramaarathh Paravaes Nehee ||2|| Keheeath Aan Achareeath An Kashh Samajh N Parai Apar Maaeiaa || Kehi Ravidhaas Oudhaas Dhaas Math Parehar Kop Karahu Jeea Dhaeiaa ||3||3||
English Translation
( Dulabh Janam Punn Phal Paiyo... )
We have gained this human life as a reward for our good actions (in the previous life) and pre-destined by the Lord's Will but it is going to be wasted without reciting the Lord's True Name. Even if we were to gain the position of the god Indra in the heavens even then, without the Lord's worship, it would be of no avail. (1)
We will feel sorry for not having enjoyed the bliss of reciting the Lord's True Name; and by partaking in the nectar of True Name, we are likely to forsake all other worldly pleasures. (Pause - 1)
O Brother! We are posing like foolish persons on our own knowingly and thus our whole life is wasted without realizing the Truth. In fact, the filthy mind and senses get encouraged whereas the right type of thinking (wisdom) becomes weaker and hazier, as this life is not spent in doing virtuous deeds or realization of the state of bliss and equipoise. This is the result of worldly falsehood enacted by the Lord that we do something else while proclaiming (saying) something else. And nothing is clear to us. O Ravidas! I am getting completely disgusted with this sort of thinking. (vicious thoughts)
O Lord! May You bestow Your Grace on persons like us also instead of getting annoyed with us! (3-3)
Download Hukamnama PDF
Hukamnama in Hindi
दुलभ जनम पुंन फल पायो बिरथा जात अबिबेकै ॥ राजे इंद्र समसर गृह आसन बिन हरि भगत कहहु किह लेखै ॥१॥ न बीचारिओ राजा राम को रस ॥ जिह रस अन रस बीसर जाही ॥१॥ रहाउ ॥ जान अजान भए हम बावर सोच असोच दिवस जाही ॥ इंद्री सबल निबल बिबेक बुध परमारथ परवेस नही ॥२॥ कहीअत आन अचरीअत अन कछ समझ न परै अपर माया ॥ कहि रविदास उदास दास मति परहरि कोप करहु जीअ दया ॥३॥३॥
Hukamnama meaning in Hindi
( Dulabh Janam Punn Phal Paiyo... )
यह दुर्लभ मनुष्य जन्म बड़े पुण्य फल के कारण प्राप्त हुआ है किन्तु अविवेक के कारण यह व्यर्थ ही बीतता जा रहा है। यदि राजा इंद्र के स्वर्ग जैसे महल एवं सिंहासन भी हो तो भी भगवान की भक्ति के बिना बताओ यह मेरे लिए व्यर्थ ही हैं॥ १ ॥ जीव ने राम के नाम के स्वाद का चिंतन नहीं किया, जिस नाम स्वाद में दूसरे सभी स्वाद विस्मृत हो जाते हैं॥ १ ॥ रहाउ ।
हम बावले हो गए हैं, हम उसे नहीं जानते, जो हमारे लिए जानने योग्य है और उसे नहीं सोचते, जिसे सोचना चाहिए।इस तरह हमारे जीवन के दिवस बीतते जा रहे हैं। विषय-विकार भोगने वाली हमारी इन्द्रियाँ बहुत बलवान हैं, इसलिए हमारा विवेक बुद्धि का परमार्थ में प्रवेश नहीं हुआ।२ । हम कहते कुछ हैं और करते कुछ अन्य ही हैं। यह माया बड़ी प्रबल है और हमें इसकी कोई सूझ नहीं पड़ती। रविदास जी का कथन है कि हे प्रभु! तेरे दास की मति उदास भाव परेशान हो रही है। इसलिए अपने क्रोध को दूर करके मेरे प्राणों पर दया करो ॥ ३॥ 3 ॥