Chaupai Sahib in Hindi | चौपई साहिब
Read Full Nitnem Bani of Benti Chaupai Sahib in the Hindi Language with corrected pronunciation. Chaupai is the short name used for "Kabiobach Benti Chaupai" composed by Guru Gobind Singh Ji. It is part of the 404th Charitra of Charitropakhiyan in Dasam Granth Sahib.
Nitnem Path | Language | Creator |
---|---|---|
Benti Chaupai Sahib | Hindi | Guru Gobind Singh |
सिख परंपरा यह मानती आई है कि 'विनती चौपई' का एक चित्त होकर पाठ करने से ताप, पाप व संताप सब दूर होते हैं। व विघ्नों, दुष्टों और सांसारिक मायूसियों से छुटकारा मिलता है। इस वाणी के पाठ से सुख की प्राप्ति व कलह क्लेश और संकट से निवृत्ति होती है। उत्साह और चढ़दी कला के लिए इस बानी को नित्य-नेम में शामिल किया गया है।
Chaupai Sahib Hindi
इक ओअंकार श्री वाहेगुरू जी की फतह ॥
पातिसाही दसवीं॥
कबियो बाच बेनती ॥
चौपई ॥
हमरी करो हाथ दै रच्छा ॥
पूरन होय चित्त की इच्छा ॥
तव चरनन मन रहै हमारा ॥
अपना जान करो प्रतिपारा ॥१॥
हमरे दुष्ट सभै तुम घावहु ॥
आप हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥
सेवक सिख्य सभै करतारा ॥२॥
मो रच्छा निज कर दै करियै ॥
सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥
पूरन होय हमारी आसा ॥
तोरि भजन की रहै प्यासा ॥३॥
तुमहि छाड कोई अवर न ध्याऊं ॥
जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥
सेवक सिख्य हमारे तारियहि ॥
चुन चुन श्त्रु हमारे मारियहि ॥४॥
आप हाथ दै मुझै उबरियै ॥
मरन काल का त्रास निवरियै ॥
हूजो सदा हमारे पच्छा ॥
स्री असिधुज जू करियहु रच्छा ॥५॥
राख लेहु मुहि राखनहारे ॥
साहिब संत सहाय प्यारे ॥
दीनबंधु दुष्टन के हंता ॥
तुमहो पुरी चतुर्दस कंता ॥६॥
काल पाए ब्रह्मा बपु धरा ॥
काल पाए सिवजू अवतरा ॥
काल पाए कर बिसन प्रकासा ॥
सकल काल का कीया तमासा ॥७॥
जवन काल जोगी सिव कीयो ॥
बेद राज ब्रह्मा जू थीयो ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥
नमस्कार है ताहि हमारा ॥८॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥
देव दैत जच्छन उपजायो ॥
आदि अंत एकै अवतारा ॥
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥९॥
नमस्कार तिस ही को हमारी ॥
सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥
श्त्रुन को पल मो बध कीयो ॥१०॥
घट घट के अंतर की जानत ॥
भले बुरे की पीर पछानत ॥
चीटी ते कुंचर अस्थूला ॥
सभ पर कृपा दृष्टि कर फूला ॥११॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥
सुख पाए साधन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछानै ॥
घट घट के पट पट की जानै ॥१२॥
जब उदकरख करा करतारा ॥
प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूं ॥
तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥१३॥
जेते बदन सृष्ट सभ धारै ॥
आप आपनी बूझ उचारै ॥
तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥
जानत बेद भेद अर आलम ॥१४॥
निरंकार निर्बिकार निरलंभ ॥
आदि अनील अनादि असंभ ॥
ताका मूढ़ उचारत भेदा ॥
जाको भेव न पावत बेदा ॥१५॥
ताकौ कर पाहन अनुमानत ॥
महां मूढ़ कछु भेद न जानत ॥
महादेव कौ कहत सदा सिव ॥
निरंकार का चीनत नहि भिव ॥१६॥
आप आपुनी बुध है जेती ॥
बरनत भिन्न भिन्न तुहि तेती ॥
तुमरा लखा न जाए पसारा ॥
किह बिध सजा प्रथम संसारा ॥१७॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥
रंक भयो राव कहीं भूपा ॥
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥
उतभुज खान बहुर रच दीनी ॥१८॥
कहूं फूल राजा ह्वै बैठा ॥
कहूं सिमट भयो संकर इकैठा ॥
सगरी सृष्ट दिखाए अचंभव ॥
आद जुगाद सरूप सुयंभव ॥१९॥
अब रच्छा मेरी तुम करो ॥
सिख्य उबार असिख्य संघरो ॥
दुष्ट जिते उठवत उतपाता ॥
सकल मलेछ करो रण घाता ॥२०॥
जे असिधुज तव सरनी परे ॥
तिन के दुष्ट दुखित ह्वै मरे ॥
पुरख जवन पग परे तिहारे ॥
तिन के तुम संकट सभ टारे ॥२१॥
जो कल कौ इक बार धिऐहै ॥
ता के काल निकट नहि ऐहै ॥
रच्छा होय ताहि सभ काला ॥
दुष्ट अरिष्ट टरे तत्काला ॥२२॥
कृपा दृष्ट तन जाहि निहरिहो ॥
ताके ताप तनक महि हरिहो ॥
रिद्ध सिद्ध घर मों सभ होए ॥
दुष्ट छाह छ्वै सकै न कोए ॥२३॥
एक बार जिन तुमैं संभारा ॥
काल फास ते ताहि उबारा ॥
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥
दारिद दुष्ट दोख ते रहा ॥२४॥
खड़ग केत मैं सरन तिहारी ॥
आप हाथ दै लेहु उबारी ॥
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥
दुष्ट दोख ते लेहु बचाई ॥२५॥
कृपा करी हम पर जग-माता
ग्रंथ करा पूरन सुभ राता
किलविख सकल देह को हरता
दुष्ट दोखीअन को छै करता
श्री असिधुज जब भए दयाला
पूरन करा ग्रंथ तत्काला
मन बाँछत् फल पावे सोई
दूख न तिसै ब्यापत कोई
अड़िल्ल
सुनै गुंग जो याहे सो रसना पावई
सुनै मूढ़ चित्त लाए चतुरता आवई
दूख दर्द भौ निकट ना तिन नर कै रहै
हो जो याकि एक बार चौपई को कहै
चौपई
संबत सत्रह सहस भणिजै
अर्ध सहस फुन तीन कहिजै
भाद्रव सुदी अष्टमी रविवारा
तीर सतुद्रव ग्रंथ सुधारा
सवैया
पांय गहे जब ते तुमरे तब ते कोउ आँख तरे नहीं आनयो
राम रहीम पुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मान्यो
सिमृत सास्त्र बेद सभे बहु भेद कहैं हम एक न जानयो
श्री असिपान कृपा तुमरी कर, मैं न कहयो सभ तोहे बखानयो
दोहरा
सगल दुआर कौ छाड कै, गहयो तुहारो द्वार
बाँहे गहे की लाज अस, गोबिन्द दास तुहार ।
वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तह ।।
Hello,
There are mistakes in the path especially in the end in the sawaiya:
kirpa tumhari kar not ‘humari’
Thank you for informing us about the mistakes.
What are other mistakes
You write this paath have some more mistakes which are those
There are no more mistakes. पाठ को शुद्ध लिखवा दिया गया है जी ।
Path correct hai
🙏🙏🙏🙏🙏🙏 Satnam waheguru Satnam waheguru
Path badiya ji