Satgur Purakh Milaai
Satgur Purakh Milaai Avgan Vikna Gun Ravaa Bal Ram Jiyo is Today's Hukamnama from Sachkhand Sri Harmandir Sahib, Sri Amritsar Sahib on Dated [pods field="date_ce"]. Hukam has been ordered by Satguru Ram Dass Ji, documented on Ang 773 of Sri Guru Granth Sahib Ji in Raag Soohi.
Hukamnama | ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਇ ਅਵਗਣ ਵਿਕਣਾ |
Place | Darbar Sri Harmandir Sahib Ji, Amritsar |
Ang | 773 |
Creator | Guru Ram Dass Ji |
Raag | Soohi |
Date CE | November 8, 2021 |
Date Nanakshahi | ਕੱਤਕ ੨੩, ੫੫੩ |
English Translation of Today's Hukamnama
Rag Suhi Mahala - 4 Chhant Ghar Pehla - Ik Oankar Satgur Parsad
( Satgur Purakh Milaai Avgan Vikna Gun Ravaa Bal Ram Jiyo )
"By the Grace of the Lord-sublime, Truth personified and attainable through the Guru's guidance. ".
O, True Master! May I be united? with the True Guru in whose company I may get over all my vicious (qualities) thoughts in exchange for Your virtues! Then I would sing Your praises daily and recite Your True Name through the Guru's Word. (Gurbani) The Guru's Word (Gurbani) has been so sweet that its study has helped me to shed away all my sins and vicious thoughts. Now as a result of this study, the mind has become peaceful, and we have done away with our egoism and the fear complex of the - Yama (god of death)
O, Nanak! Now we are enjoying the bliss of life day and night in the company of the Lord-creator, the True Master, ever-existing from the beginning of this universe, as we are fully prepared to accept the Lord-spouse within our body, which would enjoy the bliss of union with the Lord and His love through His light of knowledge. Now we have attained everything, pre-destined for us, by the Lord's Will. (1)
O, Lord! It appears as if we have got Lord's love, truthfulness, and contentment, and peace (from the parents-in-law of the children) in the form of sweets for the auspicious occasion and the Guru's Word (studied) read (to other) as the songs sung at such auspicious occasions. When we attained salvation through the study of Gurbani (Guru's Word), we got the company of such Gurusikhs who helped us to complete our functions successfully. Now we have shed our anger, and the burning desires for worldly things (possessions) have disappeared and all the misgivings and formal rituals including all vices have been eliminated. With egoism, having been removed, the (body) sufferings gave way to all sorts of comforts. O, Nanak! Now we have realized the Lord,· the fountain-head of all virtues, through the Guru's Grace. (2)
O, True Master (Balram)! The self-minded person, having been separated from the Lord-spouse, wanders around the cycle of the Rebirths and is far removed from the Lord just like the wedded woman separated from her spouse, and burns in the fire of acquiring move worldly possessions. There is falsehood and worldly desires working within the individual and the foolish person conducts the false business of life thus being devoured by falsehood. in fact, the self-willed person, without the Guru's guidance, suffers in life as no one gets to know the right path towards uniting with the Lord just as the forsaken wedded woman roams around, having lost her way and suffers problems every moment. But the Lord bestows the (association) company of the Guru when He blesses us with His Grace. O, Nanak! Now the Lord has united us, having been separated from Him for ages, with Himself in a state of 'Equipoise'.(3)
O'Lord! The Guru-minded person now enjoys the bliss of life, having got the chance( of uniting with the Lord for which he was having the craving for so long. Gust as one receives certain sweets or other articles in confirmation of the marriage proposal). The Guru-minded person now sings the praises of the Lord, like the pandit reading one's astrological diary, by reciting the Guru's Word (Gurbani) thus ridding oneself of the three-pronged Maya and giving the right guidance to others. So with the understanding of the right meaning of the Guru's Word, we felt joy within ourselves on learning that the saints are now waiting for us within our own (home), inner-self. We thus realized the true knowledge of the Guru's Word from such Guru-minded persons as if the marriage was solemnized with the Lord-spouse. O, Nanak! Now we have attained the Lord- spouse, who was hidden and beyond our comprehension, with a completely new form though known from childhood, thus the (Sikh) disciple gets united with the Lord-spouse through the Lord's Grace, never to be separated from Him again. (4- 1)
Hukamnama in Hindi
राग सूही महला ४ छंत घर १
ੴ सतिगुर प्रसाद ॥
सतिगुर पुरख मिलाए अवगण विकणा गुण रवा बल राम जीओ ॥ हरि हरि नाम धिआए गुरबाणी नित नित चवा बल राम जीओ ॥ गुरबाणी सद मीठी लागी पाप विकार गवाया ॥ हौमै रोग गया भौ भागा सहजे सहज मिलाया ॥ काया सेज गुर सबद सुखाली ज्ञान तत्त कर भोगो ॥ अनदिनु सुख माणे नित रलीआ नानक धुर संजोगो ॥१॥ सत संतोख कर भाओ कुड़म कुड़माई आया बल राम जीओ ॥ संत जना कर मेल गुरबाणी गावाया बल राम जीओ ॥ बाणी गुर गाई परम गत पाई पंच मिले सोहाया ॥ गया करोध ममता तन नाठी पाखंड भरम गवाया ॥ हौमै पीर गई सुख पाया आरोगत भए सरीरा ॥ गुर परसादी ब्रह्म पछाता नानक गुणी गहीरा ॥२॥ मनमुख विछुड़ी दूर महल न पाए बल गई बल राम जीओ ॥ अंतर ममता कूर कूड़ विहाझे कूड़ लई बल राम जीओ ॥ कूड़ कपट कमावै महा दुख पावै विण सतगुर मग न पाया ॥ ओझड़ पंथ भ्रमै गावारी खिन खिन धक्के खाया ॥ आपे दया करे प्रभ दाता सतगुरु पुरख मिलाए ॥ जनम जनम के विछुड़े जन मेले नानक सहज सुभाए ॥३॥ आया लगन गणाए हिरदै धन ओमाहीआ बल राम जीओ ॥ पंडित पाधे आण पती बह वाचाया बल राम जीओ ॥ पती वाचाई मन वजी वधाई जब साजन सुणे घर आए ॥ गुणी ज्ञानी बह मता पकाया फेरे तत्त दिवाए ॥ वर पाया पुरख अगम अगोचर सद नवतन बाल सखाई ॥ नानक किरपा कर कै मेले विछुड़ कदे न जाई ॥४॥१॥
Hukamnama meaning in Hindi
रागु सूही महला ४ छंत घरु १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
Satgur Purakh Milaai...
हे राम ! मैं तुझ पर कुर्बान हूँ, मुझे महापुरुष सतिगुरु से मिला दो, ताकि मैं अपने अवगुणों को समाप्त करके तेरा गुणगान करता रहूँ। मैं हरि-नाम का ध्यान करता रहूँ और नित्य-प्रतिदिन गुरु वाणी का जाप करता रहूँ। मुझे गुरु वाणी सदैव मीठी लगती है, क्योंकि उसने मेरे मन में से पाप-विकार नाश कर दिए हैं। मेरा अहंत्व का रोग दूर हो गया है, मेरा मृत्यु का भय भी समाप्त हो गया है और सहज ही मुझे मिला दिया है। गुरु के शब्द द्वारा मेरी काया रूपी सेज सुखद हो गई है और ज्ञान-तत्व को अपना भोजन बना लिया है। हे नानक ! मैं रात-दिन सुख की अनुभूतेि करता हूँ, नित्य ही आनंद करता हूँ, क्योंकिं प्रारम्भ से ही ऐसा संयोग लिखा हुआ था ॥ १॥
हे राम ! मैं तुझ पर बलिहारी हूँ, जीव रूपी कन्या ने सत्य, संतोष एवं प्रेम को अपना श्रृंगार बना लिया है और गुरु रूपी समधी सगाई करने आ गया है। संतजनों का मेल करके गुरु वाणी का गायन किया गया। जब गुरु ने वाणी का गायन किया तो परमगति मिल गई। संत रूपी पंच मिलकर बैठ गए तो सगाई का कार्य सुन्दर बन गया। उसके शरीर में से क्रोध एवं ममता भाग गई है और पाखण्ड एवं भ्रम का नाश हो गया। उसके मन में से अहंकार की पीड़ा नाश हो गई है, सुख उपलब्ध हो गया है और शरीर अरोग्य हो गया है। हे नानक ! गुरु की कृपा से उसने ब्रह्म को पहचान लिया है, जो गुणों का गहरा सागर है॥ २॥
मैं राम पर बलिहारी हूँ। स्वेच्छाचारी जीव-स्त्री पति-प्रभु से बिछुड़ गई है और उसके चरणों से दूर होकर उसका द्वार प्राप्त नहीं करती अपितु तृष्णा की अग्नि में जल रही है। उसके मन में झूठी भृमता रहती है और वह मिथ्या माया को खरीदती है। मिथ्या माया ने उसे छल लिया है। वह झूठ एवं कपट कमाकर महादुख प्राप्त करती है और सतिगुरु के बिना उसने सन्मार्ग नहीं पाया। वह मूर्ख वीरान पथ में भटकती रहती है और क्षण-क्षण ठोकरें खाती रहती है। जब दाता प्रभु स्वयं ही दया करता है तो वह महापुरुष सतिगुरु से उसे मिला देता है। हे नानक ! सतगुरु जन्म-जन्मांतर से बिछुड़े हुए जीवों को सहज-स्वभाव ही प्रभु से मिला देता है॥ ३॥
मैं राम पर कुर्बान हूँ । जब लग्न गिनने से विवाह का निश्चित समय आ गया तो जीव-स्त्री के हृदय में चाव उत्पन्न हो गया। पण्डित, पुरोहित ने पत्री लाकर बैठकर भॉवरे देने के समय का विचार किया, पत्री बांची गई। जीव-स्त्री के मन में खुशी पैदा हो गई जब उसने सुना कि उसका साजन प्रभु उसके हृदय-घर में आ गया है। गुणवान एवं ज्ञानियों ने बैठकर सलाह कर ली और तुरंत ही उनके भॉवरे दिलवा गए। जीव-स्त्री ने सर्वशक्तिमान, अगम्य, अगोचर, सदैव नवीन एवं बालसखा अपने वर रूपी परमात्मा को पा लिया है। हे नानक ! जिस जीवात्मा को प्रभु अपनी कृपा करके अपने साथ मिला लेता है, वह कभी भी उससे बिछुड़ कर अलग नहीं हुई॥ ४॥ १ ॥
*राम यहाँ निर्गुण अकाल पुरुष से संबद्ध है।
Download Hukamnama PDF
Translation in Punjabi
Satgur Purakh Milaai...
ਹੇ ਰਾਮ ਜੀ! ਮੈਂ ਤੈਥੋਂ ਸਦਕੇ ਹਾਂ। ਮੈਨੂੰ ਗੁਰੂ-ਪੁਰਖ ਮਿਲਾ (ਜਿਸ ਦੀ ਰਾਹੀਂ) ਮੈਂ (ਤੇਰੇ) ਗੁਣ ਯਾਦ ਕਰਾਂ, ਅਤੇ (ਇਹਨਾਂ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਵੱਟੇ) ਔਗੁਣ ਵੇਚ ਦਿਆਂ (ਦੂਰ ਕਰ ਦਿਆਂ)। ਹੇ ਹਰੀ! ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰ ਸਿਮਰ ਕੇ ਮੈਂ ਸਦਾ ਹੀ ਗੁਰੂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਉਚਾਰਾਂ। ਜਿਸ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸਦਾ ਪਿਆਰੀ ਲੱਗਦੀ ਹੈ, ਉਹ (ਆਪਣੇ ਅੰਦਰੋਂ) ਪਾਪ ਵਿਕਾਰ ਦੂਰ ਕਰ ਲੈਂਦੀ ਹੈ। ਉਸ ਦਾ ਹਉਮੈ ਦਾ ਰੋਗ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਹਰੇਕ ਕਿਸਮ ਦਾ ਡਰ-ਸਹਿਮ ਭੱਜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹੀ ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ ਟਿਕੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਬਰਕਤਿ ਨਾਲ ਉਸ ਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਸੇਜ ਸੁਖ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ (ਸੁਖ ਦਾ ਘਰ ਬਣ ਜਾਂਦੀ ਹੈ), ਆਤਮਕ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸੂਝ ਦੇ ਮੂਲ-ਪ੍ਰਭੂ ਵਿਚ ਜੁੜ ਕੇ ਉਹ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਮਿਲਾਪ ਦਾ ਸੁਖ ਮਾਣਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਧੁਰ ਦਰਗਾਹ ਤੋਂ ਜਿਸ ਦੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਸੰਜੋਗ ਲਿਖਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਹਰ ਵੇਲੇ ਆਨੰਦ ਵਿਚ ਟਿਕੀ ਰਹਿ ਕੇ ਸਦਾ (ਪ੍ਰਭੂ-ਮਿਲਾਪ ਦਾ) ਸੁਖ ਮਾਣਦੀ ਹੈ ॥੧॥
ਹੇ ਰਾਮ ਜੀ! ਮੈਂ ਤੈਥੋਂ ਸਦਕੇ ਹਾਂ। (ਜਿਸ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੂੰ) ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਨਾਲ ਮਿਲਾਣ ਵਾਸਤੇ ਵਿਚੋਲਾ-ਗੁਰੂ ਆ ਕੇ ਮਿਲ ਪਿਆ (ਉਸ ਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ) ਸੇਵਾ ਸੰਤੋਖ ਪ੍ਰੇਮ ਆਦਿਕ ਗੁਣ ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ, ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਦਾ (ਉਸ ਨਾਲ) ਮੇਲ ਕਰ ਕੇ ਗੁਰੂ ਨੇ (ਉਸ ਨੂੰ) ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਦੀ ਬਾਣੀ ਗਾਵਣ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਕੀਤੀ। ਜਦੋਂ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਦੀ ਉਚਾਰੀ ਹੋਈ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਵਾਲੀ ਬਾਣੀ ਗਾਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ, ਉਸ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੀ ਆਤਮਕ ਅਵਸਥਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਈ। ਉਸ ਦੇ ਗਿਆਨ-ਇੰਦ੍ਰੇ (ਵਿਕਾਰਾਂ ਵਲ ਦੌੜਨ ਦੇ ਥਾਂ ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਤਿ-ਸਾਲਾਹ ਕਰਨ ਵਿਚ) ਮਿਲ ਬੈਠੇ, ਤੇ ਸੋਹਣੇ ਲੱਗਣ ਲੱਗ ਪਏ। ਉਸ ਦੇ ਅੰਦਰੋਂ ਕ੍ਰੋਧ ਦੂਰ ਹੋ ਗਿਆ, ਉਸ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਵੱਸਦੀ ਮਮਤਾ ਨੱਸ ਗਈ, ਉਸ ਦਾ ਪਖੰਡ ਦੂਰ ਹੋ ਗਿਆ, ਭਟਕਣਾ ਦੂਰ ਹੋ ਗਈ। (ਉਸ ਦੇ ਅੰਦਰੋਂ) ਹਉਮੈ ਦੀ ਪੀੜ ਚਲੀ ਗਈ, ਉਸ ਦਾ ਸਾਰਾ ਸਰੀਰ ਨਿਰੋਆ ਹੋ ਗਿਆ, ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਗਿਆ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਉਸ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੇ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਡੂੰਘੇ ਜਿਗਰੇ ਵਾਲੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਾਲ ਸਾਂਝ ਪਾ ਲਈ ॥੨॥
ਆਪਣੇ ਮਨ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਤੁਰਨ ਵਾਲੀ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਨਾਲੋਂ ਵਿਛੁੜੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ, (ਉਸ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਤੋਂ) ਦੂਰ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ, (ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੀ ਅੱਗ ਵਿਚ) ਸੜੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ। ਉਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਝੂਠੀ ਮਮਤਾ ਬਣੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ, ਉਹ ਸਦਾ ਨਾਸਵੰਤ ਮਾਇਆ ਹੀ ਇਕੱਠੀ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਮਾਇਆ ਉਸ ਨੂੰ ਸਦਾ ਗ੍ਰਸੀ ਰੱਖਦੀ ਹੈ। ਉਹ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ (ਮਾਇਆ ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਸਦਾ) ਝੂਠ ਠੱਗੀ (ਆਦਿਕ ਦੀ) ਕਾਰ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਬੜਾ ਦੁੱਖ ਸਹਾਰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ, ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਰਨ ਪੈਣ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਉਸ ਨੂੰ (ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਸਹੀ) ਰਸਤਾ ਨਹੀਂ ਲੱਭਦਾ। ਉਹ ਮੂਰਖ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਉਜਾੜ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿਚ (ਜਿਥੇ ਕਾਮਾਦਿਕ ਲੁਟੇਰੇ ਲੁੱਟ ਲੈਂਦੇ ਹਨ) ਭਟਕਦੀ ਫਿਰਦੀ ਹੈ, ਤੇ ਹਰ ਵੇਲੇ ਧੱਕੇ ਖਾਂਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਮਨੁੱਖਾਂ ਉਤੇ ਦਾਤਾਰ ਪ੍ਰਭੂ ਆਪ ਹੀ ਦਇਆ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਮਰੱਥ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾ ਦੇਂਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਉਹਨਾਂ ਅਨੇਕਾਂ ਜਨਮਾਂ ਦੇ ਵਿਛੁੜੇ ਹੋਇਆਂ ਨੂੰ ਆਤਮਕ ਅਡੋਲਤਾ ਵਿਚ ਪ੍ਰੇਮ ਵਿਚ ਟਿਕਾ ਕੇ ਪ੍ਰਭੂ ਨਾਲ ਮਿਲਾ ਦੇਂਦਾ ਹੈ ॥੩॥
(ਜਿਵੇਂ ਜਦੋਂ ਲਾੜਾ) ਮੁਹੂਰਤ ਕਢਾ ਕੇ (ਜੰਞ ਲੈ ਕੇ) ਆਉਂਦਾ ਹੈ (ਤਾਂ,) ਇਸਤ੍ਰੀ ਆਪਣੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਪਾਂਧੇ ਪੰਡਿਤ ਪੱਤ੍ਰੀ ਲਿਆ ਕੇ ਬੈਠ ਕੇ (ਫੇਰੇ ਦੇਣ ਦਾ ਵੇਲਾ) ਵਿਚਾਰਦੇ ਹਨ। (ਪਾਂਧੇ ਪੰਡਿਤ) ਪੱਤ੍ਰੀ ਵਿਚਾਰਦੇ ਹਨ (ਉਧਰ) ਜਦੋਂ (ਵਿਆਹ ਵਾਲੀ ਕੰਨਿਆ) ਸੱਜਣ ਘਰ ਵਿਚ ਆਏ ਸੁਣਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਚੱਲ ਪੈਂਦੀ ਹੈ। ਗੁਣਵਾਨ ਬੈਠ ਕੇ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਤੇ, ਤੁਰਤ ਫੇਰੇ ਦੇ ਦੇਂਦੇ ਹਨ (ਤਿਵੇਂ, ਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਪ੍ਰਭੂ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਪਰਗਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਆਤਮਕ ਆਨੰਦ ਦੀ ਲਹਿਰ ਚੱਲ ਪੈਂਦੀ ਹੈ। ਗੁਰਮੁਖ ਬਾਣੀ ਦੇ ਰਸੀਏ ਸਾਧ ਸੰਗਤਿ ਵਿਚ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਪੜ੍ਹਦੇ ਵਿਚਾਰਦੇ ਹਨ। ਜਿਉਂ ਜਿਉਂ ਗੁਰਬਾਣੀ ਵਿਚਾਰਦੇ ਹਨ, ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਦੇ ਹਿਰਦੇ-ਘਰ ਵਿਚ ਸੱਜਣ-ਪ੍ਰਭੂ ਦਾ ਪਰਕਾਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਆਨੰਦ ਦੇ, ਮਾਨੋ, ਵਾਜੇ ਵੱਜਦੇ ਹਨ। ਗੁਰਮੁਖ ਸਤਸੰਗੀ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਦਾ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਨਾਲ ਮਿਲਾਪ ਕਰਾ ਦੇਂਦੇ ਹਨ)। ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੂੰ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਜੋ (ਸਾਧਾਰਨ ਉੱਦਮ ਨਾਲ) ਅਪਹੁੰਚ ਹੈ, ਜਿਸ ਤਕ ਗਿਆਨ-ਇੰਦ੍ਰਿਆਂ ਦੀ ਪਹੁੰਚ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ, ਜੋ ਸਦਾ ਨਵੇਂ ਪਿਆਰ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਜੋ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਮਿੱਤਰ ਚਲਾ ਆਉਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਜਿਸ ਜੀਵ-ਇਸਤ੍ਰੀ ਨੂੰ ਉਹ ਪ੍ਰਭੂ ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਮੁੜ ਕਦੇ ਉਸ ਤੋਂ ਨਹੀਂ ਵਿਛੁੜਦੀ ॥੪॥੧॥