भगत रविदास वा रैदास जी को भगत रविदास जी के नाम से भी जाना जाता है, और उनका भक्त कबीर और नामदेव जी की भांति भक्ति आंदोलन में बहुत गहरा महत्व है। उनके जीवन के बारे में ठीक ठीक कह पाना मुश्किल है। विद्वानों के मध्य उनके जन्म दिनांक, वंशावली इत्यादि के बारे में किसी भी प्रकार की सहमति बनती नहीं दिखती, फिर भी आम जनमानस में यह प्रचलित है की उन्होंने लगभग डेढ़ सदी का लंबा जीवन जिया। एतिहासिक दृष्टिकोण से ये जितना भी संदेहास्पद हो लेकिन परंपरा के अनुसार हमें यह विदित है की भक्त रविदास जी, गुरु रामनन्द के शिष्य और भक्त कबीर जी के गुरु भाई के रूप में उस समय के आध्यात्मिक मण्डल के बेहद सम्मानित महापुरुष रहे हैं।
क्योंकि उनका प्रारम्भिक जीवन रहस्यमय है, इतिहासकार उनका अस्तित्व उस समय की किंवदंतियों और अन्य बिखरे संदर्भों में से खोजने का प्रयास करते हैं । कहानी में कितनी भी अस्पष्टता क्यों न हो, रविदास जी की आध्यात्मिक पथ के प्रति प्रतिबद्धता की दृढ़ता पर आंच नहीं आती। इसके पीछे का मूल कारण है उनकी वाणी के रूप में प्राप्त खजाना जो सिखों के आध्यात्मिक गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है जिसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों पर स्पष्ट देखा जा सकता है।
आध्यात्मिक ज्ञानोदय
आध्यात्मिक दुनिया में रविदास जी के महत्व को सिद्ध करने के लिए हमें ऐतिहासिक रिकॉर्ड की आवश्यकता नहीं है। उनकी वाणी, मुख्य रूप से जो सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव जी द्वारा संकलित आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है - उस समय के सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक विचारों को अनुपम खजाना है । उनकी रचनाओं में विनम्रता ही विनम्रता है, प्रभु मिलाप के प्रति वैराग्य भाव और उस निराकार के साक्षात्कार के दौरान वार्तालाप उनकी निर्गुण भक्ति की ऊंचाई को दर्शाता है।
उनकी वाणी सामाजिक पद और मान्यताओं के प्रति उनके तिरस्कार को रेखांकित करती हैं। इसके अतिरिक्त भक्त कबीर और गुरु नानक अन्य आध्यात्मिक महापुरुषों से हुई उनकी मुलाकातों के किस्से उनके आध्यात्मिक प्रभाव को और दृढ़ करते हैं, चाहे इतिहास इन मुलाकातों को मनगढ़ंत ही क्यों न मानता हो।
आदि ग्रंथ में रविदास के 40 पदों को शामिल किया जाना न केवल उनके पूज्य संत होने का प्रमाण है, बल्कि उनके संदेश की सार्वभौमिकता को भी हमारे सामने रखता है। प्रेम, करुणा और आत्मा की सच्चाई की आध्यात्मिक खोज के मूल मुद्दों के ये सुरुचिपूर्ण चिंतन अलग-अलग समय और स्थानों में लोगों के दिलों को छूते हैं, जिससे उनको मानने वालों को भगत रविदास जी द्वारा दिखाए गए दिव्य प्रेम मार्ग की अनुभूति होती है। इतने वर्षों के बाद भी, रविदास जी की शिक्षाएँ अभी भी उन लोगों को सांत्वना और दिशा प्रदान करती हैं जो सत्य का मार्ग खोज रहे हैं। इस प्रकार वह आध्यात्मिक शरण की तलाश करने वाले जिज्ञासुओं के दिलों में कोई बीता कल नहीं हैं अपितु एक वर्तमान व्यक्ति बने हुए हैं।
साथी भगतों से मुलाकात
संत रविदास जी के जीवन का एक और फैसनैटिंग पहलू अन्य भक्ति संतों, मीराबाई और रानी झाली के साथ उनकी मुलाकात की कथाएँ है। विद्वानों में अक्सर यह बहस छिड़ी रहती है कि क्या वाकई मीराबाई और रानी झाली जैसी धनाढ्य वर्ग की महिलायें संत जी की शिष्य थीं लेकिन एक बात स्पष्ट है की ये लोककथाएँ समाज की विभिन्न श्रेणियों निम्न व कुलीन के बीच उनके आध्यात्मिक वर्चस्व को परिपक्व करती हैं। ये कथाएँ रविदास जी की सामाजिक बाधाओं को पार करने और विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमियों से भक्ति की तरफ आकर्षित करने की उनकी क्षमता पर प्रकाश डालती हैं ।
झाली रानी द्वारा रविदास को अपने आध्यात्मिक गुरु के रूप में अपनाने की कहानियाँ एक नई सामाजिक व्यवस्था का प्रतीक हैं जो अपरंपरागत रिश्तों की अवधारणा पर बनी थी। स्थापित मूल्यों का सामना करने और सभी पृष्ठभूमियों के शिष्यों का स्वागत करने का गुरु रविदास का निर्णय - समानता और दया के सिद्धांतों के प्रति उनकी अटूट भक्ति को दर्शाता है। उसी तरह, विधवा मीरां बाई का एक दुःखी आत्मा से रविदास की समर्पित शिष्या में परिवर्तन इस बात का एक और उदाहरण है कि इस संत जी की शिक्षा कितनी शक्तिशाली है, जो किसी एक भूगोल या सामाजिक स्थिति तक सीमित नहीं है बल्कि सभी लोगों के दिलों को छूती है।
गुरु रविदास की आध्यात्मिक विरासत
भगत रविदास जी का जीवन आध्यात्मिक प्रकाश और सामाजिक पुनर्जागरण के धागों से बुना हुआ है। उनकी जीवन गाथा से सुनी पढ़ी जाने वाली कहानियाँ अस्पष्टताओं और अनिश्चितताओं से भरी है, जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भले ही कम महत्व की हों, लेकिन धार्मिक लेखन और मौखिक परंपराओं में इनकी दृढ़ता उनकी शिक्षाओं की अद्वितीय शक्ति की गवाही देती है। चाहे वह एक आम मोची हो या आध्यात्मिक गुरु, रविदास का जीवन भक्ति और करुणा की भावना का प्रतीक है जो दुनिया को सामाजिक मानदंडों से परे ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। उनकी आध्यात्मिक विरासत का जश्न मनाकर, हम न केवल उन्हें श्रद्धांजलि दे सकते हैं, बल्कि हम उस महापुरुष के शाश्वत ज्ञान को भी अपनाते हैं, जिसने स्वयं को देवत्व के प्रेम और सार्वत्रिक एकता की खोज के लिए समर्पित कर दिया।