जीवन वृत्तान्त श्री गुरु तेग़ बहादुर जी
Jivan Vritant Guru Tegh Bahadur Ji – is a Book in Hindi published by Krantikari Jagat Guru Nanak Dev Charitable Trust, Chandigarh. Written by S. Jasbir Singh, It covers the History and Life Journey of the 9th Sikh Guru Sri Guru Tegh Bahadur Ji Maharaj in Brief.
Book | जीवन वृत्तान्त श्री गुरु तेग़ बहादुर जी |
Writer | S. Jasbir Singh |
Pages | 68 |
Language | Hindi |
Script | Devnagari |
Size | 10.9 MB |
Format | |
Publisher | Krantikari Jagat Guru Nanak Dev Charitable Trust, Chandigarh [Public Domain] |
जीवन वृत्तान्त श्री गुरु तेग़ बहादुर जी – क्रांतिकारी जगतगुरु नानक देव चेरीटेबल ट्रस्ट, चंडीगढ़ द्वारा प्रकाशित हिंदी पुस्तक है। स. जसबीर सिंघ द्वारा लिखी इस पुस्तक में आठवें सिख गुरु श्री गुरु तेग़ बहादुर जी महाराज के इतिहास और जीवन यात्रा पर सरल भाषा में प्रकाश डाला गया है।
Sri Guru Tegh Bahadur Ji Biography Hindi Book – Index
1. श्री गुरू तेगबहादुर साहब जी
2. युद्ध कला का अनुभव
3. बाल्यकाल
4. उत्तराधिकारी का चयन व संकेत
5. गुरू लाधो रे
6. अमृतसर के लिए प्रस्थान
7. अन्य गुरूधामों की यात्राएं
8. आनन्दपुर साहब की आधार शिला रखना
9. आनन्दगढ़ का निर्माण
10. प्रचार दौरा
11. माई माड़ी
12. चैधरी त्रिलोका जवंदा
13. कुरूक्षेत्रा का सूर्य ग्रहण
14. भाई मीहं
15. साधू मलूका
15. एक संन्यासी को उपदेश
17. आगरा नगर की माई जस्सी
18. इलाहाबाद (प्रयाग)
19. असाध्य कुष्ठ रोगी का रोग निवारण
20. गुरू चरणों में गँगा
21. गया जी (बिहार)
22. भाई फग्गू
23. गुरू परिवार पटना नगर में
24. ढाका
25. त्रिपुरा नरेश राम राय
26. महंत बलाकी दास की माता की श्रद्धा
27. पँजाब वापसी
28. परिवार से मिलन
29. चक्क नानकी (आनन्दपुर) में पुनः धूमधाम
30. शहीदी श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी।
31. औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार
32. गुरू दरबार में कश्मीरी पण्डितों की पुकार
33. भय काहू कौ देत नहिं, नहिं भय मानत आन।
34. भाई मती दास जी की शहीदी
35. शहीदी भाई दयाला जी
36. शहीदी भाई सती दास जी
37. गुरू तेग बहादुर साहिब जी की शहीदी
Synopsis Jivan Vritant Guru Hargobind Sahib Ji:
16 अप्रैल सन् 1621 तदानुसार वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी संवत 1678 शुक्रवार का दिन था। श्री गुरू हरिगोविन्द जी प्रातःकाल ही श्री हरिमंदिर साहब में नित्य-नियम अनुसार पधारे हुए थे कि तभी उन्हें शुभ समाचार दिया गया कि आपकी पत्नि श्रीमती नानकी जी की गोद में एक सुन्दर तथा स्वस्थ बालक का प्रकाश हुआ है। उस समय ‘आसा की वार’ का कीर्तन हो रहा था।
इस सुखद सूचना को प्राप्त करते ही गुरू जी उठे और कूतज्ञतावश, प्रकाशमान आदि गुरूग्रंथ साहब की पालकी के सम्मुख होकर प्रार्थना करने लगे और फिर दंडवत् प्रणाम किया। कीर्तन की समाप्ति के पश्चात् वे सत्संगियों , श्रालुओं के साथ अपने निवास स्थान ‘गुरू का महल’ वापिस पधारे। नवजात शिशु को देखते ही गुरूदेव जी ने सिर झुका कर वन्दना की। इस पर निकटवूत्तियों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा और उन्होंने प्रश्न किया कि वे बालक के प्रति नतमस्तक क्यों हुए हैं।
उत्तर में गुरूदेव जी ने कहा – ‘यह बालक दीन-दुखियों की रक्षा करेगा और सभी प्राणियों के संकट हरेगा’। गुरू जी ने ऐसे पराक्रमी बालक का नाम त्यागमल रखा। उन का विचार था कि यह बालक मानव कल्याण के लिए बहुत बड़ा त्याग करेगा जो कि इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
श्री त्यागमल (तेग बहादुर) जी से बड़े, चार भाई और एक बहन थी। भाइयों के नाम क्रमशः गुरदित्ता जी (जन्म सन् 1613) सूरजमल जी (जन्म सन् 1617), अणीराय जी (जन्म 1618) और अटल राय (जन्म सन् 1619) तथा बहन का नाम कुमारी वीरों जी (जन्म सन् 1615) था।
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